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हिंदू धर्म में कितने संस्कार होते हैं?

हिंदू धर्म में संस्कार का विशेष महत्व है। जब एक बच्चे का जन्म होता है, उससे पहले से ही यानी गर्भावस्था से ही ये संस्कार शुरू हो जाते हैं और ये संस्कार व्यक्ति के मरने तक चलते हैं। मरने के बाद का जो संस्कार होता है, वही अंतिम संस्कार होता है, इसके बाद व्यक्ति पूरी तरह से मुक्त हो जाता है। ग्रंथों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म में कुल 16 संस्कार हैं और ये सभी बहुत महत्व रखते हैं। ये सभी संस्कार बहुत जरूरी होते हैं तथा इन सोलह संस्कारों में कुछ संस्कार जन्म से पूर्व ही कर लिए जाते हैं। कुछ संस्कार ऐसे हैं, जो जन्म होने के बाद किए जाते हैं और कुछ बाद में और आखिर में अंतिम संस्कार करके व्यक्ति को दुनिया से विदा कर दिया जाता है।

हिंदू धर्म में बताए गए 16 संस्कारों को हर व्यक्ति को जानना चाहिए। इसीलिए आज हम ये पोस्ट लेकर के आए हैं। इस पोस्ट में हम बताएंगे कि संस्कार होते क्या हैं और हिंदू धर्म में कितने संस्कारों में बारे में बताया गया है?

संस्कार संस्कृत भाषा का एक शब्द है। इसका मतलब होता है मन, क्रम, वचन तथा शरीर को पवित्र करना। संस्कार का सीधा और सरल सा अर्थ है, ‘किसी को शुद्ध करके उसे उपयुक्त बनाना या फिर किसी को सुसंस्कृत करना। इसका तात्पर्य यह हुआ कि संस्कार के द्वारा विशेष क्रिया को करके किसी भी साधारण मनुष्य को शुद्ध करके उसे उत्तम बना देना या उसे सुसंस्कृत कर देना। ये विशेष क्रिया धार्मिक प्रक्रियाओं का पालन करके ही संपन्न की जाती है। इसके बाद व्यक्ति को इन संस्कारों का पालन करना होता है। संस्कारों का पालन करने से व्यक्ति को आयु आरोग्यता की प्राप्ति होती है। ये संस्कार ही होते हैं जो व्यक्ति को समाज में उठने बैठने और सामाजिक बनने में मदद करते हैं। अगर व्यक्ति के संस्कार अच्छे होते हैं, तभी वो व्यक्ति सभ्य कहलाता है।

हिंदू धर्म में कुल 16 संस्कारों का वर्णन किया गया है। इन 16 संस्कारों का पालन अगर व्यक्ति अपने जीवन यापन में करता है, तो उसे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता है। इसी के साथ ही हिंदू धर्म के इन 16 संस्कारों को व्यक्तित्व निर्माण के लिए भी जाना जाता है और इनकी व्यक्तित्व निर्माण में विशेष महत्ता है। संस्कार व्यक्ति को एक सही राह प्रदान करते हैं तथा इनका पालन करने व्यक्ति सदैव अपने उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर रहता है। हिंदू धर्म में इन 16 संस्कारों को तीन भागों में विभाजित किया है, जिसमें से पहला भाग है मलापनयन का, दूसरा भाग है अतिशयाधान का और तीसरा और अंतिम भाग है न्यूनांगपूरक का। चलिए अब एक एक करके हम इनके बारे में जानते हैं।

मलापनयन– इसका अर्थ होता है किसी दर्पण या फिर किसी भी चीज़ पर पड़ी धूल, गंदगी आदि को साफ करना या हटाना। किसी दर्पण या चमकदार चीज को साफ करना ही मलापनयन कहलाता है।

अतिशयाधान– अतिशयाधान का अर्थ होता है कि किसी पदार्थ या किसी रंग का इस्तेमाल करके उस दर्पण को प्रकाशमय बनाना। संस्कारों की भाषा में इसे गुणाधान संस्कार भी कहा जाता हैं।

न्यूनांगपूरक– अंत में आता है न्यूनांगपूरक। इसका अर्थ होता है जब कोई अनाज भोज्य पदार्थ में परिवर्तित हो जाता है, तो उसके बाद उसमें दाल, घृत आदि अलग से मिलना। इससे जो हीन अंग होते हैं, उनकी पूर्ति की जाती है। जिससे कि अनाज का स्वाद बढ़ सके और वो पौष्टिक बन सके।

हिंदू धर्म के 16 संस्कार –

हिंदू धर्म के 16 संस्कार 2

इसके बाद जो संस्कार होते हैं, वो गर्भस्थ से शुरु होकर मरणोपरांत तक चलते हैं। वेद और पुराणों में काफी प्रकार के संस्कारों के बारे में बात की गई है किंतु धर्म गुरुओं ने मुख्य 16 संस्कारों के बारे में बताया है जिसकी चर्चा अब हम आगे करने वाले हैं।

गर्भाधान संस्कार

हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में पहला संस्कार है गर्भाधान संस्कार। किसी भी स्त्री के गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने के पश्चात गर्भाधान करना उसका प्रथम कर्तव्य है। उत्तम संतान की उत्पत्ति की इच्छा रखने वाले माता-पिता को गर्भधारण करने से पूर्व तन एवं मन की शुद्ध के लिए ये संस्कार करना महत्वपूर्ण माना जाता है।

पुंसवन संस्कार

ये हिंदू धर्म का दूसरा संस्कार है और ये गर्भ धारण करने के बाद तीसरे माह में किया जाता है। जब एक भ्रूण की गर्भ धारण करने के बाद संरचना होना शुरू होती है, तो उसके माता- पिता का ये कर्तव्य होता है कि उसके अच्छे जीवन के लिए वैदिक मंत्रों से इस संस्कार को अवश्य करें।

सीमन्तोन्नयन संस्कार

ये तीसरा संस्कार होता है और ये गर्भ के छठे महीने में किया जाता है। असल में ऐसा माना जाता है कि छठे महीने से लेकर आठवें महीने तक गर्भपात की संभावना जो होती है, वो सबसे ज्यादा होती है। इसीलिए ये संस्कार किया जाता है। ताकि गर्भ में शिशु और माता की रक्षा की जा सके।

जातकर्म संस्कार

जातकर्म संस्कार शिशु के जन्म के दौरान किया जाता है और ये हिंदू धर्म में चौथा संस्कार है। इस संस्कार के अतंर्गत शिशु के पिता का ये कर्तव्य है कि वो अपने हाथों से शिशु के मुंह में घी या शहद डालें।

नामकरण संस्कार

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हिंदू धर्म का पांचवा संस्कार है नामकरण संस्कार। इसमें नए जन्मे शिशु का नाम उसकी कुंडली के अनुसार जन्म के ग्यारहवें या सोलहवें दिन रखा जाता है।

निष्क्रमण संस्कार

जब शिशु 4 से 6 महीने का हो जाता है, तब ये संस्कार किया जाता है। इस संस्कार के अंतर्गत शिशु को सूर्य और चंद्रमा के प्रभाव में लाने का प्रयास किया जाता है।

अन्नप्राशन संस्कार

अन्नप्राशन संस्कार सातवां संस्कार होता है और इस संस्कार में शिशु को अन्न का भोग लगाया या मुंह को अन्न से जूठा करवाया जाता है। इसमें शिशु की लंबी उम्र की भी प्रार्थना की जाती है तथा उसे उपहार आदि भी भेंट किए जाते हैं।

चूड़ाकर्म या मुंडन संस्कार

हिंदू धर्म का आठवां संस्कार मुंडन संस्कार होता है, इस संस्कार में बच्चे के बालों को निकलवाकर उनका मुंडन करवाया जाता है। ये संस्कार बच्चे के 1, 3, 5 या 7 साल पूरे होने पर किया जाता है।

विद्यारंभ संस्कार

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मुंडन संस्कार के बाद विद्यारंभ संस्कार आता है। इस संस्कार में शिशु को विद्या से परिचित करवाया जाता है। इसी संस्कार में शिशु पढ़ने के लिए स्कूल में भेजा जाता है।

कर्णवेध संस्कार

कर्णवेध संस्कार दसवां संस्कार हैं। ऐसा माना जाता है कि हमारे कान ही श्रवण द्वार हैं। इसीलिए शिशु के कानों को दसवें संस्कार में छेदा जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि शिशु की समझने की क्षमता बढ़े।

यज्ञोपवीत संस्कार

ग्यारहवें संस्कार को यज्ञोपवीत संस्कार के रूप में जाना जाता है और इसी संस्कार में जनेऊ को धारण किया जाता है।

वेदारंभ संस्कार

प्राचीन समय में आचार्यों या विद्वानों को बुलाकर शुभ मुहूर्त निकलवाकर इस संस्कार को किया जाता था। इस संस्कार में बच्चे की वेदों की शिक्षा को प्रारंभ किया जाता था। इसमें बच्चे गुरुकुल में जाकर वेद या उपनिषद को पढ़ते हैं।

केशांत संस्कार

हिंदू धर्म के 16 संस्कार

तेरहवां संस्कार केशांत संस्कार है। प्राचीन समय में जब पढ़ाई पूरी हो जाती थी तो उसके बाद बालक अपने केशों का त्याग कर देता था और इसी को केशांत संस्कार के रूप में जाना जाता था।

समावर्तन संस्कार

समावर्तन संस्कार में एक बालक अपनी गुरुकुल की शिक्षा को पूरा करने के बाद, गुरुकुल से विदा लेकर सामाजिक जीवन जीने की राह पर निकल पड़ता है। इसी को समावर्तन संस्कार के रूप में जाना जाता है।

विवाह संस्कार

हिंदू धर्म का पंद्रहवां संस्कार विवाह संस्कार है। इस संस्कार में व्यक्ति वैवाहिक जीवन में कदम रख कर अपने गृहस्थ जीवन की शुरुआत करता है। इसे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण संस्कार के रूप में भी जाना जाता है। इसमें स्त्री और पुरुष अपने माता- पिता की आज्ञा लेकर देवी- देवताओं की आराधना करके अपने गृहस्थ जीवन की शुरुआत करते हैं।

अंत्येष्टि संस्कार

अंत्येष्टि संस्कार हिंदू धर्म का सोलहवां एवं आखिरी संस्कार है जिसे अंतिम संस्कार के नाम से भी जाना जाता है। ये संस्कार व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके परिजनों के द्वारा किया जाता है। इस संस्कार के बाद व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति करता है।

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