गया बिहार राज्य का एक पवित्र शहर है, जिसकी चर्चा विष्णु पुराण व गरूण पुराण में भी की गई है। आज इस पोस्ट में हम जानेंगे गया श्राद्ध से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण बातें –
इस धरती पर मौजूद हिंदू धर्म के सभी तीर्थ स्थलों में, गया का नाम सर्वोपरि है। बिहार राज्य में स्थित इस शहर को ‘मोक्ष की भूमि’ के रूप में जाना जाता है। जहां एक तरफ अन्य तीर्थ स्थलों पर जाने से मनुष्य का जीवन सुधरता है, वहीं गया जाने से मनुष्य का परलोक भी सुधर जाता है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गया शहर को ‘विष्णु नगर’ नाम से भी संबोधित किया जाता है। इस शहर की व्याख्या विष्णु पुराण एवं गरुड़ पुराण में भी की गई है। मोक्ष की भूमि गया शहर को ‘पितृ तीर्थ स्थल’ के रूप में जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार गया शहर में किए गए श्राद्ध एवं पिंडदान से पूर्वजों एवं पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उन्हें जीवन एवं मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिलती है।
गया शहर में श्राद्ध एवं पिंडदान का अलग ही महत्व है, लेकिन इससे जुड़े कुछ नियम भी होते हैं जिनका पालन करना अनिवार्य है। गया श्राद्ध कब करना चाहिए ? पिंडदान के समय किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए ? ये सभी बाते आगे पोस्ट में पढ़े –
गया श्राद्ध से जुड़ी पौराणिक मान्यता –
हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के मुताबिक प्राचीन काल में एक राक्षस था जिसका नाम था गयासुर। ये राक्षस भस्मासुर राक्षस के वंश में पैदा हुआ था। गयासुर ने ब्रह्मा जी की कई वर्षों तक कड़ी तपस्या की। उसकी तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा जी ने उसे मनचाहा वरदान देने का वचन दिया। तब गयासुर ने ब्रह्मा जी से वरदान में यह आशीर्वाद मांगा कि उसका शरीर इतना पवित्र हो जाए कि दर्शन मात्र से लोगों के सभी पाप पूरी तरह से समाप्त हो जाएं। अपने वचन में बंधे ब्रह्मा जी ने गयासुर को ये वरदान दे दिया। लेकिन ब्रह्मा जी के इस वरदान से धरती पर पाप बढ़ गया। लोग निडर होकर पाप करते और गयासुर के दर्शन कर पाप मुक्त हो जातें। ये प्रकृति के नियम के विपरीत था। इससे मुक्ति पाने के लिए देवताओं को एक युक्ति सूझी। उन्होंने गयासुर से पवित्र यज्ञ करने के लिए यज्ञ स्थल की मांग की। इस पवित्र यज्ञ के लिए गयासुर ने अपना शरीर ही देवताओं को दान में दे दिया। कहा जाता है कि जब यज्ञस्थल बनने के लिए गयासुर जमीन पर लेटा, तो पूरे शरीर ने जितने क्षेत्रफल को घेरा, वही वर्तमान में गया शहर के नाम से प्रसिद्ध है। यह शहर फाल्गु नदी के किनारे बसा हुआ है। ब्रह्मा जी के आशीर्वाद से आज भी गया शहर में विधिपूर्वक पिंडदान तथा श्राद्ध करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कब करना चाहिए गया श्राद्ध ?
पितृपक्ष के दौरान गया में श्राद्ध करने का अपना अलग ही महत्व है। गया को मोक्ष की भूमि कहा गया है ऐसे में यहां श्राद्ध करने से पितरों को जन्म मरण के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है, और हमेशा के लिए उनका स्वर्ग में वास हो जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार गया में किए गए पिंडदान से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार एक साथ हो जाता है। लेकिन गया श्राद्ध करने के लिए कई नियमों का भी पालन करना पड़ता है। पितृ पक्ष के दौरान गया में श्राद्ध किया जाता है।
गया में पिंडदान करने का महत्व –
जैसा कि हमने पहले बताया कि गया शहर को ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त है। यहां किए गए पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण से पूर्वजों एवं पितरों का सीधे स्वर्ग में वास हो जाता है। इसके साथ ही गरुड़ पुराण में यह भी व्याख्या की गई है कि खुद भगवान श्री राम और माता सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान गया शहर में फाल्गु नदी के तट पर किया था। धार्मिक मान्यता के अनुसार गया शहर में भगवान श्री विष्णु स्वयं पितृ देवता के स्वरूप में विराजमान है।
गया श्राद्ध से जुड़े नियम :
- पितृ पक्ष के दौरान जब कोई व्यक्ति गया में अपने पूर्वजों तथा पितरों का श्राद्ध करने की इच्छा रखता है, तो उसे जोड़े में यानी पति पत्नी को साथ में जाकर गया में अपने पूर्वजों एवं पितरों का पिंडदान करना होता है।
- पितृ पक्ष के दौरान गया शहर में श्राद्ध के लिए जाने से पहले व्यक्ति को विधिपूर्वक अपना मुंडन करवाना होता है।
- पत्नी समेत व्यक्ति अपने 7 पीढ़ियों के सभी मृत पूर्वजों के मोक्ष की जिम्मेदारी अपने कंधे पर लेकर गया शहर में श्राद्ध के लिए जाता है।
- पितृ पक्ष के दौरान 15 दिनों तक गया शहर में ही सात्विक जीवन व्यतीत करते हुए हर दिन विधि विधान से पंडितों के मार्गदर्शन में पिंडदान एवं तर्पण की क्रिया की जाती है।
- पितृपक्ष समाप्त होने के बाद व्यक्ति अपने पत्नी समेत घर वापस आता है।
- घर वापस आने के बाद गया भोज का आयोजन किया जाता है। तब जाकर गया श्राद्ध पूरी तरह से सफल होता है।
नोट: गया में किए गए श्राद्ध के बाद पूर्वजों को पूर्णतः मुक्ति मिल जाती है। ऐसे में गया श्राद्ध के बाद साधारण श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा एवं भक्ति व्यक्त करने के लिए उनके नाम पर दान देने में कोई रोक-टोक नहीं है।
Read This Also: त्रिपिंडी श्राद्ध कब करना चाहिए ?
Be First to Comment