80 वर्ष की अवस्था में हुई थी गौतम बुद्ध की मृत्यु। अंतिम संस्कार के बाद अस्थि अवशेषों को 8 भागों में बांट कर बनाए गए स्तूप।
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध का जीवन हर मनुष्य के लिए बहुत प्रेरणादाई है। कपिलवस्तु की गलियों मे दिखे चार दृश्यों ने इनकी पूरी जिंदगी बदल दी थी। इसके बाद ये ज्ञान प्राप्ति के लिए निकल गए और 35 वर्ष की अवस्था में ज्ञान प्राप्त कर तपस्वी बने और अपना पूरा जीवन धर्मोपदेश में लगा दिया। 80 वर्ष की अवस्था में गौतम बुद्ध की मृत्यु हुई। बौद्ध धर्म के अनुवायियों ने इनकी मृत्यु को दिया इसे ‘महापरिनिर्वाण‘ का नाम।
आगे इस पोस्ट में गौतम बुद्ध की मृत्यु एवं जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों को विस्तार में पढ़ें।
गौतम बुद्ध की मृत्यु
80 वर्ष की अवस्था में गौतम बुद्ध ने 483 ईस्वी में पूर्व कुशीमारा में अपने देह का त्याग किया था। गौतम बुद्ध की मृत्यु को बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने ‘महापरिनिर्वाण’ नाम दिया।
गौतम बुद्ध की मृत्यु को लेकर इतिहासकारों एवं बौद्ध धर्म के बुद्धजीवियों के बीच मतभेद है। उनकी मृत्यु को लेकर दोनों पक्षों की राय अलग-अलग है। दोनो पक्षों के द्वारा गौतम बुद्ध की मृत्यु को लेकर अलग-अलग कहानी बताई गई है, जिसमें गौतम बुद्ध की मृत्यु किस प्रकार हुई इसे उल्लेखित किया गया है।
बौद्ध ग्रंथ के अनुसार गौतम बुद्ध की मृत्यु की वजह
बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक के प्रथम निकाय के 16वें सूत्र ‘महापरिनिर्वाण सूक्त’ में गौतम बुद्ध की मृत्यु को लेकर उल्लेखित किया गया है कि – भिक्षु संघ के साथ यात्रा करते हुए गौतम बुद्ध वैशाली पहुंचे। इसके बाद पास में ही स्थित बेलग्राम में इन्होंने एक वर्ष तक निवास किया। बेलग्राम में वास करते हुए गौतम बुद्ध कुछ समय के लिए अस्वस्थ हुए, बाद में जब उनका स्वास्थ्य सही हुआ तब वे अंबग्राम, भंडग्राम, जम्बूग्राम और भोजनगर की यात्रा करते हुए पावा नमक गांव में पहुंचे। इस गांव में गौतम बुद्ध ने एक लुहार के वन में ठहरने का फैसला लिया। चंद्र कुमार पुत्र नामक लुहार ने गौतम बुद्ध व उनके भिक्षु संघ को खाने के लिए मीठा चावल, रोटी और मद्दव दिया। गौतम बुद्ध ने भिक्षु संघ को मीठे चावल और रोटी तो खाने के लिए दे दिया, लेकिन ये समझते हुए कि मद्दव को हजम कर पाना सबके बस की बात नहीं, किसी को खाने के लिए नहीं दिया। खुद भी थोड़ा सा खाकर शेष बचे हुए भाग को जमीन के अंदर दबा दिया। इसको खाने के बाद ही गौतम बुद्ध की तबीयत खराब हुई और वहीं पर उनका निधन हो गया।
गौतम बुद्ध की मृत्यु को लेकर इतिहासकारों की राय
न्यू एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के मार्कोपीडिया भाग में गौतम बुद्ध की मृत्यु को लेकर संभावना व्यक्त करते हुए उल्लेखित किया गया है कि – अपनी यात्रा के दौरान एक ग्रामीण व्यक्ति द्वारा दिए गए भोजन को खाने के पश्चात गौतम बुद्ध को पेट में दर्द होना शुरू हुआ। इस दर्द के साथ भी गौतम बुद्ध ने अपनी यात्रा जारी रखी और अपने भिक्षु संघ एवं शिष्यों के साथ कुशीमारा की तरफ चल पड़े। कुशीमारा के मार्ग में कुकुत्था नदी के समीप पहुंचकर नदी के जल में स्नान किया और अपनी प्यास बुझाई और नदी के तट पर फैली रेत पर वस्त्र बिछाकर आराम किया।
थोड़ी देर आराम करने के पश्चात गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ फिर से यात्रा पर निकल पड़े। रास्ते में हिरण्यवती नदी को पार कर गौतमबुद्ध कुशीमारा पहुंचे। और यहीं पर अपने प्राणों का परित्याग किया। गौतम बुद्ध का कहना था कि -‘उनका जन्म 2 शाल वृक्षों के मध्य हुआ था, और उनका अंत भी 2 शाल वृक्षों के मध्य ही होगा’। गौतम बुद्ध को पहले ही पता चल गया था कि उनका अंतिम समय नजदीक आ गया है। गौतम बुद्ध की मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य आनंद से कुछ शब्द कहे थे। आगे पढ़े क्या थे गौतम बुद्ध के आखिरी शब्द ?
गौतम बुद्ध के आखिरी शब्द
जब गौतम बुद्ध ने अपने शिष्य को बताया कि उनका अंतिम समय नजदीक आ गया है, तब उनके प्रिय शिष्य आनंद अत्यंत दुखी हो गए। गौतम बुद्ध को खो देने के डर से फूट-फूट कर रोने लगें। तब गौतम बुद्ध ने अपने शिष्य को अपना आखिरी उपदेश दिया। गौतम बुद्ध ने कहा कि – “मैने तुमसे पहले ही कहा था जो चीज उत्पन्न हुई है वह मरती है। निर्वाण अनिवार्य और स्वाभाविक है। अतः रोते क्यों हो ?” अपनी देह का त्याग करने से पहले गौतम बुद्ध ने आनंद से कहा कि -“यह संभव है कि कुछ लोग यह सोचे कि अब उनका शिक्षक अतीत में चला गया है और अब उनका कोई शिक्षक नहीं है। लेकिन ऐसा नहीं सोचना चाहिए जो भी प्रशिक्षण या मार्गदर्शन मैंने दिया है मेरे मरणोपरांत अब वही तुम्हारा शिक्षक है” इसके पश्चात ही गौतम बुद्ध की मृत्यु हुई।
गौतम बुद्ध का अंतिम संस्कार
गौतम बुद्ध की मृत्यु के पश्चात 6 दिनों तक उनके पार्थिव शरीर को उनके अनुवायियो के दर्शन के लिए रखा गया। मृत्यु के सातवें दिन गौतम बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया। बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार की रीति का पालन करते हुए इनके पार्थिव शरीर का दाह संस्कार किया गया। गौतम बुद्ध के अस्थि अवशेषों को लेकर भी कुछ विवाद हुए। वैशाली के भिक्षुक, कपिलवस्तु के शाक्य और मगध राज्य के राजा अजातशत्रु, गौतम बुद्ध के अस्थि अवशेषों पर अपना -अपना हक जता रहे थे। बाद में द्रोण नामक एक ब्राह्मण ने सुलह कराते हुए गौतम बुद्ध के अस्थि अवशेषों को 8 भागों में विभाजित किया। गौतम बुद्ध के अस्थि अवशेषों को आठ अलग-अलग राज्यों में आठ स्तूप की स्थापना करके रखा गया।
गौतम बुद्ध का जन्मकाल एवं ज्ञान की प्राप्ति
गौतम बुद्ध का जन्म 483 ईसवी पूर्व शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के समीप स्थित लुंबिनी में गौतम गोत्र में हुआ था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन था जो शाक्य वंश के राजा थे और माता का नाम माया देवी था। इनके जन्म मात्र 7 दिन के भीतर इनकी मां का देहांत होने के पश्चात उनकी मौसी गौतमी ने उनका पालन पोषण किया। गौतम बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
जन्म के पूर्व ही हुई थी भविष्यवाणी
राजकुमार सिद्धार्थ के जन्म के पूर्व ही एक ऋषि ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि ये या तो कोई बड़े सम्राट बनेंगे, या फिर सब कुछ त्याग कर महान ऋषि बन जायेंगे। सिद्धार्थ के जन्म के पश्चात उनके पिता शुद्धोधन ऋषि की भविष्यवाणी से विचलित होकर, इस भय से कि कही सिद्धार्थ तपस्वी ना बन जाए उन्हें राजमहल के क्षेत्र से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी। उनकी सभी जरूरतों का इंतजाम राजमहल के भीतर ही कर दिया गया। इसके साथ ही इनका विवाह भी राजकुमारी यशोधरा के साथ कम उम्र में ही करा दिया गया। जिससे इन्हे एक पुत्र रत्न की भी प्राप्ति हुई। लेकिन लाख प्रयत्न के बाद भी ऋषि की भविष्यवाणी को टाला नहीं जा सका।
चार दृश्यों ने बदली सिद्धार्थ की जिंदगी
कपिलवस्तु की गलियों मे दिखे चार दृश्यों ने सिद्धार्थ की पूरी जिंदगी बदल दी थी। जब राजकुमार सिद्धार्थ 21 वर्ष के थे, तब एक बार वह कपिलवस्तु की गलियों में भ्रमण के लिए निकले। उसी समय उनकी मुलाकात जीवन के कठोर सत्य से हुई। कपिलवस्तु की गलियों में सबसे पहले सिद्धार्थ की दृष्टि एक वृद्ध विकलांग व्यक्ति पर पड़ी, फिर उन्होंने एक गंभीर रोग से पीड़ित व्यक्ति को देखा, तत्पश्चात एक शव यात्रा से उनकी मुलाकात हुई, आखिरी में इनकी नजर एक साधु पर पड़ी। इन चार दृश्य का राजकुमार सिद्धार्थ पर गहरा असर हुआ। उन्हें समझ आ गया की जीवन का आखिरी सत्य यही है। इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाला हर प्राणी वृद्ध होता है, किसी रोग से पीड़ित होता है और आखरी में मृत्यु को प्राप्त करता है। बाकी सब सिर्फ मोह-माया है। इन दृश्यों ने सिद्धार्थ के मन को इतना व्यथित किया, कि वो राज-पाठ त्याग कर ज्ञान की प्राप्ति के लिए निकल पड़े।
कठोर तपस्या करने के पश्चात 35 वर्ष की अवस्था में इन्हें पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हुई और यह सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बन गए। गौतम बुद्ध ने अपना सबसे पहला उपदेश उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिले के पास स्थित सारनाथ में दिया था। 80 वर्ष की अवस्था तक बुध ने जगह जगह जाकर धर्मोपदेश दिया। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष की अवस्था में कुशीमारा में हुई।
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