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अस्थि विसर्जन करने की विधि और नियम क्या है ?

हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार की क्रिया के पश्चात 10 दिनों के भीतर विधि -विधान से अस्थि विसर्जन किया जाता है ।

आइए इस पोस्ट में जानते हैं अस्थि विसर्जन विधि और उससे जुड़े नियमों के बारे में विस्तार से –

हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके शव का अंतिम संस्कार करने के लिए प्रायः दाह संस्कार की विधि अपनाई जाती है। हालांकि कुछ जगहों पर मृतक का अंतिम संस्कार जल दाह यानी जल में प्रवाहित करके किया जाता है, जबकि बच्चो की मृत्यु होने पर उनके शव को जमीन के अंदर ही दफन कर दिया जाता है।

अब अगर बात करें दाह संस्कार की तो इस प्रक्रिया में मृतक का अंतिम संस्कार करने के लिए लकड़ी से बनी चिता पर मृतक के शव को रखा जाता है और किसी प्रियजन द्वारा चिता को मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार किया जाता है। मुखाग्नि देने की रीति प्रायः मरने वाले व्यक्ति के बड़े पुत्र के हाथों से निभाई जाती है। परंतु यदि मरने वाले व्यक्ति की पुत्र के रूप में कोई संतान नहीं होती है, तो इस स्थिति में मृतक के भाई, भतीजा या फिर पिता के हाथों से शव को मुखाग्नि दी जाती है।

अग्नि दाह द्वारा अंतिम संस्कार की क्रिया करने पर मृतक के शरीर का पूरा हिस्सा तो चिता की अग्नि में जल जाता है, परंतु हड्डियां यानी अस्थि के अवशेष अब भी बाकी रह जाता है। चिता की अग्नि में शेष बची इन अस्थियों को विधि विधान के साथ नदी के जल पर विसर्जित किया जाता है, तब जाकर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी मानी जाती है।

क्या है अस्थि विसर्जन ?

अस्थि विसर्जन विधि 2

अस्थि विसर्जन, हिंदू धर्म में मृतक के दाह संस्कार के पश्चात निभाई जाने वाली रस्म है। इस रस्म में दाह संस्कार के पश्चात बची हुई हड्डियों एवं राख के अवशेष को नदी के जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।

क्यों किया जाता है अस्थि विसर्जन ?

अस्थि विसर्जन विधि

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार मानव शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है। ये तत्व हैं -‘पृथ्वी, अग्नि, आकाश, जल एवं वायु’ । मृत्यु के पश्चात मानव शरीर को इन्हीं पांच तत्वों में विलीन कर देना चाहिए। मृतक के अंतिम संस्कार के लिए जो दाह संस्कार के विधि अपनाई जाती है, उसमे शरीर अग्नि, वायु, आकाश एवं पृथ्वी, चार तत्वों में विलीन हो जाता है। पांचवे तत्व यानी जल में शरीर को विलीन करने के लिए, दाह संस्कार के बाद बची हुई अस्थियों एवं राख को जल में विसर्जित कर दिया जाता है। इस प्रकार ये शरीर पांच तत्वों में विलीन हो जाता है, और जीवन का एक चक्र पूरा हो जाता है।

हिंदुओ के पवित्र पुराण कूर्म पुराण में अस्थि विसर्जन को लेकर एक श्लोक लिखा गया है। जो कुछ इस प्रकार है –

” यावदस्थीनि गंगाया तिष्ठंति पुरुषस्य तु।
तावद वर्ष सहस्त्त्राणि स्वर्गलोके महीयते।
तीर्थानाम परमं तीर्थ नदीनाम परमा नदी।
मोक्षदा सर्वभूताना महापातकिनामपि।
सर्वत्र सुलभा गंगा त्रिशु स्थानेषु दुर्लभा।
गंगाद्वारे प्रयागे च गंगासागर संगमे ।
सर्वेशामेव भूतानाम पापोपहतचेतसाम।
गतिमनवेषमाणनाम नास्ति गंगासभा गतिः।

इस श्लोक के मुताबिक जब तक मरने वाले व्यक्ति की अस्थियां गंगा यमुना जैसी पवित्र नदियों में समाहित रहती है उतने समय तक स्वर्ग लोक में उसकी पूजा होती है। जिन पवित्र नदियों में सभी पाप धुल जाते हैं, अस्थियों को विसर्जित करने के लिए उससे उत्तम जगह कोई और नहीं हो सकती।

विधि विधान से किया जाता है अस्थि विसर्जन :

अस्थि विसर्जन विधि 3

हिंदू धर्म में अस्थि विसर्जन की क्रिया महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। मृत शरीर के अस्थियों के अवशेष को नदी के जल में यूं ही नहीं प्रवाहित किया जाता है। इसके लिए कुछ रीति रिवाज और विधियां बनाई गई हैं। जिनका पालन करना सबके लिए अनिवार्य है। विधि विधानों का पालन करते हुए, पंडित के दिशा निर्देश पर मंत्रो उच्चारण के साथ ही अस्थियों को पवित्र नदी के जल धारा में प्रवाहित किया जाता है।

अस्थियों को चिता से उठाने से लेकर उसे पवित्र नदी की जलधारा में प्रवाहित करने तक हर कदम पर नए नियम एवं विधि विधानों का पालन करना होता है।

अस्थियों विसर्जन की विधि

अस्थि विसर्जन विधि 1
  • अस्थि विसर्जन करने के लिए सर्वप्रथम अस्थियों को एक जगह पर एकत्रित किया जाता है। इसके लिए प्रायः मिट्टी अथवा तांबे से बने घड़े का इस्तेमाल किया जाता है।
  • मृतक का दाह संस्कार होने के पश्चात चिता की अग्नि ठंडी होने का इंतजार किया जाता है। जब चिता की अग्नि पूरी तरह से ठंडी हो जाए उसके बाद ही अस्थियों एवं राख को उठाया जाता है। प्रायः दाह संस्कार के 3 दिन के पश्चात अस्थियों के अवशेषों को एकत्र किया जाता है।
  • अस्थियों को चिता से उठाते समय “ ॐ त्वा मनसाअनार्तेंन, वाचा ब्रह्मणा त्रय्या विद्यया, पृथिव्यामक्षिकायमपा रसेन निवपाम्यसौ।” मंत्र का जाप करते हुए कलश में एकत्रित किया जाता है।
  • कलश में एकत्रित करने के बाद अस्थियों को घर लेकर आया जाता है। और दसवें के पहले किसी भी दिन अस्थियों को पवित्र नदी के जल में विसर्जित कर दिया जाता है।
  • जिस व्यक्ति ने मृतक का दाह संस्कार किया है, उसी के हाथों से अस्थि विसर्जन की क्रिया भी की जाती है।
  • अस्थियों को नदी में विसर्जित करने के लिए सबसे पहले अस्थि विसर्जन के लिए आवश्यक सामग्री एवं कलश में एकत्र की गई अस्थियों के अवशेषों को लेकर किसी पवित्र नदी के तट पर जाए।
  • अस्थि विसर्जन के लिए किसी पंडित के दिशा निर्देश का पालन करते हुए सर्वप्रथम यमदेव का आह्वान किया जाता है। इसके लिए हाथ में अक्षत फूल इत्यादि लेकर यमदेव का स्मरण करते हुए ” ॐ यमग्ने कव्यवाहन, त्वं चिनमन्यसे रविम। तत्रो गिर्भी श्रवाय्यम देवत्रा पनया युजम। ॐ यमाय नमः। अवह्यामि, स्थापयामि, ध्यायामि। मंत्र का जप किया जाता है।
  • यमदेव के पश्चात पितरों एवं पूर्वजों का स्मरण किया जाता है। इसके लिए आवाहन मंत्र ” ॐ इदम पितृभ्यो नमो अस्तवद्य ये, पूर्वासो य उपरास अयियुः। ये पार्थिवे रजस्या निशत्ता, ये वा नून सुवृजनासु विक्षु। ॐ पितृभ्योः नमः। अवह्यामि, स्थापयामि, ध्यायामि। का जप किया जाता है।
  • यमदेव एवं पितरों का आवाहन करने के पश्चात अस्थियों को जल में विसर्जित किया जाता है। तत्पश्चात मृतात्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हुए -” ॐ ये चितपूर्व रितसाता रितजाता रिताविधाः। ऋषिंतपसवतो यम तपोजां अपि गछतात। ॐ आयुर्विश्वयु परितातु त्वा पातु प्रपथे पुरस्तात। यत्रासते सुकृतो यत्र तयियुः तत्र त्वा देवः सविता दधातु। ” मंत्र का जप किया जाता है।

इस प्रकार अस्थि विसर्जन की प्रक्रिया पूर्ण होती है। और पांच तत्वों से मिलकर बना ये मानव शरीर फिर से उन्ही पांच तत्वों में विलीन हो जाता है। और मानव मरने वाले व्यक्ति के जीवन का एक चक्र पूरा हो जाता है।

नोट: इस बात का ध्यान रखे कि अस्थियों को नदी के तट पर ले जाते समय रास्ते में कहीं भी नीचे न रखे। उसे हाथ में ही पकड़ कर रखे। इसके साथ ही निर्धारित समय के अंदर ही अस्थि विसर्जन करना अत्यंत आवश्यक है ।

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