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अस्थि विसर्जन कब करें ?

दाह संस्कार के कितने दिन बाद करना चाहिए अस्थि विसर्जन ? पंचक में अस्थि विसर्जन करना चाहिए या नहीं ? जाने अस्थि विसर्जन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें –

अंतिम संस्कार की प्रक्रिया यूं तो हर धर्म में विधि विधान के साथ पूरी की जाती है, परंतु हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार से जुड़ी प्रक्रिया सबसे अलग और लंबी है। जहां जैन, सिख, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, पारसी आदि धर्मों में मृतक के शव का अंतिम संस्कार कर देने के पश्चात, प्रेयर मीट या कुछ दिन के शोक के साथ प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है, वहीं हिंदू धर्म में शव का अंतिम संस्कार कर देने के बाद भी, मृतक की आत्मा की शांति के लिए कई अन्य रीति रिवाज का पालन किया जाता है, जो एक लंबे समय तक चलता रहता है।

अंतिम संस्कार के बाद 10 दिनों तक घर में शूदक, फिर घर की शुद्धिकरण की जाती है। और फिर 13वें दिन ब्राह्मण भोज के साथ 13वीं का संस्कार किया जाता है। इसके पश्चात मृत्यु के एक वर्ष पूरे होने पर प्रथम वार्षिक श्राद्ध किया जाता है। तत्पश्चात प्रति वर्ष श्राद्ध पक्ष में मृतक का श्राद्ध, पिंडदान एवं तर्पण किया जाता है। इस तरह से हिंदू धर्म में मरने वाले की आत्मा की शांति एवं तृप्ति के लिए की अलग अलग प्रकार के रीति रिवाज बनाए गए हैं। इन्हीं रीति-रिवाज में से एक रीति अस्थि विसर्जन से जुड़ा हुआ है।।

अस्थि विसर्जन कब करें

हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया अस्थि विसर्जन के बाद ही पूरी मानी जाती है। मृतक के दाह संस्कार के पश्चात शेष बची अस्थियों एवं राख को एक कलश में एकत्रित कर लिया जाता है और फिर विधि विधान से किसी पवित्र नदी के जल में इन अस्थियों को प्रवाहित कर दिया जाता है।

अस्थि अवशेषों को नदी के जल में प्रवाहित करने के पीछे की मान्यता यह है कि- मानव शरीर पांच तत्वों यानी पृथ्वी, अग्नि, आकाश, जल एवं वायु से मिलकर बना हुआ है। मृत्यु के पश्चात इस शरीर को इन्हीं पांच तत्वों में विलीन कर देना चाहिए। हिंदू धर्म में इसी मान्यता का पालन करते हुए मृतक का अंतिम संस्कार किया जाता है। अस्थि अवशेषों को नदी के जल में प्रवाहित करने के साथ इस शरीर के कुछ अंशों को पांचवे तत्व यानी जल में समाहित किया जाता है।

अस्थि विसर्जन को लेकर एक बड़ा सवाल अक्सर देखने को मिलता है कि अस्थि विसर्जन कब करें ? पंचक के समय अस्थि विसर्जन करना चाहिए या नहीं ? अस्थि विसर्जन किस समय करना चाहिए और इसके लिए शुभ मुहूर्त क्या होता है ? आगे इस पोस्ट में सब सवालों के जवाब पढ़ें –

अस्थि विसर्जन कब करना चाहिए ?

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हिंदुओं के पवित्र पुराण, गरुड़ पुराण के मुताबिक हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसका अंतिम संस्कार करने के पश्चात, जब चिता की अग्नि पूरी तरह से ठंडी हो जाती है, तब अस्थि अवशेषों एवं राख को मंत्रों का उच्चारण करते हुए एक कलश में भर लिया जाता है।(प्रायः दाह संस्कार के तीसरे दिन अस्थियों का संचय करने का नियम है।) मृतक को मुखाग्नि देने वाला शख्स इस कलश को अपने साथ घर लेकर आता है। अब इस कलश को घर के बाहर ही विधि-विधान के साथ किसी पेड़ पर लटका दिया जाता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार मृत्यु के 10 दिन के भीतर विधि विधान से किसी पवित्र नदी के जल में अस्थियों को विसर्जित कर दिया जाना चाहिए। दाह संस्कार के दिन के अलावा, मृत्यु के तीसरे दिन, सातवें दिन अथवा नवें दिन अस्थियों को विसर्जित कर देना चाहिए। यदि किसी कारणवश 10 दिनों के भीतर अस्थि विसर्जित नहीं कर पाए, तो इस स्थिति में किसी तीर्थ श्राद्ध पर ही अस्थियों को विसर्जित करें।

पंचक में अस्थि विसर्जन

अस्थि विसर्जन कब करें 1

पांच नक्षत्र धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद व रेवती जब एक साथ पड़ जाते हैं, तो इस समय को पंचक के नाम से जाना जाता है। पंचक नक्षत्र अशुभ नहीं होता, लेकिन मृत्यु, और अंतिम संस्कार से जुड़े रीति रिवाजों में इस नक्षत्र को लेकर विशेष नियम बनाए गए हैं।

हिंदू धर्म की धार्मिक मान्यता के अनुसार पंचक नक्षत्र में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर इसके कुछ अशुभ प्रभाव देखने को मिलते हैं। गरुड़ पुराण के मुताबिक पंचक में किसी की मृत्यु होने पर ये अपने साथ चार अन्य मौत लेकर आती है। यही वजह है कि ऐसे व्यक्ति के अंतिम संस्कार के समय मौत के भेद को हटाने के लिए, आटे एवं कुशा से बने पांच पुतलो का अंतिम संस्कार विधि विधान के साथ किया जाता है।

अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता है कि पंचक में अस्थि विसर्जन करना चाहिए या नहीं ? इसका जवाब है कि पंचक में मृतक के अंतिम संस्कार से जुड़ा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। पंचक में अस्थि विसर्जन करने से भी बचना चाहिए। परंतु यदि अस्थि विसर्जन करना अत्यंत आवश्यक है, तो ऐसी स्थिति में पंचक दोष निवारण उपाय करने के पश्चात ही अस्थि विसर्जन करना चाहिए।

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