महावीर स्वामी की मृत्यु 527 ईसा पूर्व में पावापुरी, मगध में हुई थी। ये स्थान वर्तमान में बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित है। आगे पढ़ें महावीर स्वामी की मृत्यु एवं जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें –
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर थे। अंतिम तीर्थंकर होने के साथ ही महावीर स्वामी जैन धर्म के संस्थापक भी थे। महावीर स्वामी का बचपन काफी खुशहाल तथा एक बहुत ही संपन्न परिवार में बीता था। लेकिन बहुत ही कम उम्र में इन्होंने मोह माया को त्याग दिया था और एक भिक्षु बनकर दुनिया को उपदेश दिया था।
महावीर स्वामी के बारे में ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने अपने जीवन के 30 साल दुनिया के मार्गदर्शन और लोगों को उपदेश देने में बिता दिए थे। छोटी सी उम्र में ही उन्होंने गृह त्याग कर दिया था और सारे सांसारिक सुख छोड़कर वो ज्ञान प्राप्ति की राह पर चल दिए थे।
जब महावीर 42 साल के हुए तो उन्हें एक वृक्ष के नीचे काफी समय से ध्यान करने से ज्ञान प्राप्त हो गया। ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने अपना सारा जीवन जैन धर्म के सिद्धांतों की शिक्षा देने में व्यतीत कर दिया था। आज भी महावीर स्वामी की विरासत ज़िंदा है और यही नहीं दुनियाभर में लाखों लोग उनकी शिक्षाओं से प्रेरित होकर सही मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित ही रहे हैं।
महावीर स्वामी बहुत ही शांत और सरल थे और अपना जीवन उन्होंने लोगों का भला करने में बिता दिया था, फिर एक दिन कृष्ण अमावस्या के दिन उन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया। महावीर स्वामी की मृत्यु और जीवन से जुड़ी सारी बातें आज आप सभी इस आर्टिकल में आगे जानने वाले हैं।
महावीर स्वामी का जीवन परिचय
महावीर स्वामी का जन्म 540 ईसा पूर्व में हुआ था। उनका जन्म वर्तमान के बिहार में एक राजघराने में हुआ था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था और उनकी माता का नाम त्रिशला था। महावीर के पिता सिद्धार्थ उस समय एक स्थानीय सरदार थे, वहीं उनकी माता त्रिशला लिच्छवी वंश की एक राजकुमारी थी। इनकी दो बहनें भी थीं। बचपन में इनका नाम वर्धमान रखा गया था।
वर्धमान नाम इनका इसलिए रखा गया था क्योंकि इस नाम का अर्थ होता है ‘समृद्ध या उच्चतर’। जब ये 28 वर्ष के हुए तो इनके माता पिता दोनों का देहांत हो गया था। इसके बाद 30 वर्ष की आयु में तो उनके मन में सांसारिक सुख त्यागने का विचार आया और उन्होंने सारे सुख और एक आरामदायक जीवन का त्याग कर दिया। इसके बाद वो ज्ञान की खोज में निकल पड़े।
वर्धमान के पास सब कुछ था, सुख, संपत्ति, सब, फिर भी उन्होंने धर्म की राह पर चलना और कष्टों भरा जीवन जीना ही बेहतर समझा। घर को त्यागने के बाद, उनके लिए अगले 12 साल काफी कष्टदायक रहे। वो दर- दर एक भिक्षुक के रूप में भटकते रहे और भिक्षुक के रुप में उन्होंने आत्म त्याग के बारे में जाना। इस दौरान ज्ञान प्राप्ति के लिए महावीर ने कठिन तपस्या की। उनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि वो काफी बड़े तपस्वी थे, उनकी तपस्या इतनी ज्यादा चरम थी कि वो एक पैर पर घंटों खड़े हो जाया करते थे।
महावीर स्वामी को 42 वर्ष की आयु में गहरा ज्ञान प्राप्त हुआ। बस इसी के बाद से उन्होंने अपने अनुयायियों को धर्म का मार्ग बताना शुरु किया और अपने जीवन को लोगों को जैन धर्म के सिद्धांत सिखाने में व्यतीत कर दिया। इनके आगे के जीवन यानि विवाह को लेकर श्वेताम्बर संप्रदाय का मानना है कि इन्होंने यशोदा नाम की लड़की से विवाह किया था और इनकी एक बेटी भी थी, जिसका नाम अयोज्जा था। वहीं दिगंबर संप्रदाय का महावीर स्वामी के विवाह को लेकर ऐसा मानना है कि उन्होंने कभी विवाह किया ही नहीं था और वो बाल ब्रह्मचारी रहे थे।
महावीर स्वामी की मृत्यु
महावीर स्वामी सबसे प्यार का व्यवहार करते थे। उन्होंने ब्रह्मचर्य को चतुर्याम धाम में जोड़कर, एक पंच महाव्रत रूपी धर्म को चलाया था। महावीर स्वामी हिंसा के सख्त खिलाफ थे, उन्होंने ज़िंदा रहते हर प्राणी के प्रति अहिंसा की भावना को ही अपनाया था। उन्हें इस बात के बारे में पता चल चुका था कि दूसरों को दुख पहुंचा कर ही इन्द्रियों के सुख तथा विषय-वासनाओं के सुख को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने अपने उपदेश में ये कहा था कि व्यक्ति की को आत्म होती है, वो अनंत और शुद्ध होती है।
आत्मा को मुक्ति केवल सही विश्वास, ज्ञान और आचरण के माध्यम से ही मिल सकती है। इसके बाद 72 वर्ष की आयु में महावीर स्वामी ने मोक्ष को प्राप्त किया। उन्होंने अपने जीवन का अंतिम उपदेश कुशीनगर के फाजिलनगर से लगे हुए स्थान पावानगर में दिया था। इसी जगह पर कृष्ण अमावस्या यानि दिवाली के दिन महावीर स्वामी की मृत्यु हुई थी। महावीर स्वामी की मृत्यु तिथि एवं वर्ष को लेकर कई मतभेद है। लेकिन कहा जाता है कि इनकी मृत्यु 527 ईसा पूर्व में पावापुरी, मगध में हुई थी। ये स्थान वर्तमान में बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित है।
इसके बाद 1971 में महावीर स्वामी के निर्वाण स्थल पर एक जैन मंदिर को स्थापित कराया गया था। महावीर स्वामी के उपदेश आज भी लोग दुनियाभर में मानते हैं।
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