भरत और शत्रुघ्न ने किया था राजा दशरथ का अंतिम संस्कार। फिर देवी सीता ने किया अपने ससुर का पिंडदान। आगे पढ़िए राजा दशरथ की मृत्यु व अंतिम संस्कार से जुड़ी बातें –
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित हिंदुओ के पवित्र महाकाव्य में राजा दशरथ एक महान चरित्र के रूप में वर्णित किये गए हैं। रामायण ग्रंथ भगवान विष्णु के 7वें अवतार श्री राम के जीवन पर आधारित है। भगवान विष्णु ने अपने सातवें अवतार के रूप में अयोध्या के राजा दशरथ के घर में उनके बड़े पुत्र के रूप में जन्म लिया था। अयोध्या के राजा दशरथ ने हर दिशा में अपने विजय का परचम लहराया था, और चक्रवर्ती सम्राट कहलाए थे।
आज इस पोस्ट हम जानेंगे कि राजा दशरथ की मृत्यु कैसे हुई थी ? उनका अंतिम संस्कार किसने किया था ? राजा दशरथ का अंतिम संस्कार कहां हुआ था और कैसे उन्हें मुक्ति मिली थी ?
राजा दशरथ का देहांत कैसे हुआ :
अयोध्या के राजा दशरथ की मृत्यु से जुड़ी एक कहानी बेहद खास है। दरअसल राजा दशरथ को शिकार करने का बहुत शौक था। एक बार की बात है राजा दशरथ शिकार के लिए निकले हुए थे, उसी समय श्रवण कुमार अपने वृद्ध व नेत्रहीन माता-पिता को कावड़ में बिठाकर चारधाम यात्रा के लिए निकले हुए थे। बीच जंगल में उनके माता-पिता को तेज प्यास लगी, तो श्रवण कुमार कावड़ को जंगल में ही उतार कर अपने माता पिता के लिए जल का प्रबंध करने नदी के तट पर चले गए। नदी के तट पर जैसे ही श्रवण कुमार ने जल भरना शुरू किया, शिकार के लिए जंगल में आए राजा दशरथ ने समझा कि वहां पर कोई वन्यजीव है। उन्होंने शब्दभेदी बाण छोड़ दिया जो सीधे श्रवण कुमार के हृदय में जा लगा।
बाण के लगते ही श्रवण कुमार चीख पड़े। चीख सुनकर जब राजा दशरथ नदी के समीप पहुंचे तो वहां उन्होंने श्रवण कुमार को मरणासन्न अवस्था में पाया। श्रवण कुमार ने राजा दशरथ से अपने माता-पिता को जल पिलाने की बात कह, उनकी बाहों में ही अपने प्राण त्याग दिए। राजा दशरथ जब जंगल में श्रवण कुमार के माता-पिता के पास पहुंचे और सारी घटना उन्हें सुनाई, तब श्रवण कुमार के माता-पिता ने उन्हें श्राप दिया था कि जिस तरह बेटे के विरह में हम अपने प्राण त्याग रहे हैं, उसी तरह एक दिन तुम भी बेटे के विरह में अपने प्राण त्यागोगे।
पुत्र विमोह में दशरथ ने त्यागे अपने प्राण
श्रवण कुमार के माता पिता के श्राप का ही असर था कि राजा दशरथ के सामने ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई कि अपने बड़े पुत्र राम से बिछड़ने के दुख में राजा दशरथ के प्राण निकल गए।
जब राजा दशरथ के चारो पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न का विवाह के पश्चात अयोध्या वापस आए, तब राजा दशरथ ने अपने संपूर्ण राज-पाट को अपने ज्येष्ठ पुत्र राम को सौंपने का फैसला किया। पूरे राज्य में श्री राम के राज्याभिषेक की घोषणा कर दी गई। उसी समय राजा दशरथ की तीसरी रानी कैकेयी ने अपनी दासी मंथरा के बहकावे में आकर राजा दशरथ से दो वरदान मांगे।
- अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत का राज्य।
- राम को 14 वर्ष का वनवास
वचनबद्ध राजा ने कैकेयी को वरदान दे दिया। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए श्री राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के लिए वन में वास करने के लिए चले गए। श्री राम के वन को प्रस्थान करने के कुछ दिन बाद ही पुत्र वियोग मे राजा दशरथ की मृत्यु हो गई।
किसने और कहां किया राजा दशरथ का अंतिम संस्कार
जब राजा दशरथ की मृत्यु हुई उस समय राजा दशरथ के एक भी पुत्र अयोध्या में मौजूद नहीं थे। राम एवं लक्ष्मण अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वनवास के लिए गए हुए थे, जबकि भरत एवं शत्रुघ्न अपने ननिहाल कैकेय गए हुए थे। महाराजा दशरथ के निधन के पश्चात उनके राजगुरु महर्षि वशिष्ठ ने उनके पुत्र के हाथों से ही उनका अंतिम संस्कार करवाने का निर्णय लिया। और महाराजा दशरथ के निधन का संदेश कैकेय प्रदेश भेजा गया। तब तक महाराजा दशरथ के शव को औषधीय तेल से भरे पात्र में रखा गया।
भरत एवं शत्रुघ्न ने ननिहाल से वापस आकर अपने पुत्र धर्म का पालन करते हुए पिता दशरथ का अंतिम संस्कार किया। महाराजा दशरथ का दाह संस्कार फैजाबाद के बिलवहरी घाट पर भरत के हाथों किया गया। इस स्थान पर दशरथ समाधि का निर्माण किया गया है। इसके पश्चात जब भरत अपनी तीनों माताओं, भाई शत्रुघ्न और पूरी प्रजा के साथ चित्रकूट के वन में श्री राम को अयोध्या वापस लेने के लिए पहुंचे तब श्री राम को अपने पिता के निधन का समाचार मिला। पिता के निधन का समाचार मिलने के बाद श्री राम व लक्ष्मण ने अपने पिता को जलांजलि अर्पित की।
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