40 वर्ष की अवस्था में स्वामी विवेकानंद ने ले ली थी समाधि। स्वामी विवेकानंद की मृत्यु एवं जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों को आगे इस पोस्ट में पढ़ें –
स्वामी विवेकानंद को भला कौन नहीं जानता है। छोटे से जीवन काल में ही उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी जी ली थी। भले ही वो ज्यादा दिन तक धरती पर नहीं रहे थे, लेकिन उस छोटे से जीवन काल में ही उन्होंने लोगों को बहुत कुछ सिखा दिया था। उनका समाज के लिए जो योगदान रहा है, वो सच में हर किसी के लिए एक प्रेरणा स्वरूप है। देश, समाज और धर्म के लिए ही उन्होंने अपना जीवन न्योछावर कर दिया था। स्वामी विवेकानंद ने 40 वर्ष तक अपना जीवन जिया और उसके बाद उन्होंने समाधि ले ली। स्वामी जी का यूं अचानक समाधि लेना किसी की समझ नहीं आ रहा था। लेकिन उन्होंने यूं अचानक समाधि लेने के बारे में क्यों सोचा, इस सवाल का जवाब आगे इस लेख में आपको मिलेगा।
आगे इस पोस्ट में पढ़ें स्वामी विवेकानंद की मृत्यु एवं जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें –
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में 12 जनवरी को हुआ था। उनका जन्म कलकत्ता में हुआ था। 20 साल के होते- होते 1884 में उन्होंने अपने पिता विश्वनाथ दत्त को हमेशा के लिए खो दिया था। उनके पिता के जाने के बाद उनके घर के दशा काफी खराब हो गई थी। आर्थिक हालात एकदम बिगड़ने लगे थे। स्वामी जी के जीवन में एक ऐसा भी समय आया था, जब उन्हें खाने के लिए दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही थी। लेकिन, उनका सदैव परमात्मा में विश्वास बना रहा था।
ऐसा कहा जाता था कि बचपन से उनके चेहरे पर एक अलग ही तेज़ नज़र आता था और उनकी बुद्धि भी बेहद तीव्र थी। उनकी हमेशा से परमात्मा को प्राप्त करने की इच्छा थी। परमात्मा को पाने के लिए ही उन्होंने पहले ब्रह्म समाज में कदम रखा था, लेकिन यहां भी उन्हें वो प्राप्त नहीं हुआ, जिसकी उन्हें लालसा थी। 25 वर्ष की उम्र प्राप्त कर ही वेद, पुराण, बाइबल, कुरआन, गुरुग्रंथ साहिब, धम्मपद, तनख, पूंजीवाद, राजनीति शास्त्र, साहित्य, संगीत और दर्शन आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया था और समाज का मार्गदर्शन करने लगे थे। फिर जैसे- जैसे वक्त बीतता गया और उनकी उम्र बढ़ती गई, उनका धर्मों और दर्शन आदि से विश्वाश उठ सा गया था। और वो धर्म के प्रति अविश्वास से पूरी तरह से भर गए थे।
ऐसा कहा जाता है कि उस समय वो नास्तिक होने की राह पर चल पड़े थे। धर्म को लेकर उनकी जिज्ञासाएं इतनी बढ़ गईं थीं, कि उन जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए एक सही व्यक्ति की तलाश करने लगे थे। इसी राह में उन्हें रामकृष्ण परमहंस मिले। बाद में रामकृष्ण ही उनके गुरु हुए। रामकृष्ण से मिलने के बाद स्वामी विवेकानंद पूरी तरह से बदल गए और उनसे वो काफी प्रभावित भी हुए। 1881 में स्वामी विवेकानंद ने उन्हें अपना गुरु बनाया और जब उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और वो संयासी बने, तब उनका नाम बदलकर विवेकानंद हुआ। इससे पहले उनका नाम नरेंद्र दत्त था।
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु महज 39 साल की उम्र में हुई थी। 4 जुलाई, 1902 का वो दिन था, जब उन्होंने बेलूर मठ के एक बेहद शांत कमरे में महा समाधि ले ली थी। ऐसा बताया जाता है कि कई बार स्वामी विवेकानंद अपने शिष्यों तथा परिचितों को ये हिदायत दे चुके थे कि 40 वर्ष की उम्र से ज्यादा उनका जीवन नहीं है।
विवेकानंद बहुत ही सरल और शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। जब वो पृथ्वी पर आए थे, तभी लगा था कि वो किसी न किसी उद्देश्य के साथ ही इस पृथ्वी पर आए हैं। फिर जब उनको ये प्रतीत हुआ कि जिस उद्देश्य के लिए वो आए हैं, वो पूरा हो चुका है, तो उन्होंने खुद को मिट्टी में मिला देना ही अपना कर्तव्य समझा। जब 1902 की शुरुआत हुई, उस समय उन्होंने खुद को सांसारिक मामलों से अलग करना शुरू कर दिया था, वो हर चीज़ से कटने लगे थे।
जब उन्होंने महा समाधि ली, तो उसके एक हफ्ते पहले उन्होंने अपने शिष्य से एक पंचांग मंगाया था, उस पंचांग को देखकर वो कोई निर्णय लेना चाहते थे, लेकिन वो बहुत ही असमंजस में थे। इससे पहले जब उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस ने भी अपना देह त्याग किया था, उन्होंने भी ऐसे ही पंचांग देखा था। स्वामी विवेकानंद, उन्हीं के पद चिन्हों पर चल रहे थे। उन्हें 31 से भी अधिक बीमारियों ने घेरा हुआ था, जिसमें से एक बीमारी उनकी निद्रा रोग से ग्रसित होने के भी थी।
अपने जीवन के अंतिम दिन 4 जुलाई, 1902 को भी उन्होंने अपनी दिनचर्या को पूरा किया। उन्होंने ध्यान किया और हर रोज़ की तरह ही सुबह 3- 4 घंटे का ध्यान किया। ध्यान की अवस्था में ही उन्होंने समाधि ले ली थी। शाम के जब 7 बजे तो विवेकानंद एक बार फिर से ध्यान की मुद्रा में चले गए थे और उन्होंने अपने शिष्यों को बोला था कि उन्हें बीच में टोका न जाए। इसके बाद ध्यान करते हुए ही उन्होंने महा समाधि ले ली थी। ऐसा कहा जाता है कि दिल का दौरा पड़ने से स्वामी विवेकानंद की मृत्यु हुई थी, लेकिन कई लोग मानते हैं कि उनका निधन होना उनकी स्वयं की इच्छा थी।
स्वामी विवेकानंद का अंतिम संस्कार
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु 4 जुलाई, 1902 को हुई थी। इसके बाद बेलूर में गंगा तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया था। उनका अंतिम संस्कार चंदन की चिता पर किया गया था। इससे पहले 16 वर्ष पूर्व जब उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस का निधन हुआ था, तो उनका भी अंतिम संस्कार इसी बेलूर के गंगा तट पर ही किया गया था। लेकिन उनका अंतिम संस्कार नदी के तट के दूसरी ओर किया गया था। स्वामी विवेकानंद ने अपनी मौत की भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी कि वो महज़ 40 वर्ष की आयु तक ही जीवित रहेंगे। इसीलिए उन्होंने अपनी भविष्यवाणी को पूरा करने के लिए महा समाधि ले ली थी और 39 साल, 5 माह तथा 24 दिन की आयु में वो दुनिया को हमेशा के लिए छोड़कर चले गए।
नोट: हर साल भारत में स्वामी विवेकानंद जी की जन्मतिथि यानी 12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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