कालसर्प दोष के बारे में आप सभी ने सुना ही है। ये एक कुंडली दोष है। नवीन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर बात करें तो कालसर्प दोष को कुंडली के सबसे अशुभ दोषों में एक से माना जाता है। ये दोष राहु और केतु से निर्मित होता है और इसे सबसे खराब दोष के रूप में पहचाना जाना जाता है। इस दोष के किसी व्यक्ति की कुंडली में होने से उसकी ज़िंदगी बर्बाद हो जाती है और वो किसी भी काम में सफल नहीं हो पाता है। उसके बनते हुए कार्य भी बिगड़ने लगते हैं और तो और कालसर्प दोष की वजह से जीवन की सुख शांति भी छिन जाती है और पैसों की दिक्कत भी लगी रहती है। कालसर्प दोष को लेकर ऐसी मान्यता है कि जिस किसी भी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष होता है, उसे छोटे से छोटे काम को करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। इसके साथ ही जब कुंडली में अन्य ग्रहों की स्थिति भी अशुभ होती है तो ये दोष और भी प्रभावी रूप में उभरकर सामने आता है। इस दोष से ग्रसित व्यक्ति कभी भी परेशानियों से मुक्त नहीं हो पाते हैं और हमेशा किसी न किसी समस्या से जुझते रहते हैं।
कालसर्प दोष कुंडली में कैसे बनता है?
ऐसा माना जाता है कि कुंडली में राहु और केतु की अशुभ स्थिति ही कालसर्प दोष के लिए जिम्मेदार होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी भी व्यक्ति की कुंडली के जो सातों ग्रह होते हैं, वो पाप ग्रह, जिन्हें हम राहु और केतु के नाम से जानते हैं, उनके बीच में आ जाते हैं तो कालसर्प दोष की स्थिति बनती है। इसके अलावा इस दोष के दो और भी भेद बताए गए हैं। इसका पहला भेद उदित गोलार्द्ध कालसर्प दोष है तथा दूसरा अनुदित गोलाद्ध कालसर्प दोष है। अगर राहु और केतु की बात करें तो शास्त्रों में राहु और केतु को एक सर्प की भांति बताया गया है। ये किसी भी व्यक्ति के भाग्य को अपना निशाना बनाते हैं और सर्प की तरह व्यक्ति के भाग्य को ये खुद में जकड़ लेते हैं। राहु को सर्प के मुख के समान बताया गया है और वहीं केतु को सर्प की पूंछ के रूप में बताया गया है। जिस किसी की भी कुंडली में कालसर्प दोष रहता है, वो जीवन भर यानी मृत्यु तुल्य तक कष्टों को ही भोगता रहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि शास्त्रों में सर्प को काल का पर्याय माना गया है। जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष होता है उन्हें सांपो से बहुत डर लगता है और उन्हें रात में नींद नहीं आती है। जब कभी ऐसे व्यक्ति सोने का प्रयास करते हैं तो उन्हें सपने में सांप के दर्शन ही होते हैं। इसलिए ये कहा जाता है कि,
‘अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कंबलम्।
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नवं नामानि नागानां च महात्मनान।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातं काले विशेषत:।।
तस्य विष भयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।’
यानी, अनंत, वासुकि, शेष पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक और कालिया ये सभी नागों के देवता है। जो भी व्यक्ति इनका प्रतिदिन स्मरण करता है, उन्हें नागों का किसी भी प्रकार का कोई भय नहीं रहता है और वो सदैव विजय को प्राप्त करता है। ये तो हो गई ज्योतिष शास्त्र की बात,लेकिन अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठते देखा गया है कि क्या कालसर्प दोष सच है या झूठ? हमने इस पोस्ट में आगे इसी सवाल का जवाब देने का प्रयास किया है –
कालसर्प दोष सच या झूठ?
कालसर्प एक दुर्योग है, ये एक ऐसा दुर्योग है जिसके बारे में सुनते ही जनमानस चिंतित हो जाता है और भयभीत हो जाता है। कुछ ज्योतिष इस दोष को नकारते हैं तो वहीं कुछ इसे बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं। ऐसे में हम सभी के लिए ये जानना बेहद आवश्यक हो जाता है कि ये आखिर कितना सच है। कालसर्प दोष को न तो सच ही कहा जा सकता है और न ही झूठ। इसको दोनो ही संज्ञा नहीं दी जा सकती है। ये भी बाकी के खराब योगों की तरह ही है जो कि जन्म पत्रिका में रहकर किसी भी व्यक्ति के जीवन में दुष्प्रभाव डालता है। इसको शास्त्रों में सर्पयोग के नाम से जाना जाता है। इसे नकारा नहीं जा सकता है। क्योंकि जब शास्त्र कर्तरी दोष को मानता है, तो ये तो उससे भी आगे है। कर्तरी दोष में तो बस एक ही ग्रह किसी दो पाप ग्रहों के बीच में आता है, और फिर सारे शुभ भाव या फल नष्ट हो जाते हैं। जबकि यहां कालसर्प दोष में तो सारे ही ग्रह दो पाप ग्रहों राहु और केतु के बीच में आते हैं। इसीलिए ये दोष भी कर्तरी दोष के समान ही खतरनाक है। कालसर्प दोष का वराहमिहिर ने अपनी संहिता ‘जातक नभ संयोग’ में इसका सर्पयोग के नाम से उल्लेख किया है तथा ‘सारावली‘ में भी ‘सर्पयोग’ का वर्णन मिलता है। कालसर्प दोष का नाम कालसर्प इसलिए पड़ा क्योंकि राहु को शास्त्रों में ‘काल’ की संज्ञा दी गई है और ‘केतु’ को शास्त्रों में सर्प की संज्ञा दी गई है। इसीलिए इन दोनों की प्रस्तुति से ये दोष बनता है, इसीलिए इसे कालसर्प दोष कहा जाता है।
इसका सबसे ज्यादा प्रमाणिक तथ्य तो हिंदू संस्कृति से मिलता है। हिंदू संस्कृति के सर्वाधिक लोकप्रिय और महत्वपूर्ण द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक त्र्यंबकेश्वर के विद्वानों के द्वारा भी इसे स्वीकर किया गया है और इसे मान्य किया गया है। ऐसे में कालसर्प दोष को झूठा समझना सही नहीं है। अगर कालसर्प दोष के झूठ माना जा रहा है, तो उसके झूठे होने का आशय यह हुआ कि हमारा सर्वाधिक प्रतिष्ठित और मान्य तीर्थस्थान, जिसे द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक के रूप में जाना जाता है, वो अपने व्यावसायिक लाभ के लिए ‘कालसर्प’ दोष का मिथ्या प्रचार कर रहा है। ऐसे में तो इन दोनों में से कोई एक ही तथ्य सत्य हो सकता है। ‘कालसर्प’ दोष सच या झूठ, किस बात पर सहमत होना चाहिए ये आपका अपना निर्णय होगा। कालसर्प की सत्यता और झूठ का निर्णय उपरोक्त बातों के आधार पर आप स्वयं कर सकते हैं।
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