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महाराणा प्रताप सिंह की मृत्यु कब हुई?

महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उनके दुश्मन अकबर की आंखों से भी छलक गए थे आंसू। आगे पढ़ें महाराणा प्रताप की मृत्यु एवं उनकी वीरता से जुड़ी कहानी।

अगर भारत का इतिहास उठाकर देखें तो ऐसे कई वीर योद्धा मिल जाएंगे, जिनके किस्से हमें हमेशा अचंभित करते हैं। लेकिन उन योद्धाओं में एक ऐसा भी राजपूत योद्धा रहा है जिसके किस्सों और वीरता की कहानी के आगे बाकी सबके किस्से फीके लगते हैं। वो वीर राजपूत योद्धा कोई और नहीं, बल्कि महाराणा प्रताप सिंह है। राजस्थान से शुरू होकर महाराणा प्रताप ने पूरे भारत की शान को मजबूत किया था।

जब तक उनका जीवन था, उनका एक ही मकसद था कि उन्हें किसी की भी गुलामी स्वीकार न थी और वो अपने मेवाड़ राज्य को किसी के सामने झुका हुआ नहीं देखना चाहते थे। हुआ भी कुछ ऐसा ही था, उन्होंने कभी किसी के आगे माथा नहीं टेका। जबकि उनसे कहीं ज्यादा ताकतवर और शक्तिशाली सेना मुगलिया शासक अकबर की थी, फिर भी महाराणा प्रताप ने उन्हें भी अपनी वीरता का लोहा मानने पर मजबूर कर दिया था। अकबर ने लाख जतन किए कि मेवाड़ पर जीत का झंडा फहराकर महाराणा प्रताप की हार का जश्न मनाया जा सके। लेकिन वो महाराणा प्रताप थे, उन्हें हराना किसी के बस की बात नहीं थी। उन्होंने सबको ये बता दिया कि वो असल मायने में एक महाराणा हैं।

महाराणा प्रताप की वीरता तथा गौरवमयी संघर्ष के किस्से आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देते हैं। उनका जीवन शांति से नहीं बीता था। अपनी राजधानी को बचाने के लिए और अपने सम्मान को कभी न झुकने देने के लिए, महाराणा प्रताप ने बंजारों की तरह जंगल- जंगल घूमकर दो वक्त की रोटी खाई थी, लेकिन मजाल है कि वो अकबर की अधीनता को कभी स्वीकार करते।

उन्हें बहुत प्रलोभन दिए गए, लेकिन कोई प्रलोभन उन्हें झुका न पाया। ऐसे वीर योद्धा ने अपना पूरा जीवन अपने राज्य की सेवा में निकाल दिया था। फिर 1597 में 19 जनवरी को उनका निधन हो गया था, लेकिन जाते- जाते वो अपनी राजधानी को एकदम सुरक्षित कर चुके थे। अकसर महाराणा प्रताप की मृत्यु को लेकर सवाल उठते हैं कि उनकी मृत्यु हुई कैसे, क्या मुगल शासक अकबर से लड़ते हुए महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई थी या उनकी मौत स्वाभाविक थी? उनकी मृत्यु को लेकर जितने भी सवाल हैं, वो इस पोस्ट में आपको मिल जाएंगे। इस पोस्ट में आप जानेंगे कि आखिर महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई कैसे थी।

हल्दीघाटी के युद्ध में खो दिया था सबकुछ

महाराणा प्रताप सिंह की मृत्यु 2

महाराणा प्रताप बहुत बड़े वीर योद्धा थे तथा वो युद्ध कला में काफी निपुण थे। उन्होंने अपनी आन बान शान को लेकर कभी भी किसी के साथ समझौता नहीं किया। किसी भी परिस्थिति में उन्होंने अपना हौसला कभी भी कम नहीं होने दिया था। अगर उनकी वीरता की पुष्टि चहिए, तो उनके द्वारा लड़े गए युद्ध के बारे में जानना बेहद आवश्यक हो जाता है।

इन युद्धों में प्रमुख रूप से हल्दीघाटी के युद्ध की बात की जाती है। ये भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना रही है। इस युद्ध से ये ज़ाहिर होता है कि उनका हौसला कभी भी किसी के आगे कम न हुआ। हल्दीघाटी का युद्ध 8 जून, 1576 ईसवी के हुआ था। इसमें एक तरफ़ महाराणा प्रताप थे, तो दूसरी तरफ मुगलिया शासक अकबर की ताकतवर सेना थी।

महाराणा प्रताप की सेना में 400 धनुर्धारी और 3000 घुड़सवार थे। वहीं अकबर की सेना में 5000 से 10000 तक सैनिक शामिल थे। इतनी बड़ी और भयंकर सेना के सामने टिक पाना काफी मुश्किल था। ये युद्ध लगभग तीन घंटे तक चला था। युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप ज़ख्मी भी हो गए थे, लेकिन फिर भी वो मुगल सेना के हाथ नहीं लगे थे। ज़ख्मी होने के कारण, वो पहाड़ी पर चले गए थे ताकि अपने सैनिकों को एकत्रित कर पाएं। इतने में जब वो वापस आए तब तक युद्ध के मैदान में उनके और भी सैनिक घायल हो चुके थे।

अकबर की सेना के आगे महाराणा प्रताप की सेना टिक न पाई। अकबर के हाथ न आने की वजह से महाराणा प्रताप जंगलों में जाकर छुप गए। जंगल में जाकर वो फिर से अपनी शक्ति को बढ़ाने की कोशिश में जुट गए और अपनी सेना को बढ़ाने लगे। इस दरमियान उन्होंने छापेमारी नीति को सीखा और इसी को अपनी आगे की जिंदगी में अपनाया। इसी नीति के तहत ही वो कभी अकबर के हाथ न लगे थे।

मुगलों से अपना राज्य वापस कैसे पाया ?

महाराणा प्रताप सिंह की मृत्यु

हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने अपनी सेना को मजबूत करने में लगा दिया था। उस समय का इनका एक किस्सा काफी प्रचलित है। एक बार जब ये जंगल में इधर उधर भटक रहे थे, तब उनके बेटे को अमर सिंह को भूख लगी, जंगल में उन्हें खाने को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही थी। लेकिन बेटे को भूखा देखकर पिता का मन कहां शांत रहने वाला था। इसीलिए महाराणा प्रताप ने घास की रोटी बनाकर अमर सिंह को दी, लेकिन वो भी उनके नसीब में नहीं थी। वो घास की रोटी भी बिल्ली लेकर भाग गई थी। उस समय उनका स्वाभिमान थोड़ा सा डगमगा गया था। उन्हें देखकर लोगों को लगने लगा था कि शायद वो अकबर की अधीनता स्वीकार कर लेंगे।

लेकिन फिर पृथ्वीराज राठौड़, जो कि एक कवि थे, उन्होंने महाराणा प्रताप को एक पत्र लिखा और उनके स्वाभिमान को पुनः जाग्रत किया। इसके बाद अकबर से मिली हार का बदला लेने के लिए महाराणा प्रताप अपने राज्यों को वापस पाने की रणनीति तैयार करने लगे थे। फिर जब दिवेर का युद्ध हुआ, उसके बाद उन्होंने अपने कुछ क्षेत्रों को वापस हासिल किया। फिर उनकी चाहत और बढ़ गई और धीरे- धीरे करके उन्होंने अपने सारे क्षेत्र मुगलों से वापस हासिल कर लिए थे। दिवेर के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप के आगे, मुगल शासन कहीं न कहीं कमज़ोर पड़ने लगा था, यही कारण है कि महाराणा प्रताप ने अपने क्षेत्रों को वापस पा लिया था।

कैसे हुई महाराणा प्रताप की मृत्यु ?

महाराणा प्रताप सिंह की मृत्यु 3

मेवाड़ को वापस अपने कब्जे में लेने के बाद महाराणा प्रताप काफी खुश थे। उन्हें अपने राज सिंहासन प्राप्त करने का दिन याद आ गया था। मेवाड़ को वापस जीतने के बाद महाराणा प्रताप ने करीब 11 सालों तक मेवाड़ के उत्थान के लिए काम किया था, फिर एक दिन अचानक उनकी नई राजधानी चावंड में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु को लेकर ऐसा कहा जाता है कि एक दिन जब वो शिकार पर गए तो वहां उनकी ही कमान, उनकी आंत में जाकर लगी, इससे वो घायल हो गए और उनकी मौत हो गई।

जब वो घायल हुए, उसके बाद उन्हें बहुत चिंता थी। उनकी चिंता कहीं न कहीं जायज भी थी, क्योंकि उस समय मुगल शासन एकदम चरम पर था और हर कोई उसकी अधीनता स्वीकार कर रहा था। ऐसे में उन्हें डर था कि उनके जाने के बाद उनका राज्य कहीं बिखर न जाए, और उनका बेटा अकबर के अधीन न आ जाए। इस पर उनके सामंतों ने उन्हें कुल की रक्षा का वचन दिया, जिसके बाद उन्हें थोड़ी शांति मिली और उन्होंने अपने प्राणों को त्याग दिया। ये दिन 19 जनवरी, 1597 का था। महाराणा प्रताप की मृत्यु ने सबको स्तब्ध कर दिया था। ऐसा कहा जाता है कि उनकी मौत पर अकबर भी रोया था l सच में ऐसा वीर और निडर योद्धा कभी कभी ही देश में जन्म लेता है।

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