अकाल मृत्यु दोष क्या है ?

मृत्यु दुनिया का एक ऐसा सार्वभौमिक सत्य है जिसे कभी झुठलाया नहीं जा सकता है। इस धरती पर जिस भी जीव ने जन्म लिया है, एक न एक दिन उसे इस धरती को छोड़कर जाना ही है। इस दुनिया में ऐसा कोई जीव नहीं है जो अजर और अमर हो और जिसकी मृत्यु ना हो। कोई भी जीव इस धरती पर जन्म लेता है, अपने जीवन चक्र को पूरा करता है और एक निश्चित समय पर इस दुनिया को अलविदा कहकर सदा के लिए चला जाता है।

अब अगर बात की जाए मनुष्य के जीवन की तो, मनुष्य के जीवन को चार भागों में विभाजित किया गया है। एक छोटा बच्चा जब इस धरती पर जन्म लेता है, तो जन्म से लेकर, बाल्यावस्था और फिर किशोरावस्था तक वो बिना किसी अतिरिक्त बोझ के अपने जीवन को मजे में व्यतीत करता है। किशोरावस्था के बाद मनुष्य युवावस्था में प्रवेश करता है, ये एक ऐसी अवस्था होती है जिसमे व्यक्ति के मन में अपने भविष्य को उज्जवल बनाने का जुनून होता है। युवावस्था के अंत तक मनुष्य गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है। इसके बाद शुरुआत होती है प्रौढ़ावस्था की। इस अवस्था में मनुष्य का जीवन अपने बच्चों के भविष्य को सुधारने में व्यतीत होता है। प्रौढ़ावस्था के बाद आती है, वृद्धावस्था की बारी, इसमें एक बार फिर मनुष्य का जीवन सभी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर ईश्वर के अधीन हो जाता है, और धीरे-धीरे अपने जीवन चक्र को पूरा कर मृत्यु के निकट पहुंचता है। और फिर एक दिन इस धरती से विदा ले लेता है।

यूं तो इस दुनिया में जन्म लेने वाले हर जीव की मृत्यु सुनिश्चित है, लेकिन मृत्यु भी दो प्रकार की होती है। पहली मृत्यु ऐसी जिसमें इस धरती पर जन्म लेने वाला प्राणी अपने पूरे जीवन को आनंद पूर्वक व्यतीत करके एक निश्चित समय पर मृत्यु को प्राप्त करता है। इस मृत्यु को सामान्य मृत्यु की श्रेणी में रखा गया है। वहीं दूसरी तरह की मृत्यु में दुनिया में जन्म लेने वाला जीव अपने जीवन को पूरी तरह से जी नहीं पाता और अप्राकृतिक तरीके से उसकी मृत्यु हो जाती है। इस तरह की मृत्यु को असामान्य मृत्यु की श्रेणी में रखा गया है।

अकाल मृत्यु दोष क्या है ?

अकाल मृत्यु दोष 1

संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी की मृत्यु तो सुनिश्चित है, इसे ना तो बदला जा सकता है, और ना ही टाला जा सकता है और ना ही कोई जीव इससे बच सकता है। जब कोई जीव अपने जीवन के हर सुख को भोग कर मृत्यु प्राप्त करता है तो उसे सामान्य मृत्यु कहते हैं, लेकिन जब किसी अप्राकृतिक कारण की वजह से अससमय ही किसी की मृत्यु हो जाती है, तो इस तरह के मृत्यु को ही अकाल मृत्यु का नाम दिया गया है।

हिंदू धर्म के पवित्र पुराण गरुड़ पुराण में मनुष्य के जन्म और मृत्यु से जुड़ी सभी स्थितियों का वर्णन किया गया है। इस पवित्र पुराण के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु असमय हो हो जाती है, तो इसे अकाल मृत्यु कहा जाता है। इस तरह की मृत्यु अप्राकृतिक तरीके से होती है।

परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हुई हो और उसका सही विधि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो घर में जन्म लेने संतान की कुंडली में अकाल मृत्यु दोष होता है। 


अकाल मृत्यु होने की कई वजह हो सकती है। जो कुछ इस प्रकार है –

अकाल मृत्यु दोष
  • यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु भूखमरी की वजह से होती है तो इसे अकाल मृत्यु की श्रेणी में रखा जाता है।
  • किसी व्यक्ति की हत्या हो जाने पर, उसकी मौत को अकाल मृत्यु के रूप में जाना जाता है।
  • यदि कोई व्यक्ति फांसी लगाकर या जहर खाकर, खुद को आग हवाले कर या किसी अन्य तरह से आत्महत्या कर लेता है, तो इसे भी अकाल मृत्यु का नाम दिया जाता है।
  • यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु पानी में डूब कर होती है तो ये भी अकाल मृत्यु की श्रेणी में आता है।
  • यदि कोई व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त होकर अमृत होता है तो उसकी मौत को भी अकाल मृत्यु माना जाता है।
  • सांप काट लेने या अन्य जानवर की चपेट में आने से यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसकी मौत अकाल मृत्यु होती है।
  • किसी गंभीर बीमारी की वजह से यदि किसी व्यक्ति की असमय मृत्यु हो जाती है तो इसे भी अकाल मृत्यु का नाम दिया जाता है।

नोट: अकाल मृत्यु बेहद कष्टकारी होता है। अकाल मृत्यु को पूर्व जन्म का श्राप, या फिर ईश्वर का रूष्ट होना माना गया है। अकाल मृत्यु के प्रकार में आत्महत्या को महापाप की श्रेणी में रखा गया है। चूंकि मनुष्य के जीवन को भगवान का आशीर्वाद माना गया है, ऐसे में जो व्यक्ति आत्महत्या करके अपने जीवन को खत्म करता है वो भगवान के आशीर्वाद का अपमान करता है, भगवान द्वारा दिए गए इस जीवन का अपमान करता है। ऐसी मान्यता है कि आत्महत्या करने वाले व्यक्ति को अपने अगले जीवन में भी कष्ट झेलना पड़ता है।

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