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पहला श्राद्ध मृत्यु के कितने वर्ष बाद करना चाहिए ?

परिवार में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उसके श्राद्ध को लेकर अक्सर मन में दुविधा रहती है कि पहला श्राद्ध कब से शुरू किया जाना चाहिए ?

आज इस पोस्ट के जरिए हम जानेंगे श्राद्ध से जुड़े हुए कुछ नियमों के बारे में-

पितृपक्ष 2023 शुरू हो चुका है। पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पितरों तथा पूर्वजों की आत्मा की संतुष्टि के लिए श्राद्ध एवं तर्पण करते हैं। साल भर में पितृपक्ष ही एक ऐसा समय होता है, जब पूर्वज और पितर पृथ्वी लोक पर आकर हमारे द्वारा अर्पित किए गए जल एवं भोजन को ग्रहण करके तृप्त होते हैं, और तृप्त आत्मा से हमारे लिए ढेरों आशीर्वाद दे जाते हैं।

श्राद्ध क्रिया से जुड़े कुछ नियम है- जैसे मृत्यु के कितने वर्ष बाद से श्राद्ध क्रिया करनी चाहिए ? श्राद्ध कब नहीं करना चाहिए ? प्रथम वार्षिक श्राद्ध कब करना चाहिए ? इत्यादि। आइए इन सब बातों के बारे में विस्तार में जानते हैं ।

प्रथम वार्षिक श्राद्ध कब करना चाहिए ?

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हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार परिवार में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उस व्यक्ति का पहला श्राद्ध उसके मृत्यु की तारीख के 1 वर्ष बाद ही किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु नवंबर महीने की 2 तारीख को हुई है। तो उसके पहले श्राद्ध की क्रिया व्यक्ति की मृत्यु के 1 साल बाद अगले वर्ष के 2 नवंबर को ही किया जायेगा। इसे हिंदू धर्म में ‘बरसी’ का नाम दिया गया है। हिंदू धर्म में पहले श्राद्ध की तिथि प्रायः हिंदी माह व तिथि के अनुसार ही निकाली जाती है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुई है, तो उसका पहला श्राद्ध अगले वर्ष आश्विन माह के शुक्ल अथवा कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को ही किया जाएगा।

मृत्यु के कितने वर्ष बाद करना चाहिए पहला श्राद्ध ?

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हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसका पहला श्राद्ध बरसी होता है। जो मृत्यु के 1 वर्ष पश्चात किया जाता है। इसके पहले आने वाले पितृ पक्ष के दौरान मरने वाले व्यक्ति की श्राद्ध क्रिया नहीं की जाती। मरने वाले व्यक्ति की ‘बरसी’ हो जाने के बाद अगले वर्ष से पितृपक्ष के दौरान मृत्यु की तिथि के अनुसार उसका श्राद्ध विधि विधान से किया जा सकता है।

श्राद्ध कब नहीं करना चाहिए ?

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यूं तो पितृपक्ष के दौरान प्रतिवर्ष विधि विधान से पितरों एवं पूर्वजों का श्राद्ध एवं तर्पण किया जाना चाहिए। लेकिन कुछ ऐसी भी परिस्थितियां होती हैं जिसके अंतर्गत पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध की क्रिया करने की मनाही है।

आइए जानते हैं किन स्थितियों में पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध नहीं करना चाहिए –

  1. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार जब परिवार में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो जब तक मरने वाले व्यक्ति की ‘बरसी’ की क्रिया पूरी ना हो जाए, तब तक परिवार में कोई भी तीज, त्योहार अथवा उत्सव नहीं मनाया जाता है। यानी एक मृत्यु के 1 बाद से ही कोई भी तीज त्योहार मनाया जाता है। हिंदू धर्म में पितृपक्ष को बहुत ही शुभ एवं वार्षिक श्रद्धांजलि का पर्व माना गया है। यही वजह है कि जिस वर्ष परिवार में किसी का निधन हो जाता है, उस वर्ष अन्य तीज त्योहार की तरह ही पितृ पक्ष में पूर्वजों व पितरों का श्राद्ध एवं तर्पण भी नहीं किया जाता है।
  2. धार्मिक मान्यता के अनुसार जिस वर्ष परिवार में किसी का शादी-विवाह हुआ होता है, उस वर्ष भी पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों अथवा पितरों का श्राद्ध नहीं किया जाता है।

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