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बाबर की मृत्यु कब हुई?

ऐसा कहा जाता है कि किसी भी मुगल शासक को ढंग की मौत नसीब न हुई थी। आगे पढ़ें मुगल वंश के संस्थापक बाबर की मृत्यु कैसे हुई ?

भारत में 1526 में एक ऐसा वंश स्थापित हुआ था जिसने आने वाले कई सालों तक भारत में अपना दबदबा कायम किया था। इस वंश के शासकों की महानता और वीरता को आज तक याद किया जाता है। ये वंश कोई और नहीं बल्कि मुग़ल वंश था। इसको स्थापित करने वाला बाबर था।

इतिहास में बाबर का नाम एक महान शासकों में लिया जाता है। बाबर ने 1526 में इब्राहिम लोदी को हराकर मुगल वंश की स्थापना की थी। इसके बाद मुगल वंश 19वीं शताब्दी के मध्य तक चला था। मुगल शासनकाल में एक से एक महान शासक हुए थे, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि किसी भी मुगल शासक को ढंग की मौत नसीब न हुई थी।

मुगलिया सल्तनत को स्थापित करने वाले बाबर की मौत को लेकर भी कई सारे मत हैं, किसी इतिहासकार का कहना है कि उसकी मौत किसी गंभीर बीमारी से हुई थी, तो किसी का कहना है कि उसे ज़हर देकर मारा गया था। खैर, किस तथ्य में कितनी सच्चाई है, ये आपको इस पोस्ट में आगे पता चलेगा।

काबुल, फरगना और समरकंद में बाबर की जीत

बाबर की मृत्यु 1

बाबर ने बहुत कम उम्र में ही पारिवारिक ज़िम्मेदारी उठा ली थी। बाबर का पैतृक स्थान फरगना था, और उसने फरगना को बहुत जल्दी जीत लिया था। लेकिन, ज्यादा दिन तक वो यहां राज़ न कर पाया और फरगना उसके हाथों से निकल गया। फरगना से हार मिलने के बाद, बाबर दर- दर भटकने लगा था और उसका जीवन काफी मुश्किल से बीत रहा था। कष्टों को सहने के बाद बाबर के जीवन में एक मौका आया।

1502 में बाबर ने मौके का फ़ायदा उठाया। जब सब उसके दुश्मन आपस में एक- दूसरे से लड़ाई करने में व्यस्त थे, तब उसने अफगानिस्तान के काबुल को जीतकर वहां अपना कब्ज़ा जमा लिया। यहां से बाबर ने जीत का बिगुल बजा दिया था। काबुल में जीत हासिल करने के बाद, बाबर फिर अपने पैतृक स्थान फरगना गया और इस बार बाबर वहां से जीत हासिल करके लौटा, फरगना के साथ उसने समरकंद में भी जीत हासिल की।

बाबर का भारत आगमन

मध्य एशिया में भी बाबर ने अपना साम्राज्य फैलाने की कोशिश की, लेकिन वो अपना साम्राज्य उत्तर एशिया में फैलाने में सफल न हुआ। फिर उसकी नज़र भारत पर पड़ी। उस समय की भारत की जो राजनीतिक स्थिति थी, वो भी बाबर के पक्ष में थी। बाबर को ये पता था कि भारत में उस समय विघटन की स्थिति पैदा हो रखी है, और सत्ता का कोई भी मजबूत दावेदार बचा नहीं है। बस, उसे बाहर में आने के लिए एक मौके की तलाश थी। उस समय दिल्ली का शासक इब्राहिम लोदी था।

इब्राहिम लोदी एक कमज़ोर और असक्षम शासक था। पंजाब का गवर्नर दौलत खान, दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं था। वहीं इब्राहिम लोदी का एक चाचा था जिसका नाम आलम खान था, वो बाबर को जानता था और उसकी योग्यता से वाकिफ था। फिर, इब्राहिम लोदी से तंग आकर दौलत खान और आलम खान ने बाबर को भारत आने का न्यौता दिया। बाबर तो इसी फिराक में था, उसने तुरंत न्यौता स्वीकार किया और भारत आने के लिए तैयार हो गया।

फिर 1526 में पानीपत का युद्ध हुआ, जिसमें बाबर की सेना और इब्राहिम लोदी की सेना आमने- सामने आई। इसमें लोदी को करारी हार सहनी पड़ी और इसी युद्ध के बाद भारत में बाबर ने मुगल वंश की स्थापना की थी। बाबर ने भारत में ज्यादा समय तक राज़ नहीं किया था क्योंकि भारत में साम्राज्य स्थापित करने के कुछ समय के भीतर ही उसकी मृत्यु हो गई थी। बाबर की मृत्यु कैसे हुई थी, इसकी चर्चा हम आगे इन पोस्ट में करेगें।

बाबर की मृत्यु

बाबर की मृत्यु 2

भारत में जीत हासिल करने के बाद, महज़ 4 साल तक ही बाबर ने यहां शासन किया था। इसके बाद 1530 में 26 दिसंबर को उसने 47 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली थी। बाबर की मृत्यु कैसे हुई, इस पर कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, अलग- अलग इतिहासकारों का अलग- अलग मत है।

बाबर की प्राकृतिक मृत्यु-

बाबर की मृत्यु को लेकर ऐसा कहा जाता है कि वो अचानक ही बहुत ज्यादा बीमार पड़ गया था। उसकी बीमारी के बारे में किसी को पता नहीं था। मरने के कुछ समय पहले से ही वो अपनी बीमारी से जूझ रहा था और उसे अज्ञात बुखार हुआ था। उसका इलाज़ किसी के भी पास नहीं था। जिसके चलते एक दिन अचानक बाबर की मृत्यु हो गई।

बाबर की हत्या

ये बात सबको काफी हैरान करती है कि इतने शक्तिशाली और महान शासक की मौत महज़ बुखार से कैसी हो सकती थी। ऐसा भी कौन सा खतरनाक बुखार था, जिसका कोई भी इलाज़ नहीं कर पाया। ऐसे में कई इतिहासकारों ने ये बात कही कि बाबर की मृत्यु कोई स्वाभाविक मौत नहीं थी, उसकी हत्या की गई थी। असल में जब बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली में अपना राज्य स्थापित किया, उसके बाद उसने इब्राहिम लोदी की मां को बाबर ने अपने राज्य में शरण दे दी थी। लेकिन, इब्राहिम की मां की आंखों में बदले की आग जल रही थी। उसने बाबर के खाने में ज़हर मिलाना शुरू कर दिया और ज़हर खाने से उसकी मौत हो गई।

बेटे हुमायूं को बचाने की चक्कर में हुई मौत

बाबर की मौत को लेकर सबसे सही तथ्य इसी को माना जाता है। असल में बाबर ने अपने बेटे हुमायूं को अपनी जागीर को संभालने के लिए आगरा से बाहर भेजा था। लेकिन फिर उसकी अचानक तबियत खराब हो गई, जिसके चलते उसे नाव से आनन फानन में आगरा लाया गया। उसकी हालत देखकर बाबर काफी परेशान हो गया था। फिर उस वक्त के मशहूर हकीम अबू बका ने बाबर से हुमायूं के ठीक होने के लिए उसकी सबसे कीमती चीज़ दान करने को कहा। तब बाबर ने खुद को केमरी बताते हुए, हुमायूं के ठीक होने की दुआ मांगी थी। इसी के बाद से ही ऐसा कहा जाता है कि हुमायूं की तबीयत में सुधार आने लगा था, और जैसे- जैसे हुमायूं ठीक होने लगा, वैसे ही वैसे बाबर की हालत बिगड़ने लगी थी। जब हुमायूं पूरी तरह से ठीक हो गया, उसी दिन बाबर ने अंतिम सांस ली थी और उसका निधन हो गया। बाबर की मृत्यु के बाद उसका बेटा हुमायूं ही उसका उत्तराधिकारी बना था।

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