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पितृ दोष क्यों होता है ?

पितृ दोष के बारे में सबने सुना होगा, ये किसी व्यक्ति के जीवन में लगा ऐसा दोष होता है, जिसका यदि समय रहते उपाय न किया गया तो सिर्फ उस व्यक्ति का जीवन ही नहीं बल्कि उसकी आने वाली पीढ़ियां भी इसके दुष्प्रभाव से पीड़ित होती है।

सबके मन में अक्सर यह सवाल उठता है कि आखिर किसी व्यक्ति के जीवन में पितृदोष का साया कैसे पड़ जाता है ? ऐसी क्या वजह होती है कि किसी व्यक्ति का जीवन पितृ दोष से ग्रसित हो जाता है। इस सवाल का जवाब आगे इस पोस्ट में दिया गया है –

क्यों होता है पितृ दोष ?

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किसी व्यक्ति के जीवन अथवा कुंडली में पितृदोष का साया होने की कोई एक वजह नहीं होती है। इसके कई कारण हो सकते हैं। कभी कुंडली में ग्रहों की खराब स्थिति, तो कभी मनुष्य के द्वारा किए गए कर्म इसकी वजह बनते हैं। किन-किन वजह से व्यक्ति के जीवन पर पितृदोष का साया पड़ता है, इसके बारे में आगे विस्तार में जानकारी दी गई है।

कुंडली में सूर्य एवं चंद्रमा का स्थान-

पितृ दोष क्यों होता है

कुंडली में पितृ दोष बनने की एक वजह सूर्य और चंद्रमा की कमजोर स्थिति हो सकती है। दरअसल कुंडली में सूर्य को पिता के ग्रह व चंद्रमा को मां के ग्रह रूप में स्थान दिया गया है। ऐसे में कुंडली में इन दो ग्रहों के कमजोर होने पर, पितृ दोष आ जाता है।

यदि कुंडली में सूर्य कमजोर होता है तो पितृ दोष का दुष्प्रभाव पिता पक्ष की तरफ पड़ता है। वहीं चंद्रमा की स्थिति कमजोर होने पर मातृ पक्ष की तरफ से समस्याएं आने लगती हैं।

राहु ग्रह की स्थिति का प्रभाव:

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कुंडली में राहु ग्रह का बहुत प्रभाव देखने को मिलता है। राहु के शांत होने पर जीवन सुचारु रूप से चलता रहता है। वही राहु के बिगड़ जाने पर जीवन में भी चुनौतियां आने लगती है। राहु ग्रह को छाया ग्रह के रूप में जाना जाता है। यदि राहु कुंडली के नवें स्थान पर बैठ जाता है, तो ये पितृ दोष का संकेत होता है। ऐसी स्थिति में बने बने कम बिगड़ने लगते हैं, और असफलताओं का दौर शुरू हो जाता है।

पितरों की असंतुष्टि से होता है पितृ दोष :

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सूर्य, चंद्रमा एवं राहु के प्रभाव के अलावा कभी-कभी पितरों एवं पूर्वजों की संतुष्टि भी पितृ दोष की वजह बन जाती है। कई बार लोग अपने पूर्वजों की जिम्मेदारियां का भलीभांति निर्वहन नहीं करते, जिसका दुष्प्रभाव उनके आने वाले जीवन में देखने को मिलता है।

हिंदू धर्म के पवित्र पुराण, गरुड़ पुराण के मुताबिक जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके अंतिम संस्कार के पूरे क्रिया कर्म के बाद जब उसका 13वीं संस्कार विधि विधान से कर दिया जाता है, तब उसकी आत्मा पृथ्वीलोक से यमपुरी की तरफ यात्रा के लिए निकल जाती है। इस यात्रा को पूरा करने में आत्मा को 11 महीने का समय लगता है, और 12वें महीने मे आत्मा यमलोक में प्रवेश करती है इस 11 महीने के सफर में आत्मा को भोजन और जल नहीं मिल पाता है।

पृथ्वी से यमपुरी की यात्रा के दौरान आत्मा को भूख और प्यास से संतुष्टि दिलाने के लिए उसके परिवार वाले विधि विधान से उसका श्राद्ध, पिंडदान एवं तर्पण करते हैं। जिससे आत्म संतुष्ट होती है और तृप्त होकर यमराज के दरबार में प्रवेश करती है। परंतु जब साथ का अनुष्ठान विधि विधान से नहीं किया जाता है, तब मृतकों की आत्मा को संतुष्टि नहीं मिलती और वो दर-बदर भटकती ही रहती है। यह अतिरिक्त आत्माएं परिजनों के जीवन के कष्ट की वजह बनती है। और इन्ही अतृप्त आत्माओं की वजह से कुंडली में पितृ दोष बनता है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक के लिए कष्टकारी होता है।

इन सबके अलावा कभी कभी इंसान द्वारा हुई गलतियां भी उसके जीवन पर पितृदोष का साया पड़ने की वजह बन जाती है।

  • परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर जब विधि विधान के साथ उसके अंतिम संस्कार की क्रिया पूरी नहीं की जाती है, तो यह पितृदोष लगने का एक मुख्य कारण बन जाता है।
  • जब परिवार में किसी व्यक्ति की असामयिक मृत्यु होती है, तो ऐसी स्थिति में प्रायः मरने वाले व्यक्ति की आत्मा संतुष्ट नहीं हो पाती है और वो दर-बदर भटकती रहती है, जो आने वाली कई पीढ़ियों के कुंडली में पितृदोष की वजह बनती है।
  • घर में बूढ़े-बुजुर्गों का अपमान और मृत्यु के पश्चात विधि विधान से उनका श्राद्ध साथ अथवा पिंडदान न करने से भी कुंडली में पितृदोष लगता है।
  • हिंदू धर्म में सांप (सर्प) को भगवान शिव का प्रतीक माना गया है। ऐसे में सांप को मारना भी पाप की श्रेणी में रखा गया है। ऐसा माना जा है कि सांप मारने से पितृ दोष का साया पड़ता है।
  • पीपल, बरगद एवं नीम के पेड़ को हिंदू धर्म में बेहद खास स्थान दिया गया है। इन वृक्षों की पूजा भी की जाती है, ऐसे में धार्मिक मान्यता के अनुसार इन वृक्षों को काटना भी पितृ दोष की एक वजह बन सकती हैं।

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