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गांधी जी की मृत्यु कब हुई थी ?

30 जनवरी 1948 के दिन जैसे ही महात्मा गांधी जी की मृत्यु की खबर सामने आई पूरे देश में मातम पसर गया था। आगे पढ़ें गांधी जी की मृत्यु से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें –

30 जनवरी 1948 का दिन भारत के इतिहास का एक काला दिन था, क्योंकि इसी दिन गांधी जी की गोलियों से छलनी करके हत्या कर दी गई थी। गांधी जी की हत्या एक साजिश के तहत की गई थी, इस साजिश का ताना-बाना, 15 अगस्त 1947 को भारत देश के ब्रिटिश शासन से आजाद होने के बाद से ही बुनना शुरू किया जा चुका था। और आखिरकार 30 जनवरी 1948 को जब महात्मा गांधी बिरला भवन में अपनी संध्याकालीन प्रार्थना में शामिल होने जा रहे थे उसी समय नाथूराम गोडसे ने गांधी जी के पैर छूने के बहाने उन पर गोलियों की बरसात कर दी और मौके पर ही गांधी जी की मृत्यु हो गई।

1947 से ही रची जा रही थी हत्या की साजिश

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नवंबर 1947 से ही नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे, गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा और विष्णु रामकृष्ण करकरे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या की साजिश की जा रही थी। और इसके लिए हथियार तैयार किए जा रहे थे। गांधी जी की हत्या के 10 दिन पहले को इन्हे मारने का पहला प्रयास किया गया था जो असफल रहा। 20 जनवरी 1948 को बिरला भवन में प्रार्थना सभा के समय इनके पंजाबी शरणार्थी मदनलाल पाहवा ने इन्हें निशाना बनाकर बम से हमला किया परंतु यह बम गांधी जी के पास गिरने के बजाय दूर दीवार पर जाकर टकरा गया। इस हमले में गांधीजी बाल बाल बच गए। गांधी जी पर हुए इस हमले को पाकिस्तान के लिए गांधी जी द्वारा लिए गए कुछ फैसलों से जोड़कर देखा गया था। इस हमले के 10 दिन बाद 30 जनवरी 1948 को अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की निर्मम हत्या कर दी गई।

गांधी जी की मृत्यु के दिन क्या -क्या हुआ ?

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30 जनवरी 1948 को गांधी जी के मृत्यु वाले दिन बिरला हाउस के अपने कमरे में महात्मा गांधी सरदार पटेल से किसी गंभीर विषय पर चर्चा कर रहे थे। शाम के 5 बजे गांधी जी अपने कमरे से निकलकर प्रार्थना स्थल की तरफ बढ़े। नियमित तौर पर महात्मा गांधी 5:00 बजे प्रार्थना स्थल पर पहुंच जाते थे, लेकिन उस दिन उन्हें सरदार पटेल से चर्चा करते हुए थोड़ा विलंब हो गया था। गांधीजी आभा बेन एवं मनु बेन के कंधों का सहारा लेकर, गुरबचन सिंह के साथ प्रार्थना स्थल की तरफ बढ़ रहे थे। आमतौर पर जब महात्मा गांधी प्रार्थना स्थल पर जाते थे तब उनके साथ सुरक्षा के तौर पर दो आदमी आगे व दो आदमी पीछे चला करते थे। लेकिन हत्या वाले दिन उनके साथ कोई भी बॉडीगार्ड मौजूद नहीं था।

थोड़ा आगे बढ़ने पर गुरबचन सिंह किसी से बात करने में उलझ गए, लेकिन गांधी जी आभा बेन एवं मनु बेन के साथ आगे बढ़ते रहें। जमा हुई भीड़ ने गांधी जी को प्रार्थना स्थल पर पहुंचने के लिए रास्ता दिया। उसी वक्त नाथूराम गोडसे भीड़ में से निकलकर गांधी जी का पैर छूने के लिए झुका। पैर छूने के बहाने गोडसे ने अपने पास छिपा रखी पिस्तौल निकाली और ताबड़तोड़ तीन गोलियां गांधी जी के सीने पर चला दी। गोलियां लगते ही गांधी के मुंह से आखिरी शब्द निकला ‘हे राम ‘, और वो वहीं जमीन पर गिर पड़े, और गांधी जी की मृत्यु हो गई।

वहां मौजूद भीड़ ने नाथूराम गोडसे को मौके पर ही पकड़ लिया। बाद में नाथूराम गोडसे ने खुद अपना गुनाह कबूल किया, साथ ही उसने ये भी कहा कि उसे जो करना था वो उसने कर दिया, अब अगर उसे फांसी की भी सजा दे दी जाए तो उसे अफसोस नहीं है।

कैसे हुआ गांधी जी का अंतिम संस्कार

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गांधी जी की मृत्यु के एक दिन बाद 31 जनवरी 1948 को दिल्ली में यमुना नदी के किनारे गांधी जी का अंतिम संस्कार किया गया था। जब गांधी जी की हत्या की खबर सामने आई तो पूरे देश में मातम पसर गया था बापू को मानने वाला हर व्यक्ति सदमे में था। बापू के प्रति देशवासियों के प्यार और सम्मान को देखते हुए जवाहरलाल नेहरू ने लॉर्ड माउंटबेटन के सामने यह प्रस्ताव रखा की गांधी जी के शव को दो सप्ताह तक के लिए दर्शन के लिए रखा जाए। लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरू जी के इस प्रस्ताव को अपनी सहमति दी। लेकिन बाद में प्यारेलाल ने नेहरू जी के इस प्रस्ताव का विरोध किया और कहा कि गांधी जी ने उन्हें निर्देश दिया है कि उनकी मृत्यु के पश्चात जल्द से जल्द उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाए। प्यारेलाल की इस बात को सुनने के पश्चात महात्मा गांधी के अंतिम संस्कार को तुरंत करने का फैसला लिया गया।

गांधी जी के शव के अंतिम संस्कार की पूरी जिम्मेदारी रक्षा मंत्रालय को दी गई, और इस तरह अंग्रेज मेजर जनरल रॉय बुचर को गांधी जी के अंतिम संस्कार का मुख्य आयोजनकर्ता बनाया गया। 30 जनवरी की रात्रि को ही अंतिम संस्कार की पूरी तैयारी कर ली गई थी। अगले दिन गांधी जी के तीसरे बेटे रामदास के हाथों उनका अंतिम संस्कार किया जाना था।

31 जनवरी की सुबह शव को स्नान इत्यादि करा के नई सफेद धोती पहनकर अंतिम संस्कार के लिए तैयार किया गया। इसके पश्चात पूरे शरीर पर चंदन का लेप लगाया गया और उनके माथे पर सिंदूर से टीका लगाया गया। शव के सिरहाने पर उनके हाथ से बने कपास के हार और उनकी माला को रखा गया। इसके बाद गुलाब की पंखुड़ियां से सिरहाने की तरफ ‘हे राम’ एवं ‘ॐ’ लिखा गया।

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सुबह 11 बजे नागपुर से उनके तीसरे बेटे रामदास का आगमन हुआ इसके बाद गांधी जी की शव यात्रा प्रारंभ की गई। गांधी जी के शव को सैनिक ट्रक पर एक ऊंचा मंच बनाकर रखा गया। और इसके चारों तरफ कुछ विशेष व्यक्तियों को बैठाया गया। सुरक्षा की दृष्टि से इस ट्रक के आगे पीछे हजारों की संख्या में सैनिकों को चलने का आदेश दिया गया था। साथ ही यमुना नदी के किनारे पहुंचने तक के रास्ते में जगह-जगह पर हथियारों से भरी हुई गाड़ियां खड़ी की गई थी। गांधी जी की शव यात्रा में करीब 15 लाख लोग शामिल हुए थे।

यमुना किनारे शमशान घाट पर बापू के अंतिम संस्कार के लिए 12 फीट लंबा एवं चौड़ा एक चबूतरा तैयार किया गया था। जिस पर चंदन की लड़कियों से बापू की चिता तैयार की गई थी। करीब 4:20 पर शमशान घाट पहुंचने के पश्चात बापू के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया प्रारंभ हुई।

  • अंतिम संस्कार के लिए सर्वप्रथम बापू के शव को चबूतरे पर लिटाया गया। और चंदन की लकड़ी से चिता तैयार की गई।
  • तत्पश्चात पुजारी के मंत्र जाप के बीच यमुना नदी का पवित्र जल बापू पर छिड़का गया।
  • इसके पश्चात गांधी जी के तीसरे बेटे रामदास गांधी ने उन्हे मुखाग्नि दी। और इस तरह बापू पंचतत्व में विलीन हुए।
  • अंतिम संस्कार के 13 दिन पश्चात कलश में अस्थियों को इकट्ठा करके, फूलों से सजी रेलगाड़ी से प्रयागराज ले जाकर त्रिवेदी संगम में उनकी अस्थियों को विसर्जित किया गया।
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नोट: दिल्ली में यमुना नदी के तट पर महात्मा गांधी की समाधि बनाई गई है। यह समाधि काले संगमरमर से बनी हुई है। समाधि पर महात्मा गांधी द्वारा बोले गए अंतिम शब्द ‘हे राम ‘ अंकित किया गया है। इनकी समाधि को ‘राजघाट’ स्मारक के रूप में जाना जाता है।

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