पितृदोष और कालसर्प दोष में क्या अंतर होता है, ये सवाल अक्सर सबके मन में रहता है। मन में उठ रहे इसी सवाल का जवाब इस पोस्ट में दिया गया है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य के जीवन में उसके कुंडली का बहुत महत्व होता है। यदि कुंडली में सभी ग्रहों की स्थिति सामान्य होती है तो मनुष्य के जीवन में सब कुछ अच्छा चलता रहता है, परंतु यदि किसी व्यक्ति के कुंडली में ग्रहों के अशुभ योग बनते हैं तो इस अशुभ योग का प्रभाव उस व्यक्ति के पूरे जीवन में देखने को मिलता है। कुंडली में ग्रहों के अशुभ योग मनुष्य के जीवन को पूरी तरह से नष्ट करने लगते हैं। हर तरफ निराशा ही हाथ लगती है। सभी बने हुए काम बिगड़ने लगते हैं। हर तरफ से बस असफलताएं ही मिलती है। घर में कलह और अशांति का माहौल होता है। व्यवसाय में घाटा होने लगता है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगती है। कुल का विकास रुक जाता है।
मनुष्य के जीवन में आ रही इस तरह की समस्याओं के लिए उसकी कुंडली में दो तरह के दोष को जिम्मेदार बताया गया है। एक पितृदोष और दूसरा कालसर्प दोष। ये दोनो ही दोष कुंडली में ग्रहों की खराब स्थिति की वजह से बनते हैं। अब सवाल यह होता है कि पितृदोष और कालसर्प दोष में अंतर क्या होता है ? आइए आगे इस पोस्ट में इस सवाल का जवाब पढ़ते हैं –
पितृ दोष और कालसर्प दोष में क्या अंतर है ?
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किसी भी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष या काल सर्प दोष का साया होने पर, व्यक्ति का जीवन कठिनाइयों से घिर जाता है। ये दोनो ही साए कुंडली में ग्रहों की खराब स्थिति की वजह उत्पन्न होते हैं। लेकिन फिर भी पितृ दोष और काल सर्प दोष में कुछ अंतर होता है। जो निम्नलिखित है –
- ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में राहु एवं केतु के बीच में सभी ग्रह बैठ जाते हैं, तो यह कुंडली में कालसर्प योग के निर्माण की वजह बनता है। वहीं यदि जन्मकुंडली के नवें घर में सूर्य, राहु अथवा केतु विराजमान होते हैं तो यह कुंडली में पितृ दोष के साए को दर्शाता है।
- कुंडली में कालसर्प योग के 12 प्रकार का वर्णन किया गया है जो हैं – पदम् कालसर्प योग, महापद्म कालसर्प योग, तक्षक कालसर्प योग, कनकोटक कालसर्प योग, शंखचूर्ण कालसर्प योग, पातक कालसर्प योग, विषाक्त कालसर्प योग व शेषनाग कालसर्प योग।
- लाल किताब में पितृ दोष के संदर्भ में 10 तरह के ऋण का वर्णन किया गया है। जो 10 अलग तरह के पितृ दोष की वजह बनते हैं ये ऋण कुछ इस प्रकार हैं – पूर्वजों का ऋण, मातृ ऋण, स्वयं का ऋण, पत्नी का ऋण, पुत्री ऋण, संबंधियों का ऋण, जालिमाना ऋण, अजन्मा ऋण, कुदरती ऋण। इसके अलावा ज्योतिषियों के मुताबिक पितृ दोष के कुछ प्रकारों का वर्णन किया गया है, जो कुछ इस प्रकार हैं -सूर्यकृत व मंगलकृत पितृ दोष, कुंडली पितृ दोष, स्त्री पितृ दोष, शापित पितृ दोष, घातक पितृ दोष।
- कुंडली में कालसर्प योग का प्रभाव 42 वर्षों तक रहता है। किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि कालसर्प दोष का योग बनता है, तो उस व्यक्ति को 42 वर्ष तक अपने जीवन में संघर्ष करना पड़ता है। ऐसा कहा जाता है कि राहु और केतु का साया व्यक्ति के जीवन में सर्प की तरह होता है, जो उस व्यक्ति को पूरी तरह से जकड़ लेता है जिससे मुक्ति पाना बहुत ही मुश्किल होता है इसलिए कुंडली में राहु एवं केतु का प्रभाव दिखाई देने पर इसका उपाय तुरंत कर लेना चाहिए।
- कुंडली में पितृदोष का साया जन्म जन्मांतर तक चलता रहता है। यदि पितृ दोष का उपाय न किया गया तो कभी कभी आने वाली पीढ़ी पर भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है।
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