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औरंगजेब की मृत्यु कब हुई ?

‘मैं पापी हूं, मेरे गुनाह शायद माफ करने के लायक नहीं’ औरंगजेब की मृत्यु के समय ये थे उसके आखिरी शब्द। आगे पढ़ें औरंगजेब की मृत्यु से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें –
मुगल बादशाह औरंगजेब भारत पर राज्य करने वाला छठा मुगल बादशाह था। औरंगजेब ने भारत पर 1658 से लेकर 1707 तक शासन किया। 50 वर्षों के अपने शासन काल में औरंगजेब ने कई बड़े कारनामे किए। औरंगजेब एक कट्टर और क्रूर शासक था। सत्ता हासिल करने के लिए औरंगजेब ने कई कुकर्म किए। अपने बूढ़े पिता को बंदी बनाने से लेकर, भाई की हत्या तक करवाया। यहां तक की औरंगजेब ने अपने बेटे को भी जहर दे दिया था। गैर मुसलमानों के लिए औरंगजेब के हृदय में बहुत घृणा थी। उसने कई मंदिर तुड़वाएं, गैर मुसलमान पर जुर्म ढाए।

लेकिन अपनी मृत्यु के समय वह खुद से बहुत निराश हो गया था। औरंगजेब की मृत्यु से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बाते हैं, जिसकी चर्चा आगे की गई है।

औरंगजेब की मृत्यु

औरंगजेब की मृत्यु 2

औरंगज़ेब भारत पर सबसे अधिक समय तक राज करने वाला मुगल शासक था। इसके शासनकाल की शुरुआत 31 जुलाई 1658 को शुरू हुई थी। 50 वर्ष तक शासन करने के बाद 3 मार्च 1707 को औरंगजेब की मृत्यु हो गई। एक बेहद क्रूर और कट्टरपंथी शासक के रूप में राज्य करने वाला औरंगजेब अपने आखिरी समय में खुद से बहुत निराश हो गया था।

औरंगजेब अपने मजहब को सबसे अधिक महत्व देता था। इतिहासकारों का कहना है कि जब औरंगजेब का आखिरी समय करीब आने लगा था, तब वह खुद से ही बातें करने लगा था। उसकी बातों से ऐसा प्रतीत होता था कि वह अपने कर्मों से अधिक संतुष्ट नहीं था और उसे ऐसा लगता था कि वो अपने जीवन में अपने मजहब के प्रति अधिक योगदान नहीं दे पाया है। मृत्यु के करीब होने पर औरंगजेब खुद से बातें करते हुए कह रहा था कि ‘अल्लाह ने मुझे जितनी सांसे बक्शी थी, उसका एक कतरा भी मैं अदा नहीं कर पाया। क्या मुंह दिखाऊंगा उन्हें ?’

जैसे-जैसे औरंगजेब की मृत्यु करीब आ रही थी उसकी चिंताएं बढ़ती जा रही थी। मृत्यु के निकट आने पर औरंगजेब ने अपने सबसे छोटे बेटे कामबख्श से भी अपने मन की चिंता व्यक्त की और कहा -‘मेरे मरने के बाद मेरे लोगों से बुरा सलूक होगा। जो मैंने लोगों के साथ किया वही मेरे अपनों के साथ होगा।’ बेटे से व्यक्त की गई औरंगजेब की यह चिंता दर्शाती है कि औरंगजेब को अपने जीवन काल में किए गए कर्मों को लेकर काफी चिंता थी। कहीं ना कहीं उसे अपने दिल में पता था कि उसके कर्मों की वजह से वो घृणा का पात्र बन चुका है।

किस वजह से हुई औरंगजेब की मृत्यु

औरंगजेब की मृत्यु 3

इतिहास के अनुसार औरंगजेब की मृत्यु का जिम्मेदार बुंदेला राजा वीर छत्रसाल था । अपने शासनकाल में औरंगजेब ने बहुत जुर्म किए थे। औरंगजेब के जुर्म के विद्रोह में कई युद्ध हुए थे। आखिरी युद्ध बुंदेलखंड साम्राज्य के साथ हुआ जिसके राजा के हाथों औरंगजेब की मृत्यु हुई। आखिरी युद्ध में औरंगजेब के शरीर पर ऐसा जख्म हुआ, जिसकी वजह से वो लगभग 3 महीने बिस्तर पर पड़ा रहा और आखिरकार उसकी मौत हो गई।

ऐसा कहा जाता है कि वीर छत्रसाल के मन में बचपन से ही औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह की भावना थी। जब ये 12 साल के थे तब उनके पिता चंपत राय ने औरंगजेब के विद्रोह में युद्ध छेड़ा था। लेकिन इस युद्ध में चंपत राय के साथियों ने उनके साथ दगा किया। इस धोखे ने चंपत राय के हृदय को इतना आहत किया कि उन्होंने अपनी पत्नी समेत खुदकुशी कर ली। और इस तरह 12 साल की उम्र में ही वीर छत्रसाल के सर से उनके माता-पिता का साया हट गया। तब से वीर छत्रसाल अपने माता-पिता की मृत्यु का कारण औरंगजेब को मानते थे और बड़े होने के बाद, इसी का बदला लेना के लिए इन्होंने कई बार औरंगजेब के साथ युद्ध किया, और आखिरी युद्ध में उन्हें औरंगजेब को मारने में सफलता मिली। युद्ध में ही छत्रसाल ने औरंगजेब के शरीर पर ऐसा घाव किया, जो उसे मृत्यु के करीब ले गया।

औरंगजेब की मृत्यु के समय के आखिरी शब्द

औरंगजेब की मृत्यु 1

इतिहासकारों के अनुसार जब औरंगजेब की मृत्यु उसके एकदम करीब थी, तब उसने अपने सबसे प्रिय पुत्र आजम शाह को अपने करीब बुलाया और उससे कहा कि -‘ बादशाह के तौर पर मैं नाकाम रहा। मेरा कीमती जीवन किसी काम नहीं आया। अल्लाह चारों ओर हैं, लेकिन मैं बदनसीब हूं कि जब उनसे मिलने की घड़ी आ रही है तब मैं उनकी मौजूदगी महसूस नहीं कर पा रहा हूं। मैं पापी हूं। शायद मेरे गुनाह ऐसे नहीं जिसे माफ किया जा सके।’

अपने जीवन के आखिरी दिनों में औरंगजेब बहुत ही बेबस एवं परेशान हो गया था और हर दुआओं में सुकून ढूंढने का प्रयास कर रहा था। मृत्यु के दिन भी यानी 3 मार्च 1707 को सुबह होने वाली प्रार्थना का हिस्सा बना। इसके बाद अपने प्रिय बेटे आजम शाह से बात करते- करते ही उसकी मृत्यु हो गई।

औरंगजेब का अंतिम संस्कार

औरंगजेब अपनी मृत्यु के समय औरंगाबाद में था। उसकी आखिरी इच्छा थी कि जब उसकी मृत्यु हो, तो जहां पर उसकी मृत्यु हुई हो वहीं आसपास ही उसे दफना दिया जाए। आखिरी इच्छा का पालन करते हुए औरंगज़ेब को औरंगाबाद जिले के खुल्दाबाद में मुस्लिम अंतिम संस्कार विधि का पालन करते हुए दफना दिया गया। आज भी औरंगजेब की कब्र औरंगाबाद के खुल्दाबाद में मौजूद है।

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