7 दिसंबर 2019 को स्वयं प्रकाश की मृत्यु हुई थी। जब स्वयं प्रकाश की मृत्यु हुई थी उस समय इनकी आयु 72 वर्ष थी। आगे पढ़ें स्वयं प्रकाश की मृत्यु एवं जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें –
हिंदी साहित्य के क्षेत्र में स्वयं प्रकाश का नाम काफी विख्यात है। उन्हें मुख्य तौर पर हिंदी कहानीकार के रूप में जाना जाता है। कहानी के अलावा भी स्वयं प्रकाश ने कई रचनाएं की हैं। उन्होंने उपन्यास तथा अन्य विधाओं में भी अपने लेखन कार्य का प्रदर्शन किया है। इनकी बहुत सारी प्रमुख रचनाएं हैं, जिन्हें आज भी लोग पढ़ना पसंद करते हैं। इनकी लेखन शैली बहुत ही सरल और सहज थी, जिससे हर किसी को इनकी लिखी कहानियां आसानी से समझ आ जाती थीं। इनकी रचनाएं काफी ज्यादा पसंद की गई थीं जिसकी वज़ह से इन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार, विशिष्ट साहित्यकार सम्मान आदि से सम्मानित किया गया था।
स्वयं प्रकाश की रचनाओं में ज्यादातर खड़ी बोली का इस्तेमाल किया गया था। इसके अलावा इनकी रचनाओं में तत्सम, तद्भव, देशज, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी के शब्दों का भी बखूबी इस्तेमाल किया गया था। इनकी कहानियां इतनी लोकप्रिय हुईं कि इनकी कहानियों का रूसी अनुवाद भी किया जा चुका है। स्वयं प्रकाश ने हिंदी साहित्य को एक अलग रूप प्रदान किया। इनका योगदान इस क्षेत्र के लिए काफी सराहनीय है। इसके बाद स्वयं प्रकाश की 2019 में मृत्यु हो गई। 7 दिसंबर, 2019 में इन्होंने आखिरी सांस ली थी। इनके निधन की ख़बर से हिंदी साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई थी। आइए आगे इस पोस्ट में जानते हैं कि इनकी मृत्यु कैसे हुई थी।
स्वयं प्रकाश की मृत्यु
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स्वयं प्रकाश जब 72 वर्ष के तब उन्होंने अंतिम सांसें ली थीं। उनका निधन मुंबई के लीलावती अस्पताल 7 दिसंबर, 2019 में हुआ था। उनके परिजनों के मुताबिक स्वयं प्रकाश काफी समय से रक्त कैंसर से जूझ रहे थे। फिर अचानक निधन होने के तीन चार दिन पहले उनकी हालत ज्यादा बिगड़ गई। उनकी तबियत को देखते हुए उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। जिसके बाद 7 दिसंबर को स्वयं प्रकाश ने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया था। इसके बाद उनका अंतिम संस्कार मुंबई में ही किया गया। मुंबई के सांता क्रूज स्थित विद्युत शव दाहगृह में उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके निधन से हिंदी साहित्य जगत में काफी मायूसी का माहौल था।
स्वयं प्रकाश का जीवन परिचय
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सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार स्वयं प्रकाश का जन्म 20 जनवरी, 1947 में मध्य प्रदेश राज्य के इंदौर शहर में हुआ था। इंदौर में स्वयं प्रकाश का ननिहाल था। उनके पैतृक स्थान राजस्थान के अजमेर में था। उनके नाना एक स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका ज्यादातर बचपन अजमेर में बीता था। हायर सेकंडरी की परीक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने 1966 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और डिप्लोमा करने के बाद वो एक नौकरी करने लगे। ज्यादा दिनों तक उन्होंने नौकरी की नहीं और वहां से जल्द ही रिटायरमेंट ले ली।
स्वयं प्रकाश ने इंदौर के अहिल्या विश्वविद्यालय से बीए किया और उसके बाद उन्होंने हिंदी विषय में राजस्थान विश्वविद्यालय से एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद 1982 में स्वयं प्रकाश ने उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया कॉलेज से पीएचडी की उपाधि भी प्राप्त की थी। स्वयं प्रकाश का राजस्थान से गहरा नाता था, यही कारण था कि उनकी कहानियां में भी राजस्थान की अक्सर झलक मिलती थी। उन्होंने कहानी लिखना तो बाद में शुरु किया था। कहानी लेखन से पहले वो कविता लिखा करते थे। लिखने के साथ- साथ वो अलग- अलग मंचों पर इनका पाठ भी किया करते थे।
स्वयं प्रकाश की कुछ प्रमुख रचनाएं जैसे, जलते जहाज पर (1982), ज्योति रथ के सारथी (1987), उत्तर जीवन कथा (1993), बीच में विनय (1994) और ईंधन (2004) हैं आदि काफी प्रचलित हैं। स्वयं प्रकाश को साहित्य अकादमी ने बाल साहित्य पुरस्कार से भी नवाजा था। इसके अलावा उन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार, सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार, पहल सम्मान, विशिष्ट साहित्यकार सम्मान, भवभूति सम्मान, कथाक्रम सम्मान, वनमाली स्मृति पुरस्कार आदि से भी सम्मानित किया गया था। स्वयं प्रकाश की रचनाएं सच में अद्भुत थीं और आज भी पाठकों के बीच में काफी लोकप्रिय हैं।
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