अंधविश्वास को तोड़ने के लिए जीवन के अंतिम क्षणों में मगहर के लिए रवाना हो गए थे कबीरदास। आगे पढ़े कबीरदास की मृत्यु से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
सातवीं सदी ईसा पूर्व के महान कवि कबीर दास का जन्म वाराणसी में हुआ था। कबीरदास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के एकमात्र ऐसे कवि हैं जो आजीवन लोगों तथा समाज के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात ही करते रहे हैं। भारत के महान संत एवं समाज सुधारक के रुप में जाने जाने वाले कबीर दास ने भक्ति आंदोलन पर काफ़ी प्रकाश डालने का काम किया है। अगर बात करें कबीर नाम की तो ये नाम अरब भाषा से लिया गया है। अरबी भाषा में अल- कबीर का मतलब होता है, महान’। वहीं इस्लाम धर्म में ईश्वर का 37वां नाम भी कबीर था। इसीलिए अकसर ये सवाल सामने आता है कि आखिर कबीर दास हिंदू थे या मुस्लिम?
आज के समय में कबीर पंथ ही है जो कबीर की विचारधारा एवं परंपरा को आगे बढ़ाने का काम कर रहा है। कुछ आंकड़ों सामने भी आए हैं, जिनके मुताबिक आज करीब ढाई करोड़ कबीर पंथी लोग हर जगह मौजूद हैं। कबीर जी की शुरुआती ज़िंदगी की अगर बात करें, तो उसके बारे में बहुत सटीक एवं स्पष्ट जानकारी किसी को भी नहीं। लेकिन ऐसी मान्यता है कि उन्होंने 1398 से लेकर 1518 तक अपना जीवन जिया था और लोगों का मार्गदर्शन किया था। अपने जीवन के अंतिम दिनों में कबीर काशी से मगहर की ओर रवाना हो गए थे और वहीं मगहर में ही उन्होंने अपने प्राणों को त्यागा था। लेकिन आखिर क्यों कबीर दास जीवन के अंतिम क्षणों में मगहर के लिए रवाना हुए थे, पूरी ज़िंदगी काशी में बिताने के बाद आखिरी समय में उन्होंने मगहर जाना ही क्यों चुना? ऐसे कई सारे सवाल जो अक्सर आप सबको परेशान करते हैं, उनके जवाब आज आपको यहां मिलने वाले हैं। इस पोस्ट में आज हम आपको कबीरदास की मृत्यु के बारे में बताएंगे।
कबीर दास की मृत्यु
कबीर दास ने अपना पूरा जीवन काशी में व्यतीत किया, लेकिन अंत समय में वो मगहर की ओर रवाना हुए। इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण था। असल में काशी को सब मोक्षदायिनी नगरी के रूप में जानते थे। वहीं काशी के पास मगहर को सब अपवित्र स्थान के रूप में जानते थे। ऐसा माना जाता था कि जो व्यक्ति मगहर में मृत होता है, उसको नर्क लोक की प्राप्ति होती है तथा अगले जन्म में वो गधा या फिर किसी जानवर के रूप में धरती पर जन्म लेता है। कबीर दास जी बस मगहर के इसी अंधविश्वास को तोड़ने के लिए ही अपने अंत समय में मगहर चले गए थे। कबीर दास चाहते थे कि हर कोई इस बात को माने कि मगहर में मरने के बाद किसी को भी नर्क की प्राप्ति नहीं होती है, ये तो बस व्यक्ति के कर्मों पर निर्भर करता है। इसीलिए जीवन के अंतिम दिनों को कबीर दास ने मगहर में ही व्यतीत किए थे। कबीरदास की मृत्यु 1518 में मगहर में ही हुई थी। यहां पर उनकी समाधि और उनकी मजार दोनों बनाई गईं हैं। अब आप सभी के मन में ये सवाल आ रहा होगा कि कबीर दास की समाधि और मजार दोनों क्यों बनाई गई है? तो यहां पर आपको बता दें कि जब कबीरदास की मृत्यु हुई तो उसके बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर विवाद खड़े हो गए। हिंदू और मुस्लिम पक्ष दोनों अपने अपने रीती रिवाज के अनुसार उनका अंतिम संस्कार करना चाहते थे। क्योंकि ऐसा माना जाता था कि कबीर दास किसी भी धर्म के नहीं थे। विवाद होने के बाद जब कबीर दास के शव से चादर हटाई गई, तो चादर के नीचे किसी को भी उनका शरीर नहीं मिला। उनके शरीर की जगह चादर के नीचे फूलों का एक ढेर पड़ा हुआ था। बाद में इन फूलों को हिंदुओं और मुसलमानों ने आधा- आधा बांट लिया। जिसके बाद हिंदुओं ने अपने रीती रिवाज से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया और मुस्लिमों ने अपने रीति रिवाज के अनुसार उन फूलों का अंतिम संस्कार किया। यही कारण है कि मगहर में उनकी समाधि और मजार दोनों हैं। कबीर दास जी हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक थे।
मगहर में हुई कबीरदास की मृत्यु
मगहर उत्तरप्रदेश के संत कबीर नगर से तीस किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम में स्थित एक कस्बा है। मगहर को लेकर अलग- अलग व्यक्ति के अलग- अलग मत हैं। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में जो भी बौद्ध भिक्षु होते थे, वो इसी रास्ते से कुशीनगर, कपिलवस्तु तथा लुंबिनी आदि कैसे प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों के लिए प्रस्थान करते थे। ऐसे में अक्सर उन बौद्ध भिक्षुओं के साथ लूटपाट और मार धाड़ की खबरें सामने आया करती थीं। यही कारण है कि इस रास्ते को ही ‘मार्ग हर’ यानि मगहर नाम दे दिया गया। वहीं कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि मगहर नाम यहां का इसलिए नहीं पड़ा था, बल्कि ये नाम इसलिए पड़ा था क्योंकि यहां से जो भी व्यक्ति गुजरता है, वो सीधे हरी के पास पहुंचता है।
खैर, इसको लेकर जो भी मान्यता हो, कबीरदास की मृत्यु के बाद ये जगह पवित्र मानी जाने लगी थी। कबीर दास हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक थे और जाते- जाते वो धार्मिक सामंजस्य तथा आपसी भाईचारे की विचारधारा को एक विरासत के रूप में सबके लिए छोड़ कर गए।
कबीर दास का जीवन
कबीर दास का जन्म काशी के लहरतारा में हुआ था। वो एक विधवा ब्राह्मण के पुत्र थे। ऐसा कहा जाता है कि कबीर दास की मां ने उन्हें सामाजिक अपयश के भय के कारण उन्हें त्याग दिया था। मां के त्यागने के बाद कबीर दास का पालन पोषण एक मुस्लिम जुलाहे परिवार ने किया था। तब उनके पिता नीरू और माता नीमा हुए थे। इसके बाद कबीर दास को वैष्णव संत रामानंद ने अपना शिष्य बनाया। जब कबीर दास महज 13 वर्ष के थे, तभी रामानंद की भी मृत्यु हो गई थी। कबीर के जन्म को लेकर अक्सर मतभेद होते हैं। क्योंकि कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि कबीर दास जन्म से ही मुसलमान थे, लेकिन गुरु रामानंद से उन्हें हिंदू धर्म के बारे में जानकारी प्राप्त हुई थी। रामानंद ने ही कबीर के मन में वैराग्य भाव उत्पन्न किए थे और उन्होंने उनसे दीक्षा ली थी। इसके बाद कबीर दास ने हिंदू मुस्लिम एकता के लिए काफ़ी काम किया और अंत में 1518 में मगहर में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
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