हमारे समाज में अलग- अलग मत के, अलग- अलग धर्म को मानने वाले तथा अलग- अलग संप्रदाय के लोग रहते हैं। इसी प्रकार से सभी संप्रदाय के लोगों ने अपने अलग- अलग रीति – रिवाज और परंपराओं को अपना लिया है और अब सभी लोग धार्मिक आधार पर अपने धर्म और समाज के रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करते हैं। ये रीति रिवाज बच्चे के जन्म से शुरु होते हैं और व्यक्ति की मृत्यु होने तक चलते हैं। मरने के बाद जो संस्कार होता है वही अंतिम संस्कार होता है। अंतिम संस्कार के जो भी कर्म होते हैं वो मृत व्यक्ति के परिजनों के द्वारा किए जाते हैं।
अंतिम संस्कार को लेकर अलग- अलग धर्म में अलग- अलग मान्यता है, जैसे कि किसी धर्म में मरने के बाद व्यक्ति के शरीर को अग्नि प्रदान की जाती है तो किसी धर्म में मरने के बाद व्यक्ति के शरीर को मिट्टी में दफना दिया जाता है, किसी धर्म में मरने के बाद व्यक्ति के मृत शरीर को नदी या नालों में बहा दिया जाता है तो किसी धर्म में मृत शरीर को ऊंचे टीलों या पहाड़ों पर छोड़ दिया जाता है ताकि चील कौवों मृत शरीर को अपना भोजन बना सकें। हर धर्म, समाज की अंतिम संस्कार को लेकर अपनी विधि और परंपरा है। ऐसे ही आर्य समाज में भी अंतिम संस्कार को लेकर अपने अलग रीति-रिवाज हैं और इन्हीं के बारे में आज हम बात करने वाले हैं। आज हम इस पोस्ट में आपको बताने वाले हैं कि आर्य समाज में मृत शरीर का अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है। इस क्रम में हम सबसे पहले बात करते हैं आर्य समाज के बारे में।
आर्य समाज तथा आर्य समाज अंतिम संस्कार-
आर्य समाज के नाम में जो पहला शब्द आर्य है, इस शब्द का मतलब ही होता है श्रेष्ठ। ये एक ऐसा समाज है, जिसमें श्रेष्ठ और प्रगतिशील लोग आकर जुड़ते हैं। आर्य समाज से जुड़े लोग वेदों का अध्ययन करते हैं और उन सबकी सदैव वेद के अनुकूल चलने की कोशिश रहती है। आर्य समाजी लोग मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते हैं और सच्चे ईश्वर को मानने के लिए प्रेरित करते हैं। आर्य समाज से जुड़े लोग, अपने आसपास के लोगों को इस समाज से जुड़ने की सलाह देते हैं, उनका मानना है कि वेद से बेहतर और वेद से ज्यादा सच्चा कुछ नहीं है। इसीलिए आर्य समाज के जो भी सिद्धांत और नियम हैं, वो भी हमेशा वेद पर ही आधारित रहते हैं। इनका अंतिम संस्कार करने का तरीका भी इसीलिए बाकी समाजों से अलग है। आर्य समाज में मृत व्यक्ति का नहीं, बल्कि जीवित व्यक्ति का श्राद्ध किया जाता है। आर्य समाज के अनुसार श्राद्ध का मतलब होता है श्रद्धा, अपने माता- पिता, गुरुजन आदि के प्रति श्रद्धा प्रकट करना। इस समाज के लोगों का ऐसा मानना है कि शोक मनाने से बेहतर है कि शोक से जल्दी दूर हो जाना। यही कारण है कि मृत्यु के बाद तीसरे दिन ही शांति पाठ को संपन्न करा दिया जाता है तथा शांति पाठ के लिए जिन महामुनि को बुलाया जाता है, उन्हें श्रद्धा अनुसार दान दिया जाता है। इसके अलावा आर्य समाज में मरने के बाद मुंडन करने की भी परंपरा है।
आर्य समाज में मरने के बाद होता है मुंडन-
जैसे बच्चे के जन्म होने पर घर में सूतक लग जाता है, वैसे ही जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो भी घर में सूतक लग जाता है। इस सूतक को पदक के नाम से जाना जाता है। सूतक के समय में घर को पवित्र नहीं माना जाता है। इसीलिए जब सिर से बाल हट जाते हैं तो घर को शुभ और पवित्र माना जाता है। यही कारण है कि जब किसी की मृत्यु होती है तो उसके बाद मृत व्यक्ति के परिजन मुंडन करवाते हैं। इसके अलावा आर्य समाज में मरने के बाद मुंडन को लेकर ये भी मान्यता है कि श्मशान घाट में बुरी शक्तियां रहती हैं और वो सिर के बालों से ही व्यक्ति के साथ घर में प्रवेश करती हैं। इसीलिए बालों को निकलवा कर ही घर में प्रवेश लेना चाहिए। कई बार ये भी होता है कि जब किसी की मृत्यु होती है तो उसके बाद मृत शरीर में सड़न शुरू हो जाती है और अंतिम संस्कार में पहुंचे लोग शरीर को छू लेते हैं, जिसकी वजह से जीवाणु उनमें भी प्रवेश कर सकते हैं। इसीलिए भी मुंडन करवाना आवश्यक होता है।
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