Press "Enter" to skip to content

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कब हुई?

इतिहास के महान योद्धा पृथ्वीराज का अंत ऐसा हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी न की थी। आगे पढ़ें कैसे हुई थी पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु ?

इतिहास में पृथ्वीराज चौहान का नाम एक कुशल योद्धा के रूप में लिया जाता है। उन्होंने अपने बाल्य काल से ही युद्ध कौशल के सारे गुणों को सीख लिया था। चौहान वंश में जन्मे पृथ्वीराज ने अजमेर से लेकर दिल्ली तक अपनी वीरता और पौरुष के बल पर विजय पताका को फहराया था। इस वीर योद्धा का जन्म 1168 में गुजरात में राजा सोमेश्वप के यहां हुआ था। राजा सोमेश्वप उस समय अजमेर के राजा थे। पृथ्वीराज बहुत ही छोटे थे जब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद महज़ 13 साल की उम्र में पृथ्वीराज ने अजमेर के राजगढ़ की राजगद्दी को संभाला था। इतनी छोटी सी उम्र में ही उन्होंने गुजरात के वीर शासक भीमदेव से लोहा लिया था और भीमदेव से हुई जंग में उन्होंने भीमदेव को बुरी तरह से हराया था।

पृथ्वीराज के जो दादा थे, वो उस समय दिल्ली के शासक थे। उनके दादा ने भी पृथ्वीराज के साहस और बहादुरी के किस्से सुने ही थे। उनकी वीरता और पराक्रम से ही प्रसन्न होकर उनके दादा ने उन्हें दिल्ली के सिंहासन का अगला उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। उनकी वीरता की बात जब भी होती है तो एक किस्सा अक्सर सुनाया जाता है। एक बार पृथ्वीराज चौहान का सामना एक शेर से हुआ था। उन्होंने बिना किसी अस्त्र- शस्त्र के ही शेर को मौत के घाट उतार दिया था। तो इतने वीर और बहादुर थे पृथ्वीराज।

जब पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली का राज सिंहासन संभाला, उसके बाद ही उन्होंने राय पिथौरा किले का निर्माण करवाया था। उन्हें 6 अलग- अलग भाषाओं में महारथ हासिल थी। पृथ्वीराज जब तक जीवित रहे, तब तक उन्होंने अपने दुश्मनों का डटकर सामना किया था, लेकिन उनका जो अंत हुआ था, उसके बारे में किसी को भी अंदाज़ा नहीं था। न ही इतिहास में किसी भी वीर योद्धा का पृथ्वीराज के जैसा अंत कभी हुआ है। आखिर उनका अंत हुआ कैसे, इसकी चर्चा हम आगे इस पोस्ट में करेंगे।

तराइन का पहला युद्ध

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु

पृथ्वीराज की मृत्यु पर बात करने से पहले हमें उसके पीछे की कहानी को जानना होगा। इस कहानी की शुरुआत होती है, 1186 में, मोहम्मद गोरी के आने से। 1186 से लेकर 1191 के दौरान पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी का कई बार आमना- सामना हुआ था और पृथ्वीराज ने मोहम्मद गोरी को हर बार धूल ही चटाई थी।

मोहम्मद गोरी और पृथ्वीराज के बीच कितनी बार टक्कर हुई, इसको लेके अलग- अलग इतिहासकारों के अलग- अलग मत हैं। किसी का कहना है कि पृथ्वीराज चौहान ने 7 बार मोहम्मद गोरी को हराया था, तो किसी का कहना है कि उन्होंने 8 बार मोहम्मद गोरी को धूल चटाई थी। वहीं पृथ्वीराज रासो के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को 21 बार हराया है।

लेकिन इनमें से मुख्य रुप से तराइन के पहले तथा दूसरे युद्ध का जिक्र ही किया जाता है। तराइन का पहला युद्ध 1191 में हुआ था, इसमें मोहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान की सेना आमने- सामने आई थी। इतिहास में ये काफी महत्वपूर्ण युद्ध में से एक था। इसमें पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को बुरी तरह से हराया था। अपनी जान बचाने के लिए गोरी युद्ध का मैदान ही छोड़कर भाग गया था। अपने नेता को भागता देख, उसकी सेना भी युद्ध के मैदान से भाग निकली। फिर पृथ्वीराज चौहान ने उसका पीछा भी नहीं किया। पृथ्वीराज चौहान ने कई बार मोहम्मद गोरी को माफ किया था और उसे जीवन दान दिया था। ऐसा कहा जाता है कि 17 बार बंदी बनाने के बाद भी पृथ्वीराज ने गोरी को छोड़ दिया करते थे।

तराइन का दूसरा युद्ध और पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु 2

1191 में हुए तराइन के पहले युद्ध में मुंह की खाने के बाद, किसी को भी ये अंदाज़ा न था कि, मोहम्मद गोरी फिर से पृथ्वीराज चौहान के सामने लड़ने आ जाएगा। लेकिन, 1192 में मोहम्मद गोरी अपनी सेना को लेकर फिर वापस आया और इसके बाद तराइन का दूसरा युद्ध हुआ। इस युद्ध में भी मोहम्मद गोरी के बस की बात न थी कि वो पृथ्वीराज को हरा पाता, लेकिन इस बार उसका साथ दिया था जयचंद ने। जयचंद ने मौहम्मद गोरी से चुपके से हाथ मिला लिया था। उसके साथ की वजह से मोहम्मद गोरी ने इस बार पृथ्वीराज चौहान को हार का मुंह दिखाया था।

पृथ्वीराज को हराने के बाद गोरी उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर ले गया। पृथ्वीराज के साथ उनके बचपन के साथी चंदबरदाई को भी बंदी लिया गया था। इसके बाद गर्म सलाखों से पृथ्वीराज की आँखें फोड़ दी गई। इन सबके बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज के शब्दभेदी बाण के कौशल के बारे में पता था।

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु 3

चंदबरदाई ने उसे पृथ्वीराज के इस कौशल के के बारे में बताया हुआ था। फिर मोहम्मद गोरी ने चंदबरदाई से पृथ्वीराज चौहान की आख़िरी इच्छा पूछने को कहा। चंदबरदाई ने गोरी से उनके शब्दभेदी बाण के प्रदर्शन को लेकर अनुमति मांगी। गोरी की भी इच्छा थी कि आखिर वो भी देखे कि इस शब्दभेदी बाण में है क्या, जो हर तरफ़ इसके चर्चे हैं। तब ये फैसला हुआ कि पृथ्वीराज चौहान अपने शब्दभेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे। मंजूरी मिलने के बाद सब पृथ्वीराज की इस कला को देखने के लिए एकत्रित हुए। चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने मिलकर मोहम्मद गोरी से अपनी हार का बदला लेने और उस को मारने की योजना बना ली थी। जब उन्हें प्रदर्शन के लिए बुलाया गया तो उसके बाद चंदबरदाई ने एक दोहा कहा।

‘चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान।’

इस दोहे से पृथ्वीराज को संकेत मिल गया था मोहम्मद गोरी पर हमला करने का। जैसे ही दोहा समाप्त हुआ, पृथ्वीराज चौहान ने अपना शब्दभेदी बाण मोहम्मद गोरी को मार दिया और वो तुरंत मर गया। मोहम्मद गोरी के मरने के बाद, दुर्गति से बचने के लिए पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई ने भी एक दूसरे को मार दिया। इधर पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु की ख़बर सुनकर उनकी पत्नी संयोगिता ने भी अपनी जान दे दी थी। तो ऐसे हुई थी दिल्ली के आख़िरी हिंदू शासक पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु।

Read This Also: बाबर की मृत्यु कब हुई?

Be First to Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *