उत्तराखंड में स्थित हरिद्वार शहर का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस पोस्ट के जरिए पढ़ें हरिद्वार शहर का पौराणिक महत्व एवं जाने हरिद्वार में अस्थि विसर्जन करने का क्या महत्व है ?
हिंदू धर्म में जन्म लेने वाले हर प्राणी की यही इच्छा होती है कि उसका शरीर गंगा के पवित्र जल से तर जाए। मृत्यु के पश्चात भी गंगा नदी के तट पर अंतिम संस्कार और फिर नदी की पवित्र जल धारा में अस्थियों का विसर्जन बहुत सौभाग्य से मिलता है। हिंदू धर्म में अस्थियों के विसर्जन के लिए गंगा नदी के तट पर बसे कुछ शहरों को बहुत ही उत्तम दर्जे का स्थान मिला है। इनमें प्रयागराज, गया, हरिद्वार, रामेश्वरम इत्यादि बेहद खास हैं।
हरिद्वार शहर का पौराणिक महत्व
उत्तराखंड राज्य का हरिद्वार शहर हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है। पवित्र गंगा नदी के तट पर बसा हुआ ये शहर विशेष धार्मिक महत्व रखता है। हरिद्वार शहर के महत्वता की व्याख्या वेदों और पुराणों में भी की गई है। ‘हरि की पौड़ी’ के नाम से प्रसिद्ध इस शहर में लोग अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए आते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि हरिद्वार शहर की गंगा नदी में स्नान करने मात्र से जीवन भर के पाप धुल जाते हैं। वहीं इस शहर को मोक्ष की भूमि के नाम से भी जाना जाता है।
इस शहर से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, जिनके माध्यम से इस शहर के धार्मिक महत्व को भली भांति समझा जा सकता है।
- प्रथम पौराणिक कथा के अनुसार राजा सागर के कुल को आगे बढ़ाने वाले राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों का उद्धार करने का प्रण लिया, और इस प्रण को पूरा करने के लिए वो कठिन तपस्या में लग गए। राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा शिव जी की जटाओं से निकलकर धरती पर आ गई और इनके पीछे-पीछे चलने लगी। चलते-चलते राजा भगीरथ जब हरिद्वार पहुंचे तो गंगा नदी भी यहां पहुंच गई। हरिद्वार पहुंचते ही गंगा नदी के स्पर्श मात्र से सागर पौत्रों के भस्म अवशेषों का उद्धार हो गया। तभी से हरिद्वार भूमि को मोक्ष की भूमि का दर्जा मिला। और अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार के पावन घाट को हिंदू धर्म में विशेष स्थान मिला।
- हरिद्वार से जुड़ी एक अन्य पौराणिक कथा है जिसके मुताबिक प्राचीन काल में एक राजा थे जिनका नाम था स्वेत। हरिद्वार की भूमि पर ही उन्होंने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की थी। राजा स्वेत की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें मनचाहा वरदान मांगने को कहा। राजा स्वेत ने ब्रह्मा जी से हरिद्वार के गंगा तट को ईश्वर के नाम के रूप प्रसिद्ध करने के वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने राजा स्वेत का वरदान पूरा किया और तभी से हरि की पौड़ी को ब्रह्मकुंड के रूप में जाना जाने लगा।
- एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक प्राचीन काल में गयासुर नाम का एक राक्षस था। एक बार की बात है जब गया और भगवान विष्णु का श्री विग्रह लेकर देवलोक से भाग रहा था। अचानक उसके हाथ से विग्रह छूट गया और ये कई टुकड़ों में टूटकर अलग-अलग स्थान पर गिर गया। जिन-जिन स्थानों पर विग्रह के अंश गिरे उन स्थानों का धार्मिक महत्व बढ़ गया। जैसे धड़ का हिस्सा श्री बद्रीनाथ धाम के ब्रह्म कपाली में गिरा। कंठ, हृदय एवं नाभि का हिस्सा हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा। और चरण बिहार राज्य के गया में जाकर गिरा। नारायण के चरणो में ही गिरकर गयासुर को मोक्ष की प्राप्ति हुई। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि जो कि नारायण के विग्रह का हृदय वाला भाग हरिद्वार में गिरा, जिसकी वजह से इस स्थान का धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा बढ़ गया। क्योंकि भगवान नारायण के हृदय में माता लक्ष्मी का वास होता है इसलिए हरिद्वार में हृदय का भाग गिरने से यहां भगवान नारायण के साथ-साथ मां लक्ष्मी सदैव के लिए विराजमान हो गई है।
हरिद्वार में अस्थि विसर्जन का महत्व
हरिद्वार में श्री नारायण के साथ-साथ मां लक्ष्मी का वास है। ऐसे में हरिद्वार में श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण करने से एवं हरिद्वार में अस्थि विसर्जन करने से मृतक की आत्मा सीधे श्री नारायण के चरणो में पहुंच जाती है।
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि हरिद्वार में अस्थियों का विसर्जन करने से मृतक को जीवन मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जब तक इस पवित्र जल में व्यक्ति की अस्थियां विराजमान रहती है, तब तक उसकी आत्मा स्वर्ग में ही विराजमान रहती है। हरिद्वार शहर को हरि का द्वारा के रूप में जाना जाता है। यहां पर मृतकों का किया गया कोई श्राद्ध कर्म उसे सीधे भगवान श्री नारायण के द्वार पर लेकर जाता है। या यूं कहें कि हरिद्वार में अस्थि विसर्जन करने से अस्थियां सीधे बैकुंठ में बैठे श्री हरि के चरणों में अर्पित हो जाती हैं।
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