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अंतिम संस्कार कितने प्रकार के होते हैं ?

अलग-अलग धर्म में अलग-अलग प्रकार से किया जाता है अंतिम संस्कार। अकेले हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के प्रकार कई हैं। आइए इस पोस्ट के जरिए पढ़े अंतिम संस्कार के अलग-अलग प्रकार के बारे में –

अंतिम संस्कार से जुड़े नियम एवं विधि हर धर्म में अलग-अलग होती है। किसी धर्म में मृत शरीर को दफना दिया जाता है, तो किसी धर्म में अग्नि में जला दिया जाता है। हर धर्म में अंतिम संस्कार के लिए अलग-अलग विधि अपनाई जाती है, लेकिन सबका उद्देश समान होता है। रीति-रिवाज के साथ विधि विधान से अंतिम संस्कार करने के पीछे हर धर्म का उद्देश्य, मृतक की आत्मा को शांति दिलाना होता है। जिससे मरने वाले व्यक्ति की आत्मा अपने इस जन्म के बंधन से मुक्त होकर, अगले सफर पर जा सके।

अंतिम संस्कार के प्रकार

अंतिम संस्कार के प्रकार 7

इस संसार में मृतक के अंतिम संस्कार की लिए कई प्रकार की विधियां अपनाई जाती हैं। इनमें से कुछ विधियां धार्मिक मान्यता के चलते निभाई जाती हैं, तो कुछ विधियां भौतिक स्थिति पर भी निर्भर करती हैं। जैसे भारत जैसी देश जहां लकड़ी की बहुलता पाई जाती, यहां के मुख्य धर्म हिंदू धर्म में धर्म में अंतिम संस्कार के लिए दाह संस्कार की विधि अपनाई जाती है। वही इराक, अरब ईरान जैसे देश जहां प्रायः रेगिस्तानी जमीन होती है, ऐसे क्षेत्रों में प्राय मृतक के शरीर को जमीन में दफनाया जाता है। वहीं दक्षिण अमेरिका जैसे देश जहां की नदियों में प्रचुर मात्रा में बहाव देखने को मिलता है, वहां पर शव को प्रायः नदी के जल में प्रवाहित करने की रीति निभाई जाती है।

आइए जानते हैं अंतिम संस्कार के अलग अलग प्रकार के बारे में विस्तार से –

मृतक का दाह संस्कार

अंतिम संस्कार के प्रकार 1

प्रायः हिंदू धर्म के अंतिम संस्कार एवं सिख धर्म के अंतिम संस्कार में मृतक के शव का दाह संस्कार किया जाता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत शव को लकड़ी से बनी चिता पर रखकर अग्नि के हवाले कर दिया जाता है। इसके अलावा बौद्ध धर्म में भी कुछ जगह दाह संस्कार के माध्यम से अंतिम संस्कार किया जाता है। दाह संस्कार की क्रिया के लिए अब विद्युत शवदाह गृह का प्रयोग आम हो गया है। इसकी मुख्य वजह लकड़ी की कमी है।

नोट: हिंदू धर्म में जब किसी बच्चे की मृत्यु होती है, तो उसके अंतिम संस्कार की क्रिया दाह संस्कार के माध्यम से नहीं होती, बल्कि उसके शव को जमीन में ही दफना दिया जाता है।

शव को दफनाना

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मृतक के शव को दफनाने की परंपरा अत्यंत प्राचीन एवं प्रचलित है। एक -दो नहीं बल्कि कई धर्मों एवं देशों में मृतक का अंतिम संस्कार करने के लिए शव को दफनाने की विधि अपनाई जाती है। शव को दफनाने की क्रिया की शुरुआत सबसे पहले यहूदी धर्म में हुई थी, इसके पश्चात मुस्लिम धर्म के अंतिम संस्कार में, ईसाई धर्म के अंतिम संस्कार में, जैन धर्म के अंतिम संस्कार में, इसके साथ ही कई अन्य धर्मों में मृतक के अंतिम संस्कार के लिए शव को दफनाया जाने लगा।

शुरुआती दौर में ईसाई धर्म में मृतक के शव को चर्च में ही दफना दिया जाता था, बाद में इसके लिए कब्रिस्तान बनाए गए। हर धर्म से जुड़े कब्रिस्तान अलग-अलग होते। मुस्लिम धर्म में तो शिया और सुन्नी के कब्रिस्तान में भी कई प्रकार का विभाजन देखने को मिलता है।

शव को जल में प्रवाहित करना

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दक्षिण अमेरिका जैसे देश जहां की नदियों में प्रचुर मात्रा में बहाव देखने को मिलता है, वहां पर शव को प्रायः नदी के जल में प्रवाहित करने की रीति निभाई जाती है। इसके साथ ही हिंदू धर्म के अंतिम संस्कार में अग्नि दाग के साथ-साथ कहीं कहीं जल दाग देने की भी प्रथा निभाई जाती है। इस प्रथा के अंतर्गत शव को पत्थर के एक बड़े टुकड़े से बांधकर, नाव में रख कर नदी के बीचो-बीच जाकर गहरे जल के अंदर तेज बहाव में डुबो दिया जाता है। प्रायः हिंदू धर्म में किसी बच्चे की मृत्यु होने पर उसे दफनाने के साथ-साथ जल दाग देने की विधि अपनाई जाती है।

शव को खुले आसमान में छोड़ना

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मृतक के अंतिम संस्कार की यह प्रक्रिया प्रायः पारसी धर्म के अंतिम संस्कार में निभाई जाती है। पारसी धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके अंतिम संस्कार के लिए उसे जलाने अथवा दफनाने की बजाय मृतक के शव को ‘टावर ऑफ साइलेंस ‘ नामक स्थान पर छोड़ दिया जाता है, जहां पर चील-कौवे इत्यादि जीव, शव को भोजन के रूप में ग्रहण कर लेते हैं। पारसी धर्म के अलावा तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायियो के अंतिम संस्कार के लिए भी इसी से मिलती-जुलती प्रक्रिया अपनाई जाती है।

तिब्बत में बौद्ध धर्म के अनुयायियों के अंतिम संस्कार में निभाई जाने वाली इस विधि के पीछे धार्मिक महत्व के साथ-साथ व्यावहारिक महत्व भी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस प्रक्रिया का उद्देश्य ‘आत्म बलिदान ‘ करना है। अब बात करते हैं व्यावहारिक महत्व की। दरअसल तिब्बत देश काफी ऊंचाई पर बसा हुआ है, जहां की जमीन काफी पथरीली है। यहां शव को जलाने के लिए ना तो पर्याप्त लकड़िया मिल पाती है, और पथरीली जमीन होने की वजह से कब्र खोदना भी मुश्किल होता है। यही वजह है यहां शव के टुकड़े कर के खुले आसमान के नीचे पशु पक्षियों के भोजन के रूप में छोड़ दिया जाता है।

शवों का ममीकरण

अंतिम संस्कार के प्रकार 5

मृतक के अंतिम संस्कार की ये प्रक्रिया अत्यंत प्राचीन व अद्भुत है। मेक्सिको, चीन, श्रीलंका थाईलैंड, तिब्बत जैसे देशों में शव के ममीकरण की विधि अपनाई जाती रही है। इस मामले में मिस्त्र सबसे आगे हैं। मिस्त्र के गिजा पिरामिडो में रखे लगभग 3500 साल पुराने ममी के ताबूत आज भी एक रहस्य बने हुए हैं।

शव के ममीकरण के लिए किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके शव पर एक विशेष प्रकार का मसाला लगाकर, कपड़े में लपेटकर उसे एक ताबूत में बंद कर दिया जाता है। शव पर लगे मसाले की वजह से सालों साल तक शरीर ज्यों का त्यों बना रहता है। अंतिम संस्कार की इस प्रक्रिया के पीछे ये विश्वास था कि एक न एक दिन मरने वाला व्यक्ति फिर से जिंदा हो सकता है।

शव को गुफा में बंद कर देना

अंतिम संस्कार के प्रकार 3

अंतिम संस्कार की यह प्रक्रिया प्रयास इसराइल और इराक की सभ्यता में देखने को मिलती है। दरअसल जब ईसा मसीह को सूली से उतारा गया था, तो उनके शव को गुफा के अंदर ही रखा गया था, और तीन दिन बाद ईसा मसीह पुनर्जीवित हो गए थे।

इसी को ध्यान में रखते हुए प्रारंभिक यहूदियों और उस युग के कबीलों में शव को गुफा में रखने की विधि का प्रचलन हुआ। इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए मरने वाले व्यक्ति के शव को शहर अथवा सार्वजनिक स्थलों से दूर बने गुफा के अंदर रख दिया जाता है, और फिर गुफा को बाहर से पत्थर की मदद से बंद कर दिया जाता है।

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