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कैसे हुआ श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार ?

श्री कृष्ण जी की मृत्यु कैसे हुई ? कहां उन्होंने अपने प्राणों को त्यागा ? और श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार कैसे हुआ ? आगे इस पोस्ट में पढ़े –

द्वापर युग में श्री विष्णु भगवान ने श्री कृष्ण के रूप में इस धरती पर आठवां अवतार लिया था। पूरे 125 साल तक इन्होंने इस धरती पर मानव रूप में वास किया और फिर अपने प्राणों का त्याग कर बैकुंठ धाम चले गए। श्री कृष्ण जी की मृत्यु कैसे हुई ? कहां उन्होंने अपने प्राणों को त्यागा ? और श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार कैसे हुआ ? इन सब बातों में किसी न किसी कहानी के साथ एक आस्था भी जुड़ी हुई है। जो आगे हम इस पोस्ट में पढ़ने वाले हैं –

कैसे हुआ था श्री कृष्ण का देहांत ?

श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार 3

पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद जब कौरवों की मां गांधारी ने युद्ध भूमि में अपने 100 पुत्रों को मृत पाया तो पुत्र शोक से व्याकुल गांधारी ने श्री कृष्ण को इसका जिम्मेदार ठहराते हुए उनके पूरे यदुवंश के नष्ट होने का श्राप दे दिया। श्री कृष्ण ने गांधारी के इस श्राप को सहर्ष स्वीकार किया।

महाभारत के युद्ध के बाद श्री कृष्ण द्वारका में आकर बस गए। द्वारका नगरी यूं तो बहुत शांत और खुशहाल थी, परंतु यहां के युवा अति चंचल व चपल थे। एक बार की बात है ऋषि विश्वामित्र, वशिष्ठ, नारद व दुर्वासा श्री कृष्ण से एक औपचारिक बैठक करने के लिए द्वारका आए हुए थे। उसी समय श्री कृष्ण जी के पुत्र ‘सांब’ ने अपने साथियों के साथ मिलकर शरारत के उद्देश्य से स्त्री के वेश में ऋषियों से मुलाकात की और उनके सामने गर्भवती होने का अभिनय करते हुए, होने वाले बच्चे के लिंग के बारे में पूछने लगा। इस पर ऋषियों ने क्रोधित होकर श्राप दे दिया कि, उसके गर्भ से लोहे का तीर निकलेगा जिससे उसका पूरा कुल और साम्राज्य नष्ट हो जाएगा। सांब ने जब ये सारी बातें उग्रसेन को बताई तो उग्रसेन ने इस श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उसे ‘तांबे से बने तीर’ का चूर्ण नदी में विसर्जित करने की सलाह दी। सांब ने उग्रसेन के आदेश का पालन किया। परंतु फिर भी ऋषियों द्वारा दिया गया श्राप खत्म नहीं हुआ।

ऋषियों के श्राप का असर हुआ और द्वारका में पाप बढ़ने लगा, चारों तरफ अमानवीयता फैलने लगी, बड़ों का सम्मान घटने लगा। द्वारका की ऐसी स्थिति को देखकर श्री कृष्ण व्यथित होने लगे। अपनी प्रजा को पापों से मुक्ति दिलाने के लिए श्री कृष्ण ने सबको प्रभास नदी के निकट जाकर मुक्ति पाने का आदेश दिया। लेकिन इसके विपरीत नदी तट पर जाकर भी पूरे यदुवंश कुल के लोग भोग -विलास और मदिरा में ही लिप्त रहें।

नशे की हालत में ही सात्यकि एवं कृतवर्मा के बीच अश्वथामा की मृत्यु को लेकर बहस छिड़ गई, जो बढ़ते-बढ़ते युद्ध में तब्दील हो गई और सात्यकि ने कृतवर्मा की हत्या कर दी। कृतवर्मा की मृत्यु से क्रोधित अन्य यदुवंशो ने सात्विक को मार डाला। जैसे ही कृष्ण को इस बात की जानकारी हुई श्री कृष्ण वहां प्रकट हुए। उन्होंने ‘प्रभास नदी’ के घाट पर मौजूद एरका घास को हाथ में उठाया तो वो घास एक छड़ में बदल गई, और इसी घास से श्री कृष्ण ने दोषियों को दंड दिया।

श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार

घाट पर मौजूद सभी यदुवंशी नशे में लिप्त थे और इस हालत में सबने अपने हाथ में एक घास उठा ली, और घास छड़ में बदलती गई। इस तरह से सब आपस में ही भिड़ गए, और एक-एक कर मारे गए। इस तरह से गांधारी और ऋषियों के श्राप से यदुवंश विनाश की तरफ बढ़ रहा था। इसके पश्चात बलराम जिन्हे शेषनाग के अवतार के रूप में जाना जाता है, ने समुद्र तट पर पर एकाग्रचित होकर अपने शरीर का त्याग किया।

श्री कृष्ण के पुत्र सांब ने तांबे के जिस तीर को चूर्ण बनाकर प्रभास नदी में प्रवाहित किया था, उसका एक चूर्ण मछली ने निगल लिया था। प्रभास नदी के तट पर जीरू नाम का एक शिकारी रहता था, जिसने नदी से उस मछली को पकड़कर, उसके शरीर से उस धातु को निकाल लिया। और उसी धातु से उसने एक नुकीली तीर बनाई, और शिकार के लिए निकल गया। श्री कृष्ण उस समय जंगल में ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए थे। उनके पैर की मणि की चमक बहुत तेज थी। जीरू शिकारी ने इसे हिरण समझा और निशाना साध दिया। और इस तरह से ये तीर श्री कृष्ण को लगा और श्री कृष्ण ने अपने प्राणों का त्याग कर दिया और अपने धाम में वापस चले गए।

नोट : पौराणिक मान्यता के अनुसार जीरू शिकारी पूर्व जन्म में किष्किंधा का राजा बालि था, जिसपर श्री राम जी ने चुपके से वार किया था।

श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार –

पौराणिक मान्यता के अनुसार जब श्री कृष्ण के मृत्यु की खबर अर्जुन को मिली तो पांचों पांडवों ने द्वारका पहुंचकर वैदिक रीति-रिवाज के अनुसार श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार किया। ऐसी मान्यता है कि जब पांडवों द्वारा श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार किया गया, तो उनका पूरा शरीर तो जल गया लेकिन हृदय ज्यों का त्यों बना रहा, और उस पर अग्नि का कोई असर नहीं हुआ। तब पांडवो ने उनके हृदय को निकाल कर समुद्र के जल में प्रवाहित कर दिया। समुद्र में जाकर श्री कृष्ण जी का हृदय एक मुलायम लोहे के पिंड में बदल गया।

क्या आज भी जिंदा है श्री कृष्ण का हृदय –

श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार 2

धार्मिक मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में अवंतिकापुरी में एक राजा थे जिनका नाम था इंद्रयुग्म। ये विष्णु जी की भक्ति में लीन रहते थे। एक रात स्वप्न में इन्हें दिखा कि भगवान विष्णु इन्हें नील माधव अवतार में दर्शन देने वाले हैं। अगले दिन ये नील माधव को ढूंढने निकल पड़े। करते हुए नदी में स्नान करते हुए इन्हें मुलायम लोहे का पिंड मिला, जिसे हाथ में लेते ही विष्णु जी की आवाज इनके कानों में पड़ी कि -‘मुलायम लोहे का ये पिंड मेरा हृदय है, और हमेशा यह पृथ्वी पर विराजमान रहेगा। ‘ धार्मिक मान्यता के अनुसार राजा इंद्रयुग्म ने जगन्नाथ मंदिर की मूर्ति में इस पिंड को स्थापित कर दिया जहां आज भी भगवान श्री कृष्ण का हृदय धड़कता है।

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