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क्या पितृपक्ष में मंदिर जाना चाहिए ?

पितृपक्ष में मंदिर जाना चाहिए अथवा नहीं इसको लेकर भ्रम बना रहता है। हिंदू धर्म में इससे जुड़े कई मिथक हैं। आइए इसके बारे में विस्तार में जानते हैं।

पितृपक्ष 2023 की शुरुआत हो चुकी है। ये पक्ष पितरों को समर्पित होता है, और इस दौरान विधि विधान से श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को तृप्ति मिलती है, और वो अपने बच्चो को सुखी जीवन का आशीर्वाद देते हैं।

पितृपक्ष के दौरान होने वाले श्राद्ध में कई नियमों का पालन किया जाता है। इससे जुड़े कई नियम है जिनका विधि विधान से पालन करना अनिवार्य है। अब सवाल ये उठना है कि पितृपक्ष जिसमें मृत पितरों एवं पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, ऐसे में इस दौरान देवी देवताओं की पूजा अर्चना करनी चाहिए या नहीं करनी चाहिए ?

पितृपक्ष में मंदिर जानें से जुड़े नियम

पितृपक्ष में मंदिर

हिंदू धर्म जिसमें देवी देवताओं के साथ पूर्वजों की फोटो रखना अथवा भगवान की पूजा के साथ पितरों की पूजा करना भी वर्जित है, ऐसे में जब पितृपक्ष में पूरा दिन ही पितरों व पूर्वजों को समर्पित होता है, तो उस दौरान भगवान की पूजा -अर्चना करनी चाहिए अथवा नहीं, इससे जुड़ी दुविधा अक्सर लोगो के मन में देखने को मिलती है।

दरअसल हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान किसी भी शुभ कार्य को करना वर्जित माना जाता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होकर अमावस्या तिथि तक चलने वाले इस पक्ष के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। परंतु इसका ये तात्पर्य नहीं कि पितृ पक्ष में भगवान की पूजा-अर्चना नहीं करनी चाहिए अथवा पितृपक्ष में मंदिर नहीं जाना चाहिए।

पितृपक्ष में मंदिर जानें में नहीं है कोई रोक टोक

पितृपक्ष में मंदिर 3

भगवान के पट अपने भक्तों के लिए हमेशा खुले रहते हैं। कोई भी समय अथवा काल हो, मंदिर जानें में कोई मनाही नहीं होती। यहां तक की पितृपक्ष के दौरान भी मंदिर के द्वार हमेशा खुले रहते हैं। पितृपक्ष में मंदिर जाने अथवा भगवान की पूजा अर्चना करने में कोई रोक टोक नही होती है। हालांकि इस दौरान किसी भी शुभ अथवा मांगलिक कार्य का आयोजन नहीं किया जाना चाहिए।

धार्मिक मान्यता के अनुसार तो जो व्यक्ति पितृपक्ष के दौरान अपने पूर्वजों एवं पितरों का श्राद्ध करता है, उसे पहले भगवान का पूजन करना चाहिए उसके बाद ही अपने पितरों का पिंडदान, श्राद्ध अथवा तर्पण करना चाहिए।

पितृपक्ष में पूजा अर्चना से जुड़े नियम

पितृपक्ष में मंदिर 4
  • पितृपक्ष में पूर्वजों एवं पितरों का श्राद्ध करने वाले व्यक्तियों को सुबह उठकर नित्य क्रिया से निपटने के बाद सर्वप्रथम भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए, इसके बाद ही श्राद्ध पिंडदान अथवा तर्पण करना चाहिए। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण का फल भगवान की पूजा अर्चना के बाद ही मिलता है।
  • हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार भगवान की मूर्ति के साथ कभी भी पितरों अथवा पूर्वजों की फोटो नहीं लगानी चाहिए। इससे घर का वास्तु खराब होता है और नकारात्मक ऊर्जा घेर लेती है।
  • धार्मिक मान्यता एवं वास्तु शास्त्र के मुताबिक घर में पितरों की एक ही तस्वीर लगानी चाहिए। तस्वीर को घर के उत्तर की दीवार पर लगाना चाहिए, जिससे तस्वीर का मुख दक्षिण दिशा में हो।

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