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राजीव गांधी की मृत्यु कब हुई?

क्या राजीव गांधी अपनी हत्या के जिम्मेदार खुद थे? या उनकी हत्या एक सोची समझी साजिश थी? पढ़ें राजीव गांधी की मृत्यु से जुड़ी सच्चाई –

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हमेशा से एक एक अहम मुद्दा रहा है। इंदिरा गांधी की मौत के बाद जब राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री की गद्दी संभाली, उसके बाद किसी को ये खबर नहीं थी कि कुछ सालों के बाद इंदिरा जैसा ही हस्र, उनके बेटे राजीव के साथ भी होगा। हालांकि दोनों को मारने का तरीका एकदम अलग है, और दोनों को मारने वाली शख्सियत भी अलग- अलग हैं, फिर भी दोनों की मौत ने देश को पूरी तरह स्तब्ध कर दिया था। इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में प्रधानमंत्री का मारे जाना किसी को भी हज़म नहीं हो रहा था।

ऐसा बताया जाता है कि राजीव गांधी की हत्या एक आम चुनाव प्रचार के लिए आयोजित की गई प्रचार सभा में की गई थी। ऐसे में सवाल ये उठता है कि भरी सभा में कोई कैसे देश के प्रधानमंत्री की जान लेने का जोखिम उठा सकता है? क्या राजीव गांधी अपनी हत्या के जिम्मेदार खुद थे? या उनकी हत्या एक सोची समझी साजिश थी? राजीव गांधी की हत्या क्या महज़ तमिल समुदाय का असंतोष मात्र था या हत्या के पीछे कोई विदेशी ताकत? राजीव गांधी की हत्या देश की सुरक्षा व्यवस्था पर भी उंगली उठाती है। कहीं न कहीं उनकी हत्या से देश की खुफिया एजेंसी की नाकामी की झलक दिखाई देती है। राजीव गांधी की हत्या की वजह राजनीति थी या उनके निजी संबंध, इन सबके बारे में आगे आप इस पोस्ट में पढ़ने वाले हैं। इस पोस्ट में हम आपको बताएंगे कि राजीव गांधी की हत्या की साजिश को शुरुआत कहां से हुई और क्या कारण थे जिसकी वजह से कम उम्र में ही राजीव गांधी की मृत्यु हो गई –

राजीव गांधी का राजनीति में कदम

राजीव गांधी की मृत्यु 2

भारत रत्न से सम्मानित राजीव गांधी भारत के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री थे। उनका जन्म 20 अगस्त, 1944 में हुआ था। इंदिरा गांधी और फिरोज़ गांधी के घर जन्मे राजीव गांधी को पढ़ने के लिए लंदन भेजा गया। लेकिन वो अपनी पढ़ाई पूरी किए बिना ही वापस लौट आए और जिस साल उनकी मां इंदिरा गांधी देश की प्रधनमंत्री बनीं, उसी साल उनका भारत में आगमन हुआ। इसके बाद वो फ्लाइंग क्लब में शामिल हो गए और पायलट के रूप में उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद 1970 में एयर इंडिया ने राजीव गांधी को पायलट के रूप में नियुक्ति प्रदान की।

फिर वापस राजीव गांधी लंदन चले गए और 23 जून, 1980 में उनके भाई संजय गांधी की हवाई दुघर्टना में मौत गई। जिसके बाद वो फिर भारत आ गए। राजीव गांधी ने ही अपने भाई संजय गांधी का अंतिम संस्कार किया। संजय की मृत्यु होने के बाद कांग्रेस पार्टी के सदस्यों ने इंदिरा गांधी से राजीव गांधी के राजनीति में जुड़ने की बात की। अपनी मां का साथ देने के लिए राजीव गांधी ने कांग्रेस पार्टी में शामिल होना अपना कर्त्तव्य समझा, जबकि राजनीति में उनकी कोई खासा दिलचस्पी नहीं थी। 16 फरवरी, 1981 में राजीव गांधी राजनीति की दुनिया में आ गए। राजनीति से जुड़ने के बाद भी राजीव गांधी ने एयर इंडिया का साथ नहीं छोड़ा और इसमें कार्यरत रहे। इसके बाद राजीव गांधी लोकदल के उम्मीदवार, शरद यादव को हराकर संसद सदस्य बने। संसद सदस्य के रूप में राजीव गांधी ने 17 अगस्त, 1981 में शपथ ली थी। इसके बाद जब राजीव की मां, इंदिरा गांधी की मृत्यु 31 अक्टूबर, 1984 में हुई तो राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री की गद्दी संभाली और देश के 40 साल की उम्र में सबसे युवा प्रधानमंत्री बने।

राजीव गांधी को था हत्या का आभास

राजीव गांधी की मृत्यु

भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री ने भले ही सबसे कम उम्र में गद्दी संभाली थी, लेकिन वो ज्यादा दिन तक ये सफर देख नहीं पाए। कम उम्र में गद्दी संभालने के साथ ही, बेहद कम उम्र में उनकी मृत्यु भी हो गई। राजीव गांधी की मृत्यु एक सोची समझी साजिश थी, और कहीं न कहीं राजीव गांधी को भी अपनी मृत्यु का आभास हो गया था। लेकिन कैसे? आइए अब इस पर चर्चा करते हैं।

राजीव गांधी की मृत्यु 1991 में 21 मई को आम चुनाव के दौरान एक प्रचार सभा के बीच सरेआम उनकी हत्या किए जाने की वजह से हुई। उनकी हत्या तमिलनाडु के श्रीपेदंबुदूर में एक विस्फोट में की गई थी। इस हत्या को लेकर ऐसा कहा जाता है कि राजीव गांधी की हत्या की साजिश रचने वाला लिट्टे था। लिट्टे यानी श्रीलंका में स्थित एक सशस्त्र तमिल अलगाववादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलएलटीई)। हत्या की पूरी कहानी लिट्टे ने लिखी थी और हत्या की ज़िम्मेदारी भी उसने ही ली थी।

हत्या के दिन राजीव गांधी ने एक 45 मिनट का इंटरव्यू दिया था। इस इंटरव्यू से यह ज्ञात होता है कि उन्हें कहीं न कहीं ये पता था कि आने वाला समय उनका अंतिम समय हो सकता है। क्योंकि उन्हें ये चिंता नहीं थी कि उनके आसपास की सुरक्षा है भी या नहीं, या उनके आसपास के लोग उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं या नहीं। उन्हें ये तक भी पता था कि अगर कोई सिर्फ चाकू से ही उन पर किसी प्रकार का वार कर देता है तो भी उनके बंदूकधारी कुछ नहीं कर पाएंगे। हुआ भी कुछ ऐसा ही। 1991 में राजीव गांधी पूरी तरह से चुनाव प्रचार में व्यस्त चल रहे थे। उन्होंने 21 मई को विशाखापटनम में चुनाव प्रसार किया और इसके बाद उन्हें तमिल नाडु के श्रीपेदंबुदूर पहुंचना था। यहां पहुंचकर राजीव गांधी को जीके मूपनार के लिए प्रचार करना था। इसके बाद जैसा ही राजीव गांधी मद्रास पहुंचे, उन्हें कार में बैठाकर श्रीपेदंबुदूर ले जाया गया। बीच रास्ते में वो कई जगहों पर रुके थे। रात के करीब 10 बजे राजीव गांधी श्रीपेदंबुदूर रैली स्थल पर पहुंचे थे।

राजीव गांधी की मृत्यु

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श्रीपेदंबुदूर के रैली स्थल में महिला और पुरूषों के लिए अलग अलग गैलरी थी। इसी गैलरी में लिट्टे के सदस्य शामिल थे, जिसमें मुख्य रूप से महिला आत्मघाती हमलावर धनु भी थी। पहले प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पुरूषों की गैलरी का दौरा किया, इसके बाद वो महिलाओं की गैलरी का दौरा करने के लिए गए। जैसे ही वो महिला गैलरी का दौरा करने के लिए आगे बढ़ें, वैसे ही एक महिला उनके पास आई। उस महिला को राजीव गांधी के सुरक्षाकर्मी रोकने की कोशिश भी की, लेकिन राजीव गांधी ने उसको रोकने से मना कर दिया। ये महिला कोई और नहीं, बल्कि आत्मघाती हमलावर धनु ही थी, जिसका असल नाम क्लैवानी राजरत्नम था। जैसे ही धनु राजीव गांधी के पास आई, वो उनके पैरों को छूने के लिए नीचे झुकी। नीचे झुकते हुए उसने अपने कपड़ों के अंदर लगे आरडीएक्स की बेल्ट को खोल दिया जिसके बाद आरडीएक्स विस्फोट कर गया। विस्फोट इतना भयानक था, कि सबके चिथड़े हो गए थे। राजीव गांधी, धनु समेत इसमें अन्य 14 लोग भी मारे गए थे। इसके साथ ही इस विस्फोट में एक भारी संख्या में लोग घायल भी हुए थे।

राजीव गांधी का अंतिम संस्कार

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आत्मघाती विस्फोट हमले का शिकार हुए प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मृत्यु के बाद उनका शव अगले ही दिन दिल्ली पहुंचाया गया। उनके शव को तीन मूर्ति भवन में जनता के दर्शन के लिए रखा गया। इसके बाद 24 मई को उनकी अंत्येष्टि की तारीख़ तय की गई। 24 मई को राजीव गांधी की शव यात्रा लुटियंस दिल्ली से निकाली गई। रोड के दोनों ओर हजारों की संख्या में खड़ी भीड़ उनके आखिरी दर्शन पाने के लिए आंखें गड़ाई हुई थी। राजीव गांधी की मृत्यु की खबर सुनकर उनके बेटे राहुल गांधी अमेरिका से वापस आए और राहुल गांधी ने ही उन्हें मुखाग्नि प्रदान की। राजीव गांधी की मृत्यु से पूरा देश हिल गया था। यूं प्रचार सभा के बीच देश के प्रधानमंत्री की हत्या से हर कोई सदमे में था।

नोट: राजीव गांधी की जयंती को हर साल देश में 20 अगस्त को सद्भावना दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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