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कालसर्प दोष के प्रकार

किसी व्यक्ति के जन्म के समय ब्रह्मांड में स्थित सभी ग्रह एवं नक्षत्र की जो स्थिति होती है, ग्रह एवं नक्षत्र की यह स्थिति उस व्यक्ति की कुंडली में भी दर्ज हो जाती है। कुंडली में स्थित ग्रह एवं नक्षत्र की स्थिति का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर भी देखने को मिलता है। यदि कुंडली में स्थित सभी ग्रह एवं नक्षत्र उचित स्थान पर विराजमान होते हैं, तो उस व्यक्ति का जीवन सुगम तरीके से चलता रहता है। परंतु ग्रहों एवं नक्षत्रों के विचलित होने पर व्यक्ति का जीवन भी अव्यवस्थित होने लगता है।

कुंडली में राहु और केतु ग्रह का अत्यधिक प्रभाव देखने को मिलता है। ज्योतिष शास्त्र में राहु को काल यानी मृत्यु एवं सर्प यानी सांप को केतु का अधिदेवता बताया गया है। कुंडली में जब राहु एवं केतु की स्थिति उचित स्थान पर नहीं होती है तो इससे व्यक्ति की कुंडली में दोष पैदा होने लगते हैं। कुंडली में प्रायः दो तरह के दोष- पितृ दोष कालसर्प दोष बनते हैं। इन दोनों ही दोष के बनने की मुख्य वजह कुंडली में राहु और केतु की स्थिति होती है।

अब अगर बात करें कालसर्प दोष की तो ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जब किसी व्यक्ति की कुंडली के किसी घर में राहु और केतु के मध्य कोई ग्रह आता है, तो यह उस व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष की स्थिति बना देता है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष की स्थिति बनने पर उस व्यक्ति का जीवन कठिनाइयों से भर जाता है। कुंडली में बने ये अशुभ योग उस व्यक्ति को राजा से रंक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

कालसर्प दोष कई प्रकार के होते हैं, जिनके बारे में आगे इस पोस्ट में पूरी जानकारी दी गई है –

कालसर्प दोष कितने प्रकार के होते हैं ?

कालसर्प दोष के प्रकार

कालसर्प दोष मुख्य रूप से 12 प्रकार के होते हैं। कालसर्प दोष के प्रकार कुंडली के 12 भाव में राहु-केतु की अलग-अलग स्थिति के अनुसार निर्धारित किए गए हैं। आइए जानते हैं कालसर्प दोष के कौन-कौन से प्रकार हैं –

अनंत कालसर्प दोष –

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के प्रथम भाव में राहु व सप्तम भाव में केतु विराजमान हो, इसके साथ ही कुंडली में अन्य ग्रह इनके एक ही अक्ष पर स्थित हो तो, ऐसी स्थिति में व्यक्ति की कुंडली में अनंत काल सर्पदोष का योग बनता है। कुंडली में इस तरह का योग बनने पर व्यक्ति को सोमवार के दिन एकमुखी, आठमुखी या नौमुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।

कुलिक कालसर्प दोष-

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के दूसरे भाव में राहु व अष्टम भाव में केतु विराजमान हो, एवं अन्य ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में स्थित हो, तो इस स्थिति में व्यक्ति की कुंडली मे कुलिक कालसर्प दोष का योग बनता है। इसके दुष्प्रभाव को कुछ हद तक कम करने के लिए व्यक्ति को दो रंग वाले कंबल व गर्म वस्त्र दान में देने चाहिए। चांदी का ठोस गोला बनवाकर अपने घर के पूजा स्थान पर रखकर नियमित तौर पर उसकी पूजा करनी चाहिए।

वासुकी कालसर्प दोष –

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के तीसरे भाव में राहु व नव भाव में केतु विराजमान होता है और इन दोनों के बीच में सारे ग्रह स्थित होते हैं तो इससे उस व्यक्ति की कुंडली में वासुकी कालसर्प दोष की स्थिति बनती है। इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए उस व्यक्ति को सोमवार के दिन लाल धागे में, तीन, आठ अथवा नौमुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।

शंखपाल कालसर्प दोष –

किसी व्यक्ति की कुंडली में शंखपाल कालसर्प दोष की स्थिति तब बनती है, जब उस व्यक्ति की कुंडली के चतुर्थ भाव में राहु एवं दशम भाव में केतु विराजमान होता है, और कुंडली के बाकी ग्रह इन दोनों के बीच में एक ही अक्ष पर स्थित होते हैं। शंखपाल कालसर्प दोष के दुष्प्रभाव से बचने के लिए सोमवार के दिन शिवलिंग पर दूध का अभिषेक करना चाहिए।

पद्य कालसर्प दोष –

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी व्यक्ति की कुंडली के पंचम भाव में राहु एवं ग्यारहवें भाव में केतु विराजमान होता है और बाकी ग्रह इन दोनों के मध्य एक ही अक्ष पर स्थित होते हैं, तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति की कुंडली में पद्य कालसर्प दोष का योग बनता है। ऐसी मान्यता है कि किसी व्यक्ति की कुंडली में पद्य कालसर्प दोष योग की स्थिति पूर्वजों के शाप से शापित होने की स्थिति में बनती है। कुंडली में बने इस दोष के दुष्प्रभाव से बचने के लिए सोमवार के दिन से प्रारंभ करते हुए 40 दिनों तक लगातार सरस्वती चालीसा का पाठ करना चाहिए। घर में तुलसी का पौधा लगाना चाहिए, और गरीबों को पीले वस्त्र दान में देने चाहिए।

कालसर्प दोष के प्रकार 1

महापद्य कालसर्प दोष –

जब किसी व्यक्ति की कुंडली के छठे भाव में राहु व बारहवें भाव में केतु विराजमान हो और कुंडली में अन्य ग्रहों की स्थिति इन दोनों के मध्य एक ही अक्ष पर हो, तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति की कुंडली में महा पद्य कालसर्प दोष योग की स्थिति बनती है। ऐसी स्थिति में हनुमान मंदिर में सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। गरीबों को भोजन एवं दान-दक्षिणा देनी चाहिए।

तक्षक कालसर्प दोष –

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी व्यक्ति की कुंडली के प्रथम भाव में केतु एवं सातवें भाव में राहु विराजमान होता है, और कुंडली के अन्य ग्रहों की स्थिति इन दोनों के मध्य एक ही अक्ष पर होती है, तो ऐसी स्थिति में कुंडली में तक्षक कालसर्प दोष का योग बनता है। कुंडली में बने इस दोष के दुष्प्रभाव से बचने के लिए व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं चावल दान में देना चाहिए। किसी पवित्र नदी की जलधारा में 11 नारियल प्रवाहित करने से भी इस दोष के दुष्प्रभाव से काफी हद तक बचा जा सकता है।

कर्कोटक कालसर्प दोष –

जब किसी व्यक्ति की कुंडली के दूसरे भाव में केतु एवं आठवें भाव में राहु विराजमान होता है, और बाकी ग्रह इन दोनों के मध्य एक ही अक्ष पर स्थित होते हैं, तो ऐसी स्थिति में कुंडली में कर्कोटक कालसर्प दोष का योग बनता है। कुंडली में बने इस दोष के दुष्प्रभाव से बचने के लिए बटुक भैरव के मंदिर में दही एवं गुड़ का भोग लगाना चाहिए।

शंखनाद कालसर्प दोष –

जब किसी व्यक्ति की कुंडली के तीसरे भाव में केतु एवं नवें भाव में राहु विराजमान होता है, और बाकी ग्रह इन दोनों के मध्य एक ही अक्ष पर स्थित होते हैं, तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति की कुंडली में शंखनाद कालसर्प दोष का योग बनता है। कुंडली में शंखनाद कालसर्प दोष का योग बनने पर व्यक्ति को पंचमुखी, आठ मुखी अथवा नौमुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।

घातक कालसर्प दोष –

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी व्यक्ति की कुंडली के चतुर्थ भाव में केतु एवं दशम भाव में राहु विराजमान हो, और बाकी ग्रह इन दोनों के मध्य एक ही अक्ष पर स्थित हो तो इस स्थिति में व्यक्ति की कुंडली में घातक कालसर्प दोष का योग बनता है। इस दोष के दुष्प्रभाव से बचने के लिए व्यक्ति को चार मुखी, आठ मुखी अथवा नौ मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।

विषधर कालसर्प दोष –

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के पांचवें भाव में केतु एवं ग्यारहवें वें भाव में राहु विराजमान हो और बाकी ग्रह इन दोनों के मध्य एक ही अक्ष पर स्थित हो, तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति की कुंडली में विषधर कालसर्प दोष का योग बनता है। इस योग के दुष्प्रभाव से बचने के लिए शिव जी के मंदिर में अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा देना चाहिए।

शेषनाग कालसर्प योग –

किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के छठे भाव में केतु एवं बारहवें भाव में राहु विराजमान हो और कुंडली के अन्य ग्रह इन दोनों के मध्य एक अक्ष पर स्थित हो तो इस स्थिति में कुंडली में शेषनाग कालसर्प दोष का योग बनता है। इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए व्यक्ति को गरीबों को सफेद वस्तु का दान करना चाहिए।

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