दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुई थी सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु। 15 दिसंबर 1950 को हुई थी सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु।
भारत के लौह पुरुष तथा देश के पहले उप प्रधानमंत्री एवं ग्रह मंत्री के रुप में जाने जाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत की आज़ादी में बहुत ही अहम भूमिका निभाई थी। भारत को आज़ाद करने में तो इनका जो योगदान था, वो तो था ही, लेकिन उससे कहीं ज्यादा योगदान सरदार पटेल ने भारत को एक करने में दिया था। क्योंकि जब भारत आजाद हुआ था उसके बाद ये कई छोटी- छोटी रियासतों में बंट चुका था। 15 अगस्त, 1947 को भारत आज़ाद हुआ था, उस समय भारत में छोटी- बड़ी सभी रियासतें मिलाकर कुल 562 रियासतें थीं। इन रियासतों में से कुछ ऐसी भी रियासतें थीं, जिन्होंने स्वतंत्र रहने का फैसला कर लिया था, लेकिन फिर सरदार पटेल ही वो शख्स थे, जिन्होंने सारी रियासतों को भारत में वापस शामिल किया।
जूनागढ़ और हैदराबाद ने जब भारत आजाद हुआ, उसके बाद उन्होंने भारत में मिलने से इंकार कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि इसके पीछे कहीं न कहीं मोहम्मद अली जिन्ना और पाकिस्तान की चाल थी, लेकिन सरदार पटेल ने हार नहीं मानी। उन्होंने आखिर हैदराबाद के निजाम को आत्म समर्पण करने के लिए मना ही लिया और हैदराबाद को भारत में शामिल करा लिया। दूसरी तरफ़ जूनागढ़ में जनता का विद्रोह बहुत ज्यादा बढ़ गया था। इसी वजह से वहां का जो नवाब था, वो डर गया और वो डरकर पाकिस्तान भाग गया। आगे फिर भोपाल के नवाब की भी ये शर्त थी कि या तो वो आज़ाद रहना पसंद करेंगे, या फिर वो पाकिस्तान में मिल जाएंगे। इसमें भी सरदार पटेल ने एक अहम भूमिका निभाई और भोपाल को भी 1 जून, 1949 में भारत में शामिल कर लिया। इतने योगदान के बाद 1950 में अचानक 15 दिसंबर को तड़के सुबह तीन बजे दिल का दौरा पड़ा और उसी वक्त वो बेहोश गए। हालांकि फिर कुछ देर के बाद उन्हें होश आया , लेकिन वो ज्यादा देर तक जीवित नहीं रह पाए और उनकी मृत्यु हो गई। सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु कब और कैसे हुई, इससे जुड़ी हर एक चीज़ आप आगे इस पोस्ट में पढ़ने वाले हैं।
सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु
जैसा कि हम बात कर ही चुके हैं कि जितना योगदान सरदार पटेल का भारत को आज़ाद कराने में था, उससे ज्यादा योगदान उनका भारत को एक अखंड भारत बनाने में रहा है। उन्होंने भारत की आज़ादी के बाद छोटी- बड़ी करीब 562 रियासतों को भारत में मिलाया है। इन सबके बाद 15 दिसंबर, 1950 का वो दिन था जब सरदार वल्लभ भाई पटेल को दिल का दौरा पड़ता है। घड़ी में सुबह के तीन बज रहे होते हैं और सीने में दर्द उठने की वजह से सरदार पटेल बेहोश हो गए। उनके बेहोश होने की खबर पूरे देश भर में फैल गई। बेहोश होने के करीब 4 घंटे बाद सरदार पटेल को होश आया और उन्होंने पीने के लिए पानी मांगा। मणिबेन उन्हें गंगाजल में शहद मिलाकर पीने के लिए दिया। बस वही रात उनके जीवन की आखिरी रात थी और रात के 9 बजे सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु हो गई । इसके बाद पूरे देश में सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु की ख़बर फैल गई। खबर सुनने के बाद पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई।
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जीवन
सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 में गुजरात के नाडियाड में हुआ था। जब सरदार पटेल 13 वर्ष के थे, तभी उनका विवाह कर दिया गया था और जब उनकी उम्र 33 हुई तब उनकी पत्नी झवेर बा की कैंसर से मृत्यु हो गई। पटेल की पढ़ाई इंग्लैंड से पूरी हुई थी। इन्होंने वहीं से वकालत की पढ़ाई की थी। फिर 1913 में ये भारत लौट आए थे। यहां आने के बाद ये महात्मा गांधी से काफी प्रभावित हुए और सत्याग्रह की राह पर चल पड़े। अंग्रेज़ों से लड़ने में इनकी भी बहुत अहम भूमिका थी। इन्होंने देश की स्वतंत्र रियासतों को भारत में विलय करके अपनी एक। अलग पहचान बनाई। सरदार पटेल की नीतिगत दृढ़ता तथा कूटनीति कौशल के कारण ही महात्मा गांधी ने उन्हें ‘लौहपुरुष’ नाम से संबोधित किया था। इन्हें ‘भारत के विस्मार्क’ के नाम से भी जाना जाता है। यहीं नहीं ये आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री भी हो सकते थे लेकिन महात्मा गांधी ने इनसे प्रधानमंत्री की दावेदारी से नाम वापस लेने के लिए कहा। इन्होंने महात्मा गांधी की बात सुनी और प्रधानमंत्री के पद की दावेदारी से अपना नाम वापस ले लिया। जिसके बाद जवाहर लाल नेहरु भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। इनका जीवन बहुत ही सादगी भरा था। यहां तक की इनके पास अपना एक खुद का माकन तक न था और ये एक किराए के घर में रहा करते थे। जब इनका निधन हुआ, उस समय इनके खाते में महज़ 260 रूपये मौजूद थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु के 41 साल के बाद वर्ष 1991 में इन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया है। उनका सम्मान उनके पौत्र विपिन भाई पटेल द्वारा स्वीकार किया गया था।
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