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जयशंकर प्रसाद की मृत्यु कब हुई थी?

जब बात हिंदी साहित्य की होती है तो जयशंकर प्रसाद का नाम सबसे पहले लिया जाता है। इनकी रचनाओं को हम सभी कक्षा 5 से लेकर पढ़ते आ रहे हैं, और यहीं नहीं कक्षा 5 से लेकर कक्षा 12 तक जयशंकर प्रसाद की रचनाएं और 12 के बाद स्नातक में भी इनकी रचनाओं का अंश हमें देखने को मिलता है। ये एक बहुत ही प्रसिद्ध महाकवि कथाकार, नाटककार थे। इनकी रचनाएं पढ़ने में काफी सरल और सुलभ होती हैं। ऐसा माना जाता है कि जयशंकर प्रसाद ने ही पहली बार आधुनिक लेखन की शुरुआत की थी। उनकी रचनाओं में आपको आधुनिक लेखन देखने को मिलता है। जयशंकर प्रसाद की कुछ रचनाएं जैसे आकाशदीप, आंधी, इंद्रजाल, उर्वशी, गुंडा, ग्राम, घिसू, प्रतिध्वनिे, अंतिम कहानी सालवती और प्रलय आज भी वैसे ही ज्वलंत एवं समसामयिक लगती हैं।

जयशंकर प्रसाद की साधना उनका साहित्य ही थी। छायावाद युग के ये मशहूर लेखक, उपन्यासों को ऐसे लिखा करते थे, कि जैसे मानो ये उनकी पूजा कर रहे हों। इनकी इसी लगन की झलक इनकी रचनाओं में भी देखने को मिलती है। यही कारण है कि इनकी रचनाएं लोगों के दिल को छू लेती थी। छायावाद युग के ऐसे महान कवि का जन्म बनारस में हुआ था। बनारस में जन्मे इस कवि ने अपने आखिरी क्षणों में भी बनारस में ही रहना पसंद किया। काशी से बाहर जाना जयशंकर प्रसाद ने कभी स्वीकार ही नहीं किया था। ऐसा लगता था कि उनके रोम- रोम में काशी बसा हुआ था। तभी तो जब उनके अंतिम समय में उनके प्रियजनों ने उनसे काशी से बाहर चलकर इलाज करने की बात की तो उन्होंने तुरंत इंकार कर दिया था। ऐसे में अब ये प्रश्न सामने आता है कि जयशंकर प्रसाद की मृत्यु कब हुई थी। तो इस पोस्ट में आप आगे जानेंगे कि आखिर जयशंकर प्रसाद की मृत्यु कब और किस वजह से हुई थी, जिसके चलते देश ने एक महान कवि को खो दिया था। जयशंकर का निधन सच में हिंदी साहित्य के लिए एक बहुत बड़ी क्षति थी। चलिए जानते हैं जयशंकर प्रसाद की मृत्यु कब हुई थी।

जयशंकर प्रसाद की मृत्यु कब हुई थी?

जयशंकर प्रसाद की मृत्यु

जयशंकर प्रसाद की मृत्यु के बारे में बात करने से पहले हमें इनके वैवाहिक जीवन के बारे में थोड़ा जानना होगा। असल में जयशंकर प्रसाद के तीन विवाह हुए थे। उनका पहला विवाह 1909 ई. में हुआ था। उनकी पत्नी का नाम विंध्यवासिनी देवी था। विंध्यवासिनी देवी को क्षय रोग हुआ था और इसके चलते 1916 ई. में इनकी मृत्यु हो गई थी। विंध्यवासिनी देवी के निधन के बाद क्षय रोग के कीटाणु जयशंकर प्रसाद जी के घर में प्रवेश कर गए थे। इसके बाद , जब जयशंकर प्रसाद की पहली पत्नी का निधन हो गया था तो उन्होंने 1917 ई. में दूसरा विवाह सरस्वती देवी से किया। सरस्वती देवी ने जयशंकर प्रसाद की पहली पत्नी विंधवासिनी देवी के कपड़ों आदि को पहना, जिसकी वज़ह से उन्हें भी क्षय रोग की शिकायत हो गई और इसके बाद दो वर्ष के भीतर ही 1919 ई. प्रसूतावस्था में उनका भी देहांत हो गया। क्षय रोग के लक्षण फिर जयशंकर प्रसाद में भी नज़र आने लगे थे।

दूसरी पत्नी सरस्वती देवी के देहांत होने के बाद जयशंकर प्रसाद की इच्छा न थी कि वो दोबारा फिर से विवाह करें। लेकिन उनके आसपास के लोगों ने उन्हें फिर से घर बसाने के बारे में कहा तो उन्होंने अपनी विधवा भाभी के दुखी जीवन को सुखमय बनाने के लिए उनसे विवाह कर लिया। उनका तीसरा विवाह कमला देवी के साथ हुआ था और ये विवाह 1919 ई. में हुआ था। उनकी तीसरी पत्नी कमला देवी से उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम रत्नशंकर प्रसाद था और यही इनकी एकमात्र संतान भी थी। फिर इसके बाद जयशंकर प्रसाद भी क्षय रोग की वजह से बिस्तर पर पड़ गए थे। उन्होंने लंबे समय तक एलोपैथी के सहारा लिया और इसी के साथ ही होम्योपैथी तथा आयुर्वेद की दवाएं भी जयशंकर प्रसाद ने लीं, लेकिन उन्हें कुछ भी असर नहीं किया। अंत में इसी क्षय रोग के चलते ही 15 नवंबर, 1937 ई. में 48 उम्र की अल्पायु में ही जयशंकर प्रसाद की मृत्यु हो गई। जयशंकर प्रसाद की मृत्यु हिंदी साहित्य के लिए एक बहुत बड़ा आघात था। उनके प्रियजनों ने उनके अंतिम समय में उनसे बनारस छोड़कर बाहर चलकर इलाज करवाने को लेकर आग्रह भी किया था, लेकिन वो बनारस छोड़ने के लिए कभी राज़ी ही नहीं हुए और उनका अंतिम समय भी बनारस में ही बीता। जयशंकर प्रसाद की मृत्यु के बाद काशी के ही हरिश्चंद्र घाट पर ही उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को पूरा किया गया। उनके अंतिम दर्शन के लिए हजारों की संख्या में भीड़ घाट पर एकत्रित हुई थी।

जयशंकर प्रसाद के जीवन से जुड़ी कुछ महत्त्वपूर्ण बातें

जयशंकर प्रसाद की मृत्यु 2

मशहूर कवि जयशंकर प्रसाद जी का जन्म 30 जनवरी, 1890 में बनारस में हुआ था। उनके पिता बाबू देवी प्रसाद थे और वो इत्र तथा खुशबू का कारोबार किया करते थे। जयशंकर प्रसाद एक बहुत ही संपन्न परिवार में जन्मे थे। उनका हमेशा से झुकाव हिंदी साहित्य में ही रहा है। यही कारण है कि इनके पिता हमेशा इनसे प्रसन्न रहते थे। लेकिन बहुत कम उम्र में ही जयशंकर प्रसाद ने अपने माता – पिता को खो दिया था। जब जयशंकर 8 साल के थे, तब उनकी माता का देहांत हो हुआ था और दो साल के बाद ही उनके पिता का निधन भी हो गया था। जिसके बाद उनके घर के आर्थिक हालात खराब होने लगे थे। फिर उनके कारोबार को उनके रिश्तेदारों के द्वारा संभाल लिया हुआ था, लेकिन इसके बाद भी 1930 में जयशंकर प्रसाद पर करीब एक लाख की उधारी हो गई थी। उन्होंने डटकर मेहनत की और कड़ी लगन से काम किया और अपने हालातों को फिर से बेहतर बनाया। इसके बाद फिर से वो साहित्य में समर्पित हो गए। अंत समय तक उन्होंने साहित्य में अपना संपूर्ण योगदान दिया है। उनकी अंतिम रचना कामायानी 1936 ई. में लिखी गई थी। ये हिंदी साहित्य की अमृत कृति मानी जाती है। कामायानी लिखने के एक साल बाद ही 1937 ई. में जयशंकर प्रसाद की मृत्यु हो जाती है और वो हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कहकर चले जाते हैं।

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