जिस गांव में श्री कृष्ण रचाते थे रासलीला, उसी गांव में हुई थी सूरदास की मृत्यु। आगे इस पोस्ट में पढ़े सूरदास की मृत्यु एवं जीवन से जुड़ी खास बातों को –
श्री कृष्ण के परम भक्त सूरदास भक्ति काल के प्रसिद्ध कवि थे। ईश्वर की सगुण धारा यानी ईश्वर की आकृति में आस्था रखने वाले कवि सूरदास ने अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी अपार आस्था व्यक्त की है। इनकी रचनाओं में मुख्य रूप से श्रृंगार रस व शांत रस के माध्यम से श्री कृष्ण के स्वरूप को उल्लेखित किया गया है।
सूरदास के जीवन से जुड़े कई मतभेद सामने आए हैं। सूरदास की मृत्यु और जन्म को लेकर लोगों की अलग अलग राय सामने आई है। जैसा कि सभी जानते हैं कवि सूरदास अंधे थे। इनके अंधेपन को लेकर भी लोगों में मतभेद है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि सूरदास जन्मांध थे। जबकि उनकी रचनाओं में जिस तरह से राधा कृष्ण के सौंदर्य का सजीव वर्णन किया गया है, और अलग-अलग रंगों का बहुत बारीकी के साथ विभेद किया गया है, ये किसी भी जन्मांध व्यक्ति द्वारा किया जाना लगभग असंभव है। सूरदास के मृत्यु, जीवन एवं इनके जन्मांध होने से जुड़े इन्हीं मतभेदों के बारे में आगे विस्तार से चर्चा की गई है।
सूरदास की मृत्यु
सूरदास की मृत्यु कब हुई थी, इसे लेकर इतिहासकारों की अलग अलग राय थी। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक सूरदास की मृत्यु विक्रमी संवत 1642 यानी सन 1583 ईसवी में हुई थी, वहीं कुछ इतिहासकारों का कहना था कि इनकी मृत्यु विक्रमी संवत 1620 यानी सन 1563 ईस्वी में हुई थी। लेकिन अधिकतर लोगों की यही राय है कि सूरदास की मृत्यु संवत् 1642 (सन 1583 ईसवी) में हुई थी। कृष्ण जी के परम भक्त सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के पास स्थित परसौली गांव में हुई थी। इस गांव के बारे में कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्णा यहां पर अपनी रासलीला रचाते थे। सूरदास की मृत्यु के पश्चात परसौली गांव में जिस स्थान पर सूरदास जी ने अपने प्राण त्यागे थे उस स्थान पर उनके नाम से एक मंदिर स्थापित किया गया है, इस मंदिर का नाम है ‘सूरश्याम मंदिर‘ जिसे ‘सूर कुटी‘ के नाम से भी जाना जाता है।
सूरदास की मृत्यु से जुड़ी कहानी
सूरदास की मृत्यु से जुड़ी एक कथा बेहद प्रचलित है । कहा जाता है कि सूरदास नियमित तौर पर श्रीनाथजी की आरती में शामिल हुआ करते थे। एक दिन सूरदास के गुरु आचार्य बल्लभ और गोसाई विट्ठल नाथ ने देखा कि सूरदास श्रीनाथ की आरती में शामिल नहीं हुए हैं। तब उनके गुरु को एहसास हुआ कि सूरदास का अंतिम समय करीब आ गया है। वो तुरंत चतुर्भुज दास, कुंभन दास गोसाई जी, रामदास और गोविंद स्वामी के साथ सूरदास की कुटिया पर पहुंचे जहां पर उन्होंने देखा सूरदास अचेत अवस्था में जमीन पर पड़े हुए हैं। अचेतावस्था में सूरदास ने अपने गुरु और ईष्ट देव का अभिनंदन करते हुए भक्ति भावना में लीन होकर अपने प्राणों का परित्याग किया।
सूरदास का जीवन परिचय
भक्ति काल के प्रसिद्ध कवि सूरदास का जन्म 1478 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के मथुरा आगरा मार्ग पर स्थित रूनकता क्षेत्र के एक गरीब सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जैसा कि हमने पहले ही बताया था सूरदास के जीवन और मृत्यु को लेकर विद्वानों में कई मतभेद है। कई जगह यह भी कहा गया है कि सूरदास का जन्म स्थान सीही है।
इनके पिता का नाम रामदास था जो एक गायक थे। सूरदास का बचपन और उनकी प्रारंभिक शिक्षा गऊघाट में हुई। गऊघाट में श्री वल्लभाचार्य के मार्गदर्शन में सूरदास श्री कृष्ण की भक्ति की तरफ अग्रसर हुए। सूरदास जी श्री कृष्ण की भक्ति में इतने लीन हुए कि उन्होंने ब्रजभाषा में श्री कृष्ण के प्रति अपनी आस्था को प्रकट करते हुए कविताएं लिखनी शुरू कर दी। सूरदास द्वारा लिखे गए पांच प्रमुख ग्रंथ हैं, जिनसे इनकी कृष्ण भक्ति का प्रमाण मिलता है। ये ग्रंथ हैं – सूरसागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयंती और ब्याहलो।
क्या सूरदास थे जन्मांध
ये बात तो सबको पता है की भक्ति काल के प्रसिद्ध कवि सूरदास अंधे थे। लेकिन इनके अंधेपन को लेकर भी विद्वानों में मतभेद है। कुछ लोगों का कहना है कि सूरदास जन्मांध थे, जबकि उनकी रचनाओं में जिस तरह से राधा कृष्ण के सौंदर्य का सजीव वर्णन किया गया है, और अलग-अलग रंगों का बहुत बारीकी के साथ विभेद किया गया इसे देखते हुए कुछ विद्वानों का कहना है कि किसी भी जन्मांध व्यक्ति के लिए ये ऐसी बारीकियां को पकड़ना लगभग असंभव है।
डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने सूरदास द्वारा लिखे गए ग्रंथ सूरसागर के कुछ पदों के आधार पर ये कहा है कि स्वयं सूरदास ने इस बात का उल्लेख किया है कि वो जन्म के अंधे और कर्म से अभागे हैं। हालांकि एक लेख के आधार पर इस बात की पुष्टि नहीं हो सकती की सूरदास जी जन्मांध थे।
जाने माने कभी श्याम सुंदर दास की सूरदास के अंधेपन को लेकर राय अलग है। इनका मानना है कि सूरदास जी जन्मांध नहीं हो सकते क्योंकि इन्होंने श्रृंगार एवं रूप इत्यादि का जिस प्रकार से वर्णन किया है ये किसी भी जन्मांध व्यक्ति के लिए करना असंभव है। सूरदास के अंधेपन को लेकर कई लोक कथाएं भी कही जाती हैं। इन लोक कथाओं की माने तो सूरदास ने खुद अपने हाथों से अपनी आंखे फोड़ी हैं।।
अपने जीवन के 105 साल सूरदास ने श्री कृष्ण की भक्ति में लीन होकर बिताया। बिना आंखों के ही श्री कृष्ण के हर स्वरूप का दर्शन किया और अपनी कविताओं में इसकी व्याख्या की। सन 1583 ईसवी में सूरदास अपने देह का त्याग कर परलोक सिधार गए।
Read This Also: तुलसीदास की मृत्यु कब हुई थी ?
Be First to Comment