बिरसा मुंडा की मृत्यु आज भी बनी हुई है एक रहस्य। इनकी मृत्यु स्वाभाविक थी या अंग्रेजों की सोची समझी साजिश? आगे इस पोस्ट में पढ़ें बिरसा मुंडा की मृत्यु एवं जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें –
बिरसा मुंडा को आदिवासियों के महानायक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही अंग्रेज़ों के खिलाफ मोर्चा उठा लिया था। बिरसा मुंडा 25 साल के भी नहीं थे जब उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ विद्रोह करने का बिगुल बजा दिया था। महज़ 4 से 5 फिट के बिरसा मुंडा ने अंग्रेज़ों को दांतों चने चबाने के लिए मजबूर कर दिया था। इतनी कम उम्र में बिरसा मुंडा ने जो कर दिखाया था, वो अंग्रेज़ों को हज़म ही नहीं हो पा रहा था। इसीलिए अंग्रेज़ों ने बिरसा मुंडा को पकड़ने और मारने में पूरी ताकत लगा दी थी।
बिरसा मुंडा की मृत्यु जब हुई, उसके बाद हर तरफ हड़कंप मच गया था। सबका ये मानना था कि बिरसा मुंडा की हत्या हुई है और अंग्रेज़ों ने डर के कारण उन्हें मौत के घाट उतार दिया है, लेकिन अंग्रेज़ों ने इस बात से साफ़ इंकार कर दिया था। अंग्रेज़ों ने उनकी मौत को स्वाभाविक बताया था। लेकिन अंग्रेजों की बात में किसी को भी सच्चाई नज़र नहीं आ रही थी, क्योंकि उस समय की परिस्थितियां कुछ और ही दर्शाती हैं। जिसका जिक्र हम आगे इस लेख में करेंगे। आज भी ये सवाल एक रहस्य बना हुआ है, कि बिरसा मुंडा की मृत्यु स्वाभाविक थी या फिर उनकी हत्या हुई थी। चलिए बात करते हैं कि बिरसा मुंडा की मौत के समय की परिस्थितियां क्या थीं, जिसके बाद आप खुद ये निर्णय लेने में सक्षम हो जाएंगे कि उनकी मृत्यु स्वाभाविक थी या फिर उनका मरना अंग्रेजों की एक सोची समझी साजिश थी।
बिरसा मुंडा की मृत्यु: बिरसा मुंडा की बिगड़ी तबियत और हुई मौत
बिरसा मुंडा ने अंग्रेज़ों की नाक में दम करके रखा था। उनसे तंग आकर अंग्रेजों ने उन्हें फरवरी, 1900 में गिरफ्तार कर लिया था। जब वो गिरफ़्तार हुए थे, तब तक उनकी तबियत में कोई भी खराबी नहीं थी। लेकिन जैसे- जैसे जेल में रहते हुए वक्त बीतता गया, उनकी तबियत खराब होने लगी। आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि बिरसा मुंडा को रांची जेल में बंद किया गया था। बिरसा मुंडा 20 मई, 1900 से पहले एकदम ठीक थे, उनकी तबियत भी एकदम अच्छी थी, लेकिन 20 मई, 1900 के बाद उनकी तबीयत में एकाएक गिरावट आ गई थी। कोर्ट में ही 20 मई को उनकी हालत बिगड़ने लगी थी। कोर्ट की पेशी के बाद उन्हें वापस जेल में ले जाया गया। वहां जाने के बाद वो ठीक भी हो गए थे, लेकिन फिर से उनकी स्थिति बिगड़ने लगी थी। 9 जून, 1900 का वो दिन था, जब उनकी हालत पूरी तरह से बिगड़ गई थी। उन्हें खून की उल्टियां हुईं और उसके बाद ही उनकी मौत हो गई। इसे सुनकर तो ऐसा ही लगता है कि उनकी मौत एक स्वाभाविक मौत थी। लेकिन अब बात करते हैं कहानी के दूसरे पहलू की। जिसके बाद आपको पता चलेगा कि उनकी मौत स्वाभाविक नहीं थी बल्कि एक साजिश थी।
बिरसा मुंडा की मृत्यु: अंग्रेजों की एक साजिश
बिरसा मुंडा को मौत जेल में हैजा के कारण हुई थी। ऐसा कहा गया था कि उन्हें हैजा हो गया था जिसकी वज़ह से वो बच नहीं पाए। लेकिन अब यहां सवाल ये उठता है कि जेल में इतने कैदी थे, तो हैजा सिर्फ बिरसा मुंडा को ही क्यों हुआ, बाकी कैदियों को कुछ क्यों नहीं हुआ? आखिर जेल में सारे कैदी एक जैसे ही खाना खाते हैं, एक ही जगह का पानी पीते हैं, तो हैजा होना बात किसी को भी रास नहीं आई थी। बिरसा मुंडा के व्यवहार से तो सभी परिचित थे, अंग्रेज़ी सेना तो उनसे बहुत परेशान थी। कहीं न कहीं अंग्रेजों को ये पता था कि अभी तो बिरसा मुंडा जेल में है तो बाहर कोई आक्रोश पैदा नहीं हो रहा है। लेकिन, जैसे ही उनकी रिहाई होती है, वैसे ही अंग्रेज़ों के लिए खतरा फिर से बढ़ सकता है और उनकी सत्ता छिन सकती है। क्योंकि बिरसा मुंडा ने अकेले ही अंग्रेजों को भारत से बाहर भेजने पर मजबूर कर दिया था। इसीलिए कुछ लोगों का ये मत है कि अंग्रजों ने अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए ही जेल में उनके खाने में ज़हर मिलाना शुरू कर दिया और ज़हर की वजह से वो कमजोर होते चले गए और अंत में बिरसा मुंडा की मृत्यु हो गई। वहीं अगर यूं अचानक किसी की मौत होती है, तो उसके शरीर का पोस्टमार्टम किया जाता है। बिरसा मुंडा का भी पोस्टमार्टम हुआ था, लेकिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट अपने पक्ष में करवाना अंग्रेजों के लिए कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी। उस समय जेलर भी अंग्रेज़ी थे, अधिकारी भी अंग्रेज़ी थी, जेल के डॉक्टर भी अंग्रेज़ी थे। तो ज़ाहिर सी बात है पोस्टमार्टम की रिपोर्ट भी अंग्रेजों के हिसाब से ही चलती।
बिरसा मुंडा का अंतिम संस्कार
बिरसा मुंडा का जब पोस्टमार्टम हो गया, उसके बाद अंग्रेजों ने ज़रा सी भी देर नहीं की और बिरसा मुंडा के शव को ले जाकर जला दिया। इससे ये साफ होता है कि अंग्रेज़ सारे सबूतों को मिटा देना चाहते थे। अगर ऐसा न होता तो अंग्रेज उनके शव को उनके परिजनों को सौंप देते और मुंडा रीति रिवाज के अनुसार उनके शव को दफनाया जाता। लेकिन अगर शव दफन किया गया होता, तो बाद में शायद सच्चाई पता करने के लिए लोग उनके शव को निकाल लेते और फिर से पोस्टमार्टम कराया जा सकता था। बस इसी भय से बिना देर किए रांची के कोकर स्थित डिस्टीलरी पुल के निकट उनके शव को जलाकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
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