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सिख धर्म में अंतिम संस्कार किस प्रकार होता है ?

सिख धर्म में अंतिम संस्कार के लिए कौन सी विधि अपनाई जाती है? पढ़ें अंतिम संस्कार से जुड़ी पूरी प्रक्रिया-

इस संसार में पाई जाने वाली हर वस्तु निष्क्रिय है। आज नहीं तो कल सब का अंत होना तय है। फिर चाहे वह जीव जंतु हो, कोई वस्तु हो या फिर मनुष्य। जो इस संसार में आया है, उसका जाना निश्चित है। मनुष्य की बात की जाए तो इस संसार में मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो धर्म, जाति, रीति-रिवाज के बंधनों से बंधा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य इन बंधनों का पालन करता है, और मृत्यु के बाद उसके परिजन विधि विधान से अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी कर उसे इन बंधनों से मुक्ति देते हैं।


अंतिम संस्कार से जुड़े नियम हर देश, जाति, धर्म, समुदाय में अलग अलग हैं। कहीं मृत्यु के बाद मृत शरीर को दफना दिया जाता है, कहीं दाह संस्कार किया जाता है, तो कहीं शव को यूं ही खुले में पशु पक्षियों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता है। नियम चाहे जो भी हो, लेकिन इस सबके पीछे की मान्यता एक ही होती है। सभी धर्म में विधि विधान से अंतिम संस्कार करने का एक ही उद्देश्य होता है और वो उद्देश्य है मृत आत्मा की शांति। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए हर धर्म के लोग अपने-अपने रीति रिवाज के अनुसार मृतक का अंतिम संस्कार करते हैं।

आज इस पोस्ट के जरिए हम जानेंगे कि सिख धर्म में अंतिम संस्कार की क्या विधि है ?

सिख धर्म में अंतिम संस्कार

सिख धर्म में अंतिम संस्कार 3

सिख धर्म की धार्मिक मान्यता के अनुसार मृत्यु ईश्वर के आदेश पर होने वाली एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। जीवन और मृत्यु एक दूसरे के बेहद करीब होते हैं और मृत्यु के बाद ही मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है, और नया जीवन मिलता है। सिख पुनर्जन्म में भी विश्वास रखते हैं। इस धर्म की यह मान्यता है कि मृत्यु सिर्फ शरीर की होती है, आत्मा अजर और अमर होती है, मृत्यु के बाद आत्मा एक शरीर को त्याग कर दूसरे सफर पर निकल जाती है। इस धार्मिक मान्यता को ध्यान में रखकर ही सिख धर्म में अंतिम संस्कार किया जाता है।

हिंदू धर्म व सिख धर्म की स्थापना एक ही साथ हुई है। यही वजह है कि हिंदू धर्म व सिख धर्म में काफी समानता देखने को मिलती है। दोनों धर्म के अंतिम संस्कार से जुड़े नियमों में भी काफी समानता है। हिंदू धर्म की तरह ही सिख धर्म में भी मृत शरीर का दाह संस्कार करने की परंपरा है। जहां हिंदू धर्म में यह मान्यता है, कि मानव शरीर जल, अग्नि, वायु, आकाश व मिट्टी इन पांच तत्वों से मिलकर बना है और मृत्यु के पश्चात दाह संस्कार करने से यह शरीर इन्हीं पांच तत्वों में विलीन हो जाता है, तब जाकर मृत आत्मा को शांति मिलती है, वहीं दूसरी तरफ सिख धर्म में इस शरीर को मात्र एक कपड़े की तरह माना गया है। ऐसी मान्यता है की मृत्यु के पश्चात आत्मा इस शरीर रूपी कपड़े को त्याग कर नए सफर पर निकल जाती है। इसलिए मृत शरीर का दाह संस्कार कर उसे खत्म कर दिया जाता है, जिससे आत्मा को पुराने शरीर से मुक्ति मिल जाए और उसे मोक्ष प्राप्त हो।

सिख धर्म में अंतिम संस्कार की विधि

सिख धर्म में अंतिम संस्कार 1

सिख धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो सभी परिजनों, रिश्तेदारों, व करीबियों को सूचित करने के बाद अंतिम संस्कार की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। सिख धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया की शुरुआत शव को स्नान कराने के साथ की जाती है। मृतक को नहलाने का काम उसके परिजन करते हैं। यदि किसी महिला की मृत्यु होती है तो परिजन महिलाएं, और यदि किसी पुरुष की मृत्यु होती है तो परिजन पुरुष मृतक को नहलाते हैं। स्नान के बाद मृतक को नया कपड़ा पहनाया जाता है, जिसे आम भाषा में कफन कहते हैं। और फिर शव को अर्थी पर लिटाया जाता है। इसके पश्चात सिख धर्म के 5 बेहद महत्पूर्ण चिन्हों कृपाण, कटार, कंघा, केश व कड़ा को संवारा जाता है।

इन सब प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद मृतक की अर्थी को ‘वाहेगुरू’ का नाम लेते हुए शमशान घाट ले जाया जाता है। सिख धर्म में महिलाएं भी शव की अंतिम यात्रा में शामिल होती हैं और शमशान घाट जाती हैं। शमशान घाट पर लकड़ी से बनी चिता पर अर्थी रखी जाती है। अब मृतक का कोई करीबी उसे मुखाग्नि देता है। और इस प्रकार दाह संस्कार की प्रक्रिया संपन्न होती है। दाह संस्कार की क्रिया पूरी होने के पश्चात भजन किया जाता है और अरदास लगाई जाती है। दाह संस्कार में शामिल सभी लोग शाम को शमशान घाट से वापस आने के बाद स्नान करते हैं और साफ वस्त्र पहनते हैं। इसके पश्चात सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का पाठ होता है।

सिख धर्म में अंतिम संस्कार

नोट: सिख धर्म में अंतिम संस्कार से जुड़े नियम के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके दाह संस्कार के पश्चात 10 दिनों तक घर में शोक का समय चलता है। इस दौरान प्रतिदिन घर में ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ का पाठ किया जाता है। 10वें दिन पाठ की समाप्ति के बाद शोक में शामिल होने वाले सभी लोगों को प्रसाद बांटा जाता है, जिसे ‘कड़हा प्रसाद ‘के नाम से जाना जाता है। इसके पश्चात मृतक की आत्मा की शांति के लिए अरदास लगाई जाती है और भजन कीर्तन किया जाता है।

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