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पितृ दोष क्या होता है ?

जब मनुष्य के जीवन में हर तरफ कष्ट और दुख ही रहता है, तो ये पितृ दोष का प्रभाव होता है। पितृ दोष क्या होता है ? आगे इस पोस्ट में पढ़ें –

कभी-कभी मनुष्य के जीवन में हर तरफ परेशानियां ही परेशानियां रहती हैं, दुखों का अंत नहीं होता और जीवन निराशा से भरने लगता है। हर तरफ कलह और अशांति का माहौल होता है। व्यापार में घाटा, धन की कमी होने लगती है, नौकरी मिलने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। घर में बीमारियों का वास हो जाता है। इन परिस्थितियों में अक्सर ये समझना मुश्किल हो जाता है कि इन परेशानियों की असली वजह क्या है ? हर तरह के उपाय के बाद भी ये परेशानियां खत्म क्यों नहीं हो रही है ? असल में इन मुश्किलों की वजह पितृ दोष हो सकता है।

अब यह सवाल उठता है कि ये पितृ दोष क्या होता है ? आगे इस पोस्ट में पढ़े पितृ दोष क्या होता है ? और कुंडली में पितृ दोष की वजह क्या होती है ?

पितृ दोष क्या होता है ?

पितृ दोष

कई बार कुंडली का ग्रह नक्षत्र कुछ ऐसा बन जाता है, जिसका प्रभाव मनुष्य के जीवन पर साफ देखने को मिलता है। मनुष्य के जीवन में तमाम मुश्किलें आ जाती हैं, हर तरफ से बस कष्ट ही कष्ट मिलता है, ये कुंडली में सूर्य के कमजोर होने का लक्षण होता है, जो दर्शाता है कि कुंडली पर पितृ दोष का साया है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य की कुंडली के नवें ग्रह में जब सूर्य एवं राहु साथ में बैठ जाते हैं, तो कुंडली में ऐसा दोष बन जाता है, जिससे जीवन कष्टमय हो जाता है। इसे पितृ दोष के नाम से जाना जाता है। कुंडली में पितृ दोष का होना किसी श्राप से कम नहीं है। कुंडली में सूर्य का कमजोर होना बहुत ही कष्टकारी होता है। इसके प्रभाव से जीवन में एक के बाद एक समस्याओं का आना-जाना लगा रहता है।

किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष का होना सिर्फ उस व्यक्ति के लिए हानिकारक नहीं होता है, बल्कि इसका दुष्प्रभाव पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है। यही नहीं आने वाली पीढ़ियां भी इसके दुष्प्रभाव को झेलती हैं।

कुंडली में पितृ दोष होने की वजह :

पितृ दोष 1

कुंडली में पितृ दोष बनने की कई वजह हो सकती हैं। आइए जानते हैं पितृ दोष की मुख्य वजह क्या है ?

सूर्य एवं चंद्रमा की स्थिति कमजोर होना :

कुंडली में पितृ दोष बनने की एक वजह सूर्य और चंद्रमा की कमजोर स्थिति हो सकती है। दरअसल कुंडली में सूर्य को पिता के ग्रह व चंद्रमा को मां के ग्रह रूप में स्थान दिया गया है। ऐसे में कुंडली में इन दो ग्रहों के कमजोर होने पर, पितृ दोष आ जाता है।

यदि कुंडली में सूर्य कमजोर होता है तो पितृ दोष का दुष्प्रभाव पिता पक्ष की तरफ पड़ता है। वहीं चंद्रमा की स्थिति कमजोर होने पर मातृ पक्ष की तरफ से समस्याएं आने लगती हैं।

कुंडली में राहु भी है पितृ दोष की एक वजह :

कुंडली में राहु ग्रह का बहुत प्रभाव देखने को मिलता है। राहु के शांत होने पर जीवन सुचारु रूप से चलता रहता है। वही राहु के बिगड़ जाने पर जीवन में भी चुनौतियां आने लगती है। राहु ग्रह को छाया ग्रह के रूप में जाना जाता है। यदि राहु कुंडली के नवें स्थान पर बैठ जाता है, तो ये पितृ दोष का संकेत होता है। ऐसी स्थिति में बने बने कम बिगड़ने लगते हैं, और असफलताओं का दौर शुरू हो जाता है।

पितरों की असंतुष्टि भी है पितृ दोष की वजह :

सूर्य, चंद्रमा एवं राहु के प्रभाव के अलावा कभी-कभी पितरों एवं पूर्वजों की संतुष्टि भी पितृ दोष की वजह बन जाती है। कई बार लोग अपने पूर्वजों की जिम्मेदारियां का भलीभांति निर्वहन नहीं करते, जिसका दुष्प्रभाव उनके आने वाले जीवन में देखने को मिलता है।

हिंदू धर्म के पवित्र पुराण, गरुड़ पुराण के मुताबिक जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके अंतिम संस्कार के पूरे क्रिया कर्म के बाद जब उसका 13वीं संस्कार विधि विधान से कर दिया जाता है, तब उसकी आत्मा पृथ्वीलोक से यमपुरी की तरफ यात्रा के लिए निकल जाती है। इस यात्रा को पूरा करने में आत्मा को 11 महीने का समय लगता है, और 12वें महीने मे आत्मा यमलोक में प्रवेश करती है इस 11 महीने के सफर में आत्मा को भोजन और जल नहीं मिल पाता है।

पृथ्वी से यमपुरी की यात्रा के दौरान आत्मा को भूख और प्यास से संतुष्टि दिलाने के लिए उसके परिवार वाले विधि विधान से उसका श्राद्ध, पिंडदान एवं तर्पण करते हैं। जिससे आत्म संतुष्ट होती है और तृप्त होकर यमराज के दरबार में प्रवेश करती है। परंतु जब साथ का अनुष्ठान विधि विधान से नहीं किया जाता है, तब मृतकों की आत्मा को संतुष्टि नहीं मिलती और वो दर-बदर भटकती ही रहती है। यह अतिरिक्त आत्माएं परिजनों के जीवन के कष्ट की वजह बनती है। और इन्ही अतृप्त आत्माओं की वजह से कुंडली में पितृ दोष बनता है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक के लिए कष्टकारी होता है।

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