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क्या दामाद अंतिम संस्कार कर सकता है ?

हिंदू धर्म में दामाद को अपने सास-ससुर का अंतिम संस्कार करने का अधिकार नहीं है ? क्या अन्य धर्मों में दामाद अंतिम संस्कार कर सकता है ? अलग-अलग धर्म से जुड़े नियम पढ़े इस पोस्ट में –

इस धरती पर जन्म लेने वाले हर प्राणी की मृत्यु सुनिश्चित है। जीव इस धरती पर जन्म लेता है, अपने पूरे जीवन काल को जीता है और फिर एक निश्चित समय पर इस दुनिया को छोड़कर चला जाता है। जीवन और मृत्यु इसी जीवन के दो पहलू हैं। जीव जंतु से लेकर मनुष्य तक हर प्राणी को  इस पहलू से होकर गुजरना है। अंतर सिर्फ इतना है कि मनुष्य का जीवन रीति-रिवाज और नियमों के बंधनों से बंधा हुआ है, जबकि जीव जंतु इन बंधनों से मुक्त हैं।

अगर बात करें मनुष्य की तो इस धरती पर जन्म लेने वाला हर मनुष्य, रीति-रिवाज नियम- कानून के बंधनों में बंधा होता है। हर धर्म से जुड़ा इंसान फिर चाहे वो हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हो या जैन पारसी, यहूदी सबके अलग अलग नियम एवं रीति रिवाज होते हैं, जिनका पालन मनुष्य को जीवन पर्यंत करना होता है. मृत्यु के पश्चात भी विधि विधान के साथ अंतिम संस्कार की क्रिया पूरी होने के बाद ही मनुष्य का जीवन सफल होता है, और उसकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

दामाद अंतिम संस्कार 1

अब अगर बात करें अंतिम संस्कार की तो हर धर्म में अंतिम संस्कार से जुड़े नियम भी अलग-अलग होते हैं। किसी धर्म में मृतक के शरीर को दफना दिया जाता है, तो कहीं मृत शरीर को अग्नि के हवाले कर दिया जाता है, यही नहीं कुछ ऐसे भी धर्म हैं जिसमें मृत शरीर को ना तो दफनाया जाता है और ना ही दाह संस्कार किया जाता है बल्कि यूं ही खुले आसमान में चील -कौओं के भोजन के रूप में छोड़ दिया जाता है। किसी भी धर्म की अंतिम संस्कार की विधि जो भी हो, लेकिन उस विधि को पूरा करने के लिए भी अलग-अलग नियम बनाए गए हैं।

अंतिम संस्कार से जुड़े नियमों में एक नियम बेहद खास है। और वो नियम है कि मरने वाले का अंतिम संस्कार किसके हाथों से किया जाएगा।

मृतक का अंतिम संस्कार

दामाद अंतिम संस्कार 2

मृतक के अंतिम संस्कार से जुड़ा एक नियम लगभग हर धर्म में समान है, और वो नियम है कि मरने वाले का अंतिम संस्कार किसके हाथों किया जाएगा ? लगभग हर धर्म में मृतक के अंतिम संस्कार का अधिकार उसके बेटे को प्राप्त होता है। यदि मरने वाले व्यक्ति की पुत्र के रूप में कोई संतान है तो अंतिम संस्कार करने का पहला अधिकार उसी को होता है। परंतु जब पुत्र ना हो तो इस स्थिति में क्या किया जाए ?

हिंदू धर्म में

हिंदू धर्म के पवित्र पुराण, गरुड़ पुराण के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसे मुखाग्नि देने का पहला अधिकार उसके बेटे को होता है। अगर मरने वाले व्यक्ति का कोई बेटा ना हो तो ऐसी स्थिति में उसका भाई, भतीजा या यदि पिता जीवित हैं तो पिता उसे मुखाग्नि दे सकते हैं। यदि किसी विवाहित महिला की मृत्यु होती है, तो उसे मुखाग्नि देने का पहला अधिकार उसके पति को और फिर उसके पुत्र को होता है। हिंदू धर्म में महिला को अंतिम संस्कार करने का अधिकार प्राप्त नहीं है।

क्या दामाद कर सकता है अंतिम संस्कार ?

दामाद अंतिम संस्कार 3

हिंदू धर्म के शास्त्रों के मुताबिक दामाद से किसी भी प्रकार का आर्थिक अथवा शारीरिक सहयोग लेना वर्जित माना गया है। हिंदू धर्म की परंपरा में बेटी के घर का पानी पीना भी, माता-पिता के लिए वर्जित माना गया है। हालांकि बदलते हुए समय के साथ इसमें काफी बदलाव देखने को मिला है, लेकिन अंतिम संस्कार से जुड़े नियमों में कोई भी बदलाव नहीं हुआ है। धार्मिक मान्यता के अनुसार हिंदू धर्म में दामाद द्वारा सास-ससुर का अंतिम संस्कार करना वर्जित माना गया है। इसके साथ ही सास-ससुर के अंतिम संस्कार में दामाद ना तो कोई आर्थिक ना ही कोई शारीरिक मदद कर सकता है। ऐसी मान्यता है कि बेटी का पति यानी दामाद सास-ससुर की अर्थी को हाथ भी नहीं लगा सकता।

नोट: यूं तो लगभग हर धर्म में अंतिम संस्कार का अधिकार सिर्फ बेटे को ही प्राप्त है, बेटा ना होने की स्थिति में परिवार के सदस्यों में से कोई और ये क्रिया कर सकता है। किसी भी धर्म में अंतिम संस्कार की क्रिया करने के लिए दामाद को स्थान नहीं दिया गया है। लेकिन मुस्लिम धर्म में अंतिम संस्कार की क्रिया करने का अधिकार दामाद को भी प्राप्त है। मुस्लिम धर्म में जब किसी महिला की मृत्यु होती है तो उसका अंतिम संस्कार पति के हाथों किया जाता है पति के शारीरिक रूप से अक्षम होने या पति के न होने की स्थिति में मृत महिला का बड़ा बेटा या दामाद अंतिम संस्कार क्रिया की जिम्मेदारी निभाता है।

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