कालसर्प दोष, किसी भी व्यक्ति की कुंडली में विद्यमान एक ऐसा दोष जो उस व्यक्ति की जिंदगी को नर्क बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष विद्यमान है, तो ऐसे व्यक्ति को ना किसी काम में सफलता मिलती है, ना ही उसका जीवन सुख एवं शांति से व्यतीत होता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में हर तरफ बस निराशा ही निराशा रहती है। हालांकि कालसर्प दोष के कुछ फायदे भी बताए गए हैं, लेकिन इससे जुड़े नुकसान का पलड़ा फिर भी भारी है।
किसी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष का साया कुंडली में राहु एवं केतु ग्रहों की अनुचित स्थिति की वजह से बनता है। ज्योतिष शास्त्र में राहु को काल यानी मृत्यु एवं सांप को केतु का अधिदेवता बताया गया है। कुंडली में इन दोनों के बुरे प्रभाव कालसर्प दोष की स्थिति पैदा करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक एक बार यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष का साया पड़ जाता है तो इसका प्रभाव उस व्यक्ति के जीवन में 42 वर्षों तक बना रहता है। ऐसा नहीं है कि कालसर्प दोष के दुष्प्रभाव को कम नहीं किया जा सकता है। कुंडली से कालसर्प दोष के प्रभाव को काम करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ उपाय बताए गए हैं। इसके साथ ही कुंडली से कालसर्प दोष के निवारण के लिए कुछ पूजा और अनुष्ठान भी बताए गए हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कालसर्प दोष को दूर करने के उपाय क्या है ? कालसर्प दोष निवारण पूजा कहां पर होती है? ये पूजा कब की जाती है ? इस पूजा के लिए आवश्यक सामग्री क्या है ? और इस पूजा को करने में कितना खर्च आता है? इन सब बातों से जुड़ी जानकारी आगे इस पोस्ट में पढ़ें-
कालसर्प दोष को दूर करने के लिए घर में किए जाने वाले उपाय –
यूं तो कालसर्प दोष को दूर करने के लिए विधि विधान से पूजा एवं अनुष्ठान किया जाता है। लेकिन घर में भी छोटे-मोटे उपाय करके कालसर्प दोष के दुष्प्रभाव से कुछ हद तक बचा जा सकता है। ये उपाय कुछ इस प्रकार हैं –
- सोमवार के दिन शिव जी के मंदिर में शिवलिंग पर दूध एवं दही से अभिषेक करने पर शिवजी प्रसन्न होते हैं, और इससे कुंडली में मौजूद कालसर्प दोष का दुष्प्रभाव खत्म होता है।
- घर में कृष्ण जी की मूर्ति स्थापित करके नियमित तौर पर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करने से भी कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
- प्रत्येक माह की पंचमी तिथि को 8 नाग यानी वासुकि, अनंत, शंख, कुलिक, तक्षक, पद्य, महापद्य एवं कर्कोटक की विधि पूर्वक पूजा करने से भी कालसर्प दोष खत्म होता है।
कालसर्प दोष निवारण मंत्र –
ज्योतिषशास्त्र में कुछ ऐसे मंत्र बताए गए हैं, जिनका नियमित तौर पर जाप करने से कुंडली से कालसर्प दोष का दुष्प्रभाव काफी हद तक काम होता है। ये मंत्र कुछ इस प्रकार हैं –
- ‘ॐ नवकुलाय विद्यमहे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्पः प्रचोदयात’
- ‘ॐ नमः शिवाय’ एवं ‘ॐ नागदेवताय नमः ‘
नोट: ज्योतिषशास्त्र के अनुसार उपरोक्त मंत्रो का रुद्राक्ष की माला से नियमित तौर पर 108 बार जाप करना चाहिए। कालसर्प दोष निवारण में यह मंत्र काफी प्रभावी है।
कालसर्प दोष निवारण पूजा –
त्रयंबकेश्वर में कालसर्प दोष पूजा –
कालसर्प दोष निवारण पूजा मुख्य रूप से महाराष्ट्र के नासिक में स्थित त्रयंबकेश्वर में की जाती है। ये शिव जी का अत्यंत प्राचीन मंदिर है जो उनके सभी शक्तिपीठों के रूप में से एक है। शिव जी के 12 ज्योतिर्लिंगों में से ये एक है। यहीं पर विधि विधान के साथ कालसर्प दोष निवारण के लिए की पूजा की जाती है। त्रयंबकेश्वर मंदिर में कई ताम्रपत्रधारी पंडित होते हैं जो विधि विधान व वैदिक मंत्रोचार के साथ कालसर्प दोष की पूजा करवाते हैं।
उज्जैन में कालसर्प दोष की पूजा –
त्रयंबकेश्वर के अलावा मध्य प्रदेश के उज्जैन में भी विधि विधान के साथ कालसर्प दोष निवारण की पूजा की जाती है। उज्जैन के राजाधिराज भगवान महाकाल के दरबार में ये पूजा संपन्न होती है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन मात्र से ही कालसर्प दोष का निवारण हो जाता है। मंदिर में ₹101 की अर्जी लगाई जाती है, इसके बाद मंदिर के पंडितो द्वारा विधिवत कालसर्प दोष की पूजा की जाती है।
कालसर्प दोष पूजा की आवश्यक सामग्री :
कालसर्प दोष पूजा में इस्तेमाल होने वाली आवश्यक सामग्रियां कुछ इस प्रकार हैं –
- रोली
- पीला एवं लाल सिंदूर
- चंदन
- पिसी एवं समूची हल्दी
- सुपारी
- लौंग
- इलायची
- सर्वऔषधी
- सप्तमृतिका
- पीली सरसो
- जनेऊ
- इत्र
- सूखे नारियल का गोला व हरा नारियल
- चावल
- धूप बत्ती
- रुई बत्ती
- देसी घी
- सरसों का तेल
- चमेली का तेल
- कपूर
- कलावा
- लाल एवं पीली चुनरी
- बताशा
- रंग (लाल, पीला, काला, नारंगी, हरा, बैगनी)
- अबीर (लाल, पीला, हरा, गुलाबी)
- भस्म
- गंगाजल
- गुलाब जल
- केवड़ा जल
- वस्त्र (लाल, पीला, सफेद, काला, नीला)
- लकड़ी की चौकी
- कुशा
- चांदी का सिक्का
- रुद्राक्ष की माला
- मिट्टी का कलश, प्याला व दियाली
- अनाज से भरा हुआ बर्तन
- नवग्रह सामग्री
- हवन सामग्री
- तिल, जौ, गुड़
- कमलगट्टा
- काला उड़द
- शहद
- पंचमेवा
- चांदी के नाग-नागिन
- पंचरत्न व पंचधातु
- सुहाग सामग्री (बिंदी, चूड़ी, सिंदूर, आलता, बिछिया, पायल इत्यादि)
कालसर्प दोष पूजा विधि –
कालसर्प दोष के निवारण के लिए पूजा विधि भगवान शिव की उपासना के साथ शुरू की जाती है। गोदावरी नदी में स्नान करने के पश्चात मुख्य पूजा प्रारंभ होती है।
- कालसर्प दोष निवारण पूजा की शुरुआत सबसे पहले पूजा करवाने वाले व्यक्ति के संकल्प के साथ होती है। ताम्रपत्रधारी पंडित, उपासक को पूजा का प्राथमिक संकल्प दिलवाते हैं।
इसके पश्चात वरुण देव का पूजन किया जाता है। इसके लिए कलश की पूजा होती है और गोदावरी नदी के जल को पूजा जाता है।
तत्पश्चात श्री गणेश भगवान की पूजा अर्चना की जाती है।
गणेश जी की पूजा के बाद नागमंडल पूजा होती है। इस पूजा के अंतर्गत 12 नागमूर्ति होते हैं जिनकी पूजा की जाती है। (मान्यता अनुसार इन 12 नागमूर्तियों में एक मूर्ति सोने की, एक मूर्ति तांबे की वह बाकी की 10 मूर्तियां चांदी से बनी होनी चाहिए)। - 12 नाग मूर्ति की पूजा करने के पश्चात सभी नाग मूर्तियों को नागमंडला में बिठाया जाता है, इस प्रक्रिया को ‘लिंगतोभद्रमंडल’ के नाम से जाना जाता है।
इसके पश्चात एक विशिष्ट पूजन किया जाता है, जिसे ‘षोडशोपचार पूजन’ के रूप में जाना जाता है।
विधिपूर्वक पूजन प्रक्रिया पूरी होने के पश्चात नाग मूर्तियों को विसर्जित कर दिया जाता है।
इसके पश्चात राहु-केतु, सर्प मंत्र, सर्प सूक्त, मनसा देवी मंत्र एवं महामृत्युंजय मंत्र की माला का जप किया जाता है। इसके पश्चात हवन किया जाता है। - हवन करने के पश्चात कालसर्प दोष को दूर करने वाली प्रतिमा का अभिषेक किया जाता है और फिर उसे नदी या जलाशय के जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।
- इसकी पश्चात नदी में स्नान किया जाता है और पूजा के समय जिस वस्त्र को पहना हुआ था उसे वहीं पर छोड़ दिया जाता है, और नया वस्त्र पहन लिया जाता है। इस तरह से विधि विधान से पूजा संपन्न होती है।
नोट: पूजा संपन्न होने के पश्चात पूजा के मुख्य गुरु एवं सहयोगी गुरु को दान दक्षिणा दी जाती है।
कालसर्प दोष निवारण पूजा से जुड़े नियम :
- कालसर्प दोष निवारण पूजा के लिए निर्धारित तिथि से एक दिन पूर्व त्रंयबकेश्वर आ जाना चाहिए।
- कालसर्प दोष निवारण की पूजा कोई भी इंसान कर सकता है, परंतु गर्भवती महिलाओं का इस पूजा में अकेले बैठना मना है।
- यदि किसी बच्चे की कुंडली में कालसर्प दोष का साया है तो उसके माता-पिता के हाथो से भी यह पूजा संपन्न की जा सकती है।
- इस पूजा में बैठने वाले पुरुष का सफेद धोती कुर्ता एवं महिलाओं का सफेद साड़ी पहनना अनिवार्य है।
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