ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक मनुष्य के पूर्व जन्म के कर्मों का फल उसे उसके वर्तमान जीवन में भी भुगतना पड़ता है। पूर्व जन्म में यदि व्यक्ति ने अच्छे कर्म किए है तो उसका वर्तमान जीवन सुखमय होता है, परंतु यदि पूर्व जन्म में उसने सिर्फ बुरे कर्म ही लिए है, तो वर्तमान जीवन में उसे कष्ट ही कष्ट झेलना पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह भी कहा जाता है कि मनुष्य के जीवन पर उसके पितरों या पूर्वजों के कर्मों का भी प्रभाव देखने को मिलता है। पितृ अथवा पूर्वजों द्वारा किए गए बुरे कर्मो का दुष्प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पितृ दोष के साए के रूप में दिखाई देता है।
यदि किसी व्यक्ति के जीवन पर पितृ दोष का साया होता है, तो उसका पूरा जीवन कष्टमय व्यतीत होता है। इसका दुष्प्रभाव सिर्फ एक पीढ़ी पर नहीं, बल्कि आने वाली कई पीढियां पर देखने को मिलता है। पितृ दोष कई प्रकार का होता है, और ये अलग-अलग वजह से बनता है।
आगे इस पोस्ट में पितृ दोष के प्रकार का वर्णन किया गया है –
पितृ दोष के प्रकार –
पितृ दोष कितने प्रकार के होते हैं, इसकी व्याख्या दो प्रकार से की गई है। पहला ज्योतिष के अनुसार, एवं दूसरा लाल किताब के मुताबिक। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं –
ज्योतिष के मुताबिक पितृ दोष के प्रकार :
सूर्यकृत व मंगलकृत पितृ दोष :
ज्योतिष के मुताबिक कुंडली में पितृ दोष की वजह दो मुख्य ग्रह सूर्य एवं मंगल को बताया गया है। सूर्य ग्रह को कुंडली में पिता से जोड़ा गया है, जबकि मंगल ग्रह का संबंध रक्त से बताया गया है। कुंडली में जब सूर्य किसी घर में शनि, राहु या केतु के साथ विराजमान होता है तो ये सूर्यकृत पितृदोष का कारण बनता है। दूसरी तरफ यदि मंगल ग्रह राहु अथवा केतु के साथ विराजमान होता है तो यह मंगलकृत पितृदोष की वजह बनता है।
कुंडली पितृदोष :
कुंडली के नवें घर में यदि बुध, शुक्र अथवा राहु विराजमान हो तो ये मनुष्य के पिछले जन्म के पाप को दर्शाता है, और कुंडली पितृ दोष की वजह बनता है।
स्त्री पितृ दोष :
यदि किसी व्यक्ति की पत्नी की कुंडली में सप्तम स्थान पर पाप ग्रह यानी राहु की युति उपस्थित है तो इससे स्त्री दोष के द्वारा पितृ दोष माना जाता है जिसे स्त्री पितृ दोष के रूप में जाना जाता है। कुंडली में ये युति किसी ब्रह्म ज्ञानी अथवा सम्मानित व्यक्ति को अपशब्द कहे जाने के कारण बनती है।
शापित पितृ दोष:
कुंडली के सातवें घर में गुरु होने पर आंशिक पितृदोष एवं दशम भाव गुरु होने पर शापित पितृदोष माना जाता है।
लग्न में राहु होने पर भी पितृ दोष बनता है। इसके साथ यदि कुंडली में चंद्रमा के साथ केतु और सूर्य के साथ राहु है तो ये भी एक प्रकार का पितृदोष होता है।
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य पर शनि, राहु एवं केतु की दृष्टि पड़ रही है तो उस व्यक्ति के कुंडली में पितृ ऋण का दोष होता है।
लाल किताब के अनुसार पितृ दोष के प्रकार :
लाल किताब के मुताबिक पूर्वजों अथवा पितरों द्वारा किए गए गलत कार्य का भुगतान आने वाली पीढ़ियों को भी करना पड़ता है। लाल किताब में 10 तरह के ऋण का जिक्र किया गया है जो पितृदोष का कारण बनते हैं। ये ऋण कुछ इस प्रकार हैं –
पूर्वजों का ऋण :
पूर्वजों के ऋण से यहां तात्पर्य है कि पूर्वजो अथवा पितरों द्वारा किए गए कुकर्मों का फल उनके आने वाली पीढ़ियों को भी भुगतना पड़ता है, जिसे पूर्वजों के ऋण का नाम दिया गया है। इसके प्रभाव से खून से जुड़े सभी रिश्तों की कुंडली में पितृ दोष का साया रहता है, जिसके प्रभाव से सभी काम रुके रहते हैं, रिश्तो में आपसी प्रेम नहीं रहता है और राजयोग खत्म हो जाता है।
पितृ ऋण:
लाल किताब के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के पांचवें, नवे अथवा बारहवें भाग में शुक्र, राहु एवं बुध का साया रहता है, तो ये दर्शाता है कि व्यक्ति की कुंडली में पितृ ऋण का साया है। ये मुख्य रूप से पूर्वजों द्वारा किसी देवस्थल पर तोड़ फोड़, अथवा किसी पूज्य वृक्ष के कटने की वजह से होता है।
मातृ ऋण:
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के चौथे भाव में केतु विराजमान हो तो, कुंडली पर मातृ ऋण का साया माना जाता। यह मुख्य रूप से पूर्वजों द्वारा किसी मां को कष्ट दिए जाने की वजह से होता है। इसकी एक वजह नदी अथवा कुएं या किसी अन्य जलाशय में कचरा फेंकना भी हो सकता है।
स्वयं का ऋण :
जब किसी व्यक्ति की कुंडली के पांचवे भाव में शुक्र, शनि, राहु अथवा केतु विराजमान हो तो ये उस व्यक्ति के खुद के ऋण को दर्शाता है। इसकी मुख्य वजह अपने कुल की परंपरा अथवा रीति रिवाज का भलीभांति पालन न करना या, व्यक्ति की नास्तिक विचारधारा हो सकती है।
पत्नी का ऋण :
जब किसी व्यक्ति की कुंडली के सातवें भाव में सूर्य, राहु अथवा चंद्रमा विराजमान हो तो, ये उस व्यक्ति के कुंडली में पत्नी के ऋण को दर्शाता है। इसकी मुख्य वजह पूर्वजों अथवा बुजुर्गों द्वारा लालच के प्रभाव में आकर किसी गर्भवती महिला को सताया जाना होता है।
पुत्री ऋण :
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के तीसरे अथवा छठे भाव में चंद्रमा विराजमान हो, तो ऐसे व्यक्ति की कुंडली पुत्री ऋण से पीड़ित होती है। यह मुख्य रूप से पूर्वजों द्वारा किसी बहन अथवा बेटी को सताए जाने की वजह से होता है। बच्चों पर अत्याचार अथवा अपने लालच के लिए बच्चों का उपयोग भी इसकी एक मुख्य वजह हो सकती है।
संबंधियों का ऋण :
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के प्रथम अथवा आठवे भाव में बुध अथवा केतु विराजमान हो तो ऐसे जातक की कुंडली संबंधी के ऋण से ग्रसित मानी जाती है। इसकी मुख्य वजह पूर्वजों द्वारा किसी को जहर दिया जाना, किसी के घर में आग लगाया जाना, किसी के फसल में आग लगाया जाना या किसी के जानवर को मार डालना है।
जालिमाना ऋण:
जब कुंडली के 10वें अथवा 11वें भाव में सूर्य, चंद्रमा अथवा मंगल विराजमान हो तो ये जालिमाना ऋण को दर्शाता है। ये मुख्य रूप से पूर्वजों द्वारा किसी को धोखा दिए जाने या किसी का हक मारने की वजह से होता है।
अजन्मा ऋण:
कुंडली के 12वें भाव में सूर्य, शुक्र अथवा मंगल का विराजमान होना, व्यक्ति के अजन्मा ऋण से पीड़ित होने को दर्शाता है। इसकी मुख्य वजह पूर्वजों अथवा पितरों द्वारा ससुराल पक्ष के लोगों को धोखा दिया जाना या किसी रिश्तेदार के परिवार की बर्बादी की वजह बनना हो सकता है।
कुदरती ऋण:
लाल किताब में कुदरती ऋण को 10वें ऋण के रूप में बताया गया है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली के छठे भाव में चंद्रमा व मंगल विराजमान होता है, तो व्यक्ति की कुंडली कुदरती ऋण से ग्रसित होती है। ये दोष पूर्वजों या पितरों द्वारा किसी की जिंदगी को बुरी तरह से बर्बाद कर दिए जाने की वजह से होता है।
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