Press "Enter" to skip to content

बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार किस प्रकार होता है ?

बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया के लिए कौन सी विधि अपनाई जाती है ? मृतक के शरीर को दफनाया जाता है या उसका दाह संस्कार किया जाता है ? अस्थि अवशेषों का क्या किया जाता है, ये सब बातें जानने के लिए आगे पूरा पोस्ट पढ़ें –


मनुष्य का पूरा जीवन रीति-रिवाजों के बंधन से बंधा होता है। मां के गर्भ में आने से लेकर, इस दुनिया में कदम रखने तक और फिर मृत्यु हो जाने के बाद अंतिम क्रिया तक हर कदम पर रीति रिवाज और धर्म से जुड़े संस्कार का पालन होता है। हर धर्म की अलग-अलग मान्यता के अनुसार मृत्यु के पश्चात जब तक विधि विधान से अंतिम संस्कार की प्रक्रिया नहीं कर दी जाती, तब तक मृतक की आत्मा को मोक्ष प्राप्त नहीं प्राप्त होता है और वो दर-दर भटकती रहती है।


अंतिम संस्कार की प्रक्रिया के लिए हर धर्म अलग-अलग नियम, विधि और रीति रिवाज का पालन करते हैं। इस पोस्ट में हम जानेंगे कि बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है ?


बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार से जुड़ी प्रक्रिया

बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार


बौद्ध धर्म दुनिया के सबसे बड़े धर्मों में से एक है। इस धर्म से जुड़े लोग अधिकतर भारत, नेपाल, चीन, श्रीलंका, जापान, थाईलैंड, कोरिया, भूटान, कंबोडिया और तिब्बत जैसे देशों में पाए जाते हैं। दुनिया के तमाम देशों में रहने वाले बौद्ध धर्म से जुड़े लोग, मृतक का अंतिम संस्कार, दाह संस्कार अथवा दफनाने, दोनों विधियों से करते हैं।


बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार से जुड़े नियम


बौद्ध धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो अंतिम संस्कार की प्रक्रिया के लिए स्थानीय संस्कृति से जुड़े नियमों का पालन करते हुए मृत शरीर का दाह संस्कार होता है फिर दफनाया जाता है।

बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार


अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को पूरी करने के लिए मृतक के परिवार और रिश्तेदार एकत्रित होते हैं। मृतक शरीर को अंतिम संस्कार के लिए तैयार किया जाता है, और फिर करीबियों के द्वारा मृतक की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। इसके पश्चात मृत शरीर को मुखाग्नि दी जाती है। दाह संस्कार की प्रक्रिया के अगले दिन मृत शरीर के अवशेषों को एकत्रित किया जाता है और इन अवशेषों को परिवार के लोग अपनी इच्छा के अनुसार या तो अपने पास रखते हैं या फिर अस्थिशेष के लिए समर्पित भवन में जमीन के नीचे दबाकर सुरक्षित रख दिया जाता है। यह तो हो गई दाह संस्कार की प्रक्रिया। बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार के लिए दफनाने की प्रक्रिया का भी प्रावधान है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत अंतिम संस्कार करने के लिए शव को एक लकड़ी से बने ताबूत में रखा जाता है। इसके पश्चात परिवार के सदस्य और करीबियों द्वारा मृतात्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। और फिर शव को दफना दिया जाता है।


तिब्बत में कैसे होता बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार


यूं तो लगभग हर देश में बौद्ध धर्म से जुड़े लोगों के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया लगभग समान है, लेकिन तिब्बत में रहने वाले बौद्ध धर्म के अनुयायियों यानी साधु, संत के साथ-साथ आम लोगो का अंतिम संस्कार बहुत अलग तरीके से किया जाता है। यहां शव को जलाने अथवा दफनाने के बजाय पक्षियों के भोजन के रूप में छोड़ दिया जाता है।

बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार


तिब्बत में जब किसी बौद्ध धर्म से जुड़े व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसका अंतिम संस्कार करने के लिए सबसे पहले शव को एक ऊंची चोटी पर ले जाया जाता है, जहां बौद्ध भिक्षु या लामा पहले से मौजूद होते हैं। यहां पर पूरे विधि-विधान से स्थानीय परंपराओं के अनुसार पूजा-पाठ किया जाता है और फिर शव को छोटे-छोटे टुकड़े करने के लिये ‘रोग्यापस‘ को सौंप दिया जाता है। रोग्यापस, शव को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटने के बाद उसे जौ के आटे के बने घोल में डुबोकर पहाड़ की चोटी पर पक्षियों को खाने के लिए छोड़ देते हैं। जब पक्षी मांस के टुकड़ों को खा जाते हैं, तब बची हुई अस्थियों को एकत्रित किया जाता है और उसे पीस लिया जाता है। इसके पश्चात अस्थियों के चूर्ण को एक बार फिर जौ के आटे के घोल में मिलाकर फिर से पक्षियों के भोजन के रूप में छोड़ दिया जाता है।


क्या है इस तरह की परंपरा की वजह

बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार


तिब्बत में बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के पीछे दो खास वजह है –

  1. धार्मिक : बौद्ध धर्म की धार्मिक मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद मानव का शरीर एक खाली बर्तन की तरह हो जाता है। मृत शरीर को पक्षियों के भोजन के रूप में समर्पित करने से पक्षियों का भला होता है। इस पूरी प्रक्रिया को ‘आत्म बलिदान ‘कहा जाता है।
  2. व्यवहारिक: तिब्बत में बौद्ध धर्म के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया के पीछे एक व्यवहारिक कारण भी है। दरअसल तिब्बत ऊंचाई पर बसा हुआ देश है। यहां की जमीन पथरीली है, जिसकी वजह से पेड़ पौधे भी आसानी से नहीं ऊग पाते हैं। यही कारण है कि यहां शव का दाह संस्कार करने के लिए लड़कियां एकत्रित करना मुश्किल काम है, इसके साथ ही पथरीली जमीन होने की वजह से दफनाने के लिए कब्र खोदना भी बेहद मुश्किल है। अंतिम संस्कार की इस अजीब परंपरा की एक खास वजह ये भी है।

Read This Also: ईसाई धर्म में अंतिम संस्कार के लिए अपनाई जाती है कौन सी रीति ?

Be First to Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *