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अस्थि विसर्जन मंत्र क्या है ?

हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया अस्थि विसर्जन के बाद ही पूर्ण मानी जाती है। अस्थि विसर्जन मंत्र के उच्चारण के साथ ही किया जाता है अस्थि विसर्जन।

हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर प्रायः दाह संस्कार के माध्यम से उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। हालांकि बच्चो की मृत्यु होने पर उनका दाह संस्कार नहीं किया जाता, बल्कि उनके शव को जमीन के नीचे ही दफना दिया जाता है।

जब दाह संस्कार की प्रक्रिया के माध्यम से मृत शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है, तो पूरा शरीर तो चिता की अग्नि में जलकर राख हो जाता है, परंतु हड्डियां यानी अस्थि के अवशेष अब भी शेष रह जाते हैं। इन अस्थियों को यूं ही नहीं छोड़ा जाता, बल्कि विधि विधान से इन्हे नदी के जल में प्रवाहित किया जाता है। तब जाकर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी हो पाती है।

विधि विधान से किया जाता है अस्थि विसर्जन

मृत शरीर के अस्थियों के अवशेष को नदी के जल में यूं ही नहीं प्रवाहित किया जाता है। इसके लिए भी विधियां बनाई गई हैं। विधि विधानों का पालन करते हुए, पंडित के दिशा निर्देश पर मंत्रो उच्चारण के साथ अस्थियों को पवित्र नदी के जल धारा में प्रवाहित किया जाता है।

अस्थि विसर्जन संकल्प मंत्र

अस्थि विसर्जन मंत्र 4

हिंदू धर्म के हर पूजा पाठ में मंत्रोच्चारण का विशेष स्थान है। शादी विवाह से लेकर, कथा पूजा तक हर कार्यक्रम की संपन्नता के लिए अलग अलग मंत्र बनाए गए हैं, जिनका अपना अलग धार्मिक महत्व होता है। यहां तक कि मृत्यु के पश्चात अंतिम संस्कार की क्रिया की संपन्नता के लिए भी मंत्रोचारण किया जाता है।

अंतिम संस्कार से जुड़े मंत्र

अस्थि विसर्जन मंत्र 7
  • हिन्दू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसके अंतिम संस्कार के प्रक्रिया की शुरुआत, मृतक के शरीर के स्नान के साथ होती है। मृतक के शरीर को गंगा जल से स्नान कराते हुए ‘ॐ आपोहिष्ठा’ मंत्र का जाप करना चाहिए।
  • स्नान के पश्चात मृतक के शरीर को चंदन एवं फूलों से सजाया जाता है, इस दौरान ‘ॐ यमाय सोमं नुनुत, यामाय जुहुत हविः। यमं ह गच्छति अग्निदूतो अरंकृत।‘ मंत्र का जाप करना चाहिए।
  • इसके पश्चात दक्षिण दिशा की तरफ मुख कर के बैठकर हाथ में अक्षत, पुष्प एवं जल लेकर अंतिम संस्कार का संकल्प लेते हुए – ‘ (मरने वाले व्यक्ति का नाम) नामअहं प्रेतस्य प्रेतत्व, निर्वित्या उत्तम लोक प्राप्तयर्थ औधार्वदेहिकं करिश्ये’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

दाह संस्कार के पूर्व पांच पिंडदान के मंत्र

अस्थि विसर्जन मंत्र

हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के साथ पांच पिंडदान किया जाता है। ये पिंडदान जीवात्मा को संतुष्ट करने के लिए किया जाता है। हर पिंड से जुड़ा हुआ एक मंत्र है जो कुछ इस प्रकार है –

  • प्रथम पिंड को घर पर ही अंतिम संस्कार के संकल्प के पश्चात कमर पर रखा जाता है। इसके लिए -‘ (मरने वाले व्यक्ति का नाम) नामअहं (मरने का स्थान) मृतिस्थाने शवनिमित्तको वा, एश ते पिण्डो, मया दीयते, तवोपतिष्ठताम‘ मंत्र का उच्चारण किया जाना चाहिए।
  • दूसरे पिंड को शव को शवसैय्या पर लिटाने के बाद वक्ष की संधि पर रखा जाता है। इस दौरान -“ (मरने वाले व्यक्ति का नाम) नामअहं द्वारदेशे, पांथ निमित्तक एश ते पिण्डो, मया दीयते, तवोपतिष्ठताम’ मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
  • तीसरा पिंड शमशान घाट के रास्ते में पेट पर रखा जाता है। इसके लिए – (मरने वाले व्यक्ति का नाम) नामअहं चत्वरस्थाने खेचा निमित्तको विष्णुदैवतो वा, एश ते पिण्डो, मया दीयते, तवोपतिष्ठताम’ मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
  • चौथा पिंड शमशान घाट पर छाती पर अर्पित किया जाता है, इस दौरान -” (मरने वाले व्यक्ति का नाम) नामअहं शमशानस्थाने विश्रांति निमित्तको, भूतनामना रुद्रदैवतो वा, एश ते पिण्डो, मया दीयते, तवोपतिष्ठताम’ मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
  • पांचवा एवं आखिरी पिंड को शव को चिता पर रखने के पश्चात सिर पर अर्पित किया जाता है। इसके लिए (मरने वाले व्यक्ति का नाम) नामअहं चितास्थाने वायु निमित्तको यमदैवतो वा, एश ते पिण्डो, मया दीयते, तवोपतिष्ठताम’ मंत्र का उच्चारण किया जाता है।

मुखाग्नि से जुड़े मंत्र

अस्थि विसर्जन मंत्र 1

मृतक के दाह संस्कार के लिए जो चिता तैयार की जाती है, उसके लिए भी कुछ विधियों का पालन किया जाता है।

  • जिस स्थान पर चिता बनाई जाती है, उस स्थान को पहले साफ कर के, गोबर का लेप लगाया जाता है। यज्ञ वेदी की भांति उसे सजाते हुए- ‘ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेअश्विनोर्बाहुभ्याम पूष्णो हस्ताभ्याम। सरस्वत्यै वाचो यांतुर्यंनत्रिये, दधामि बहस्पतेष्टा, साम्राज्ये नाभिशिंचाम्यसौ” मंत्र का जाप किया जाता है।
  • शव को चिता पर लिटाते समय ‘ ॐ अग्ने नय सुपथा राये” मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
  • चिता को मुखाने देने के पश्चात ‘ॐ भूर्भुवः धौरिव भुम्ना’ मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
  • मुखाग्नि देने के पश्चात अपनी प्रचलित हो जाने पर घी के सात बार आहुति देते हुए-” ॐ इंद्राय स्वाहा” मंत्र का उच्चारण किया जाता है।

अस्थि विसर्जन मंत्र

अस्थि विसर्जन मंत्र 2

संस्कार की प्रक्रिया पूरी होने के पश्चात, चिता की अग्नि के ठंडे होने पार अस्थियां एकत्रित कर ली जाती है जिसे बाद में नदी के जल में विसर्जित किया जाता है। यह प्रक्रिया विधि विधान से की जाती है जिसके लिए हिंदुओ के पवित्र पुराण कूर्म पुराण में एक श्लोक लिखा गया है। जो कुछ इस प्रकार है –

यावदस्थीनि गंगाया तिष्ठंति पुरुषस्य तु।
तावद वर्ष सहस्त्त्राणि स्वर्गलोके महीयते।
तीर्थानाम परमं तीर्थ नदीनाम परमा नदी।
मोक्षदा सर्वभूताना महापातकिनामपि।
सर्वत्र सुलभा गंगा त्रिशु स्थानेषु दुर्लभा।
गंगाद्वारे प्रयागे च गंगासागर संगमे ।
सर्वेशामेव भूतानाम पापोपहतचेतसाम।
गतिमनवेषमाणनाम नास्ति गंगासभा गतिः।

इस श्लोक का हिंदी में अर्थ है कि जब तक करने वाले व्यक्ति की अस्थियां गंगा यमुना जैसी पवित्र नदियों में समाहित रहती है उतने समय तक स्वर्ग लोक में उसकी पूजा होती है। जिन पवित्र नदियों में सभी पाप धुल जाते हैं, अस्थियों को विसर्जित करने के लिए उसे उत्तम कोई जगह नहीं हो सकती।

अस्थियों को विसर्जित करने का मंत्र

अस्थि विसर्जन मंत्र 8
  • अस्थियों को चिता से उठाते समय ” ॐ त्वा मनसाअनार्तेंन, वाचा ब्रह्मणा त्रय्या विद्यया, पृथिव्यामक्षिकायमपा रसेन निवपाम्यसौ।” मंत्र का उच्चारण करते हुए अस्थियों को कलश में एकत्रित किया जाता है।
  • अस्थियों को नदी में विसर्जित करने से पहले हाथ में अक्षत फूल इत्यादि लेकर यमदेव का स्मरण करते हुए ” ॐ यमग्ने कव्यवाहन, त्वं चिनमन्यसे रविम। तत्रो गिर्भी श्रवाय्यम देवत्रा पनया युजम। ॐ यमाय नमः। अवह्यामि, स्थापयामि, ध्यायामि। मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
  • इसके पश्चात पितरों का आवाहन करते हुए -” ॐ इदम पितृभ्यो नमो अस्तवद्य ये, पूर्वासो य उपरास अयियुः। ये पार्थिवे रजस्या निशत्ता, ये वा नून सुवृजनासु विक्षु। ॐ पितृभ्योः नमः। अवह्यामि, स्थापयामि, ध्यायामि। मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
  • अब अस्थियों को जल में प्रवाहित करते हुए -” ॐ अस्थि कृत्वा समिधम तदस्तपो, असादयन शरीरम ब्रम्हा प्राविशत। ॐ सूर्य चक्षुर्गचछतु वामात्मा द्याम च गच्छ पृथिवीम च धर्मणा। अपो व गच्छ यदि तत्र ते हितमोषधीषु प्रति तिष्ठा शरीरैः स्वाहा।
  • अंत के मृतात्मा की शांति का ध्यान करते हुए -” ॐ ये चितपूर्व रितसाता रितजाता रिताविधाः। ऋषिंतपसवतो यम तपोजां अपि गछतात। ॐ आयुर्विश्वयु परितातु त्वा पातु प्रपथे पुरस्तात। यत्रासते सुकृतो यत्र तयियुः तत्र त्वा देवः सविता दधातु। ” मंत्र का उच्चारण किया जाते है। तब जाकर अस्थि विसर्जन की प्रक्रिया पूर्ण होती है।

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