दानवीर कर्ण के अंतिम संस्कार से कई रहस्य जुड़े हुए हैं। श्री कृष्ण ने किस वजह से कर्ण का अंतिम संस्कार किया था और कर्ण का अंतिम संस्कार कहां हुआ था ? ये सब बातें आज हम इस पोस्ट के जरिए जानेंगे –
हिंदू धर्म की महान पौराणिक कथा महाभारत में कर्ण का किरदार बेहद अहम है। यूं तो महाभारत की कहानी कौरवों और पांडवों की कहानी है, लेकिन इसकी एक बेहद अहम कड़ी कर्ण से भी जुड़ी है। कर्ण को दानवीर कर्ण के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार कर्ण से बड़ा दानी न इतिहास में कोई हुआ है, और न कभी होगा।
कर्ण ने कुंती के गर्भ से जन्म लिया था। कुंती ने सूर्यदेव के आशीर्वाद से विवाह के पहले कर्ण को जन्म दिया था। लोक लाज के डर से कुंती ने कर्ण को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया था। जहां से ये महाराज भीष्म के सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा को मिल गए और उन्होंने इनका पालन पोषण किया।
जीवन भर अपने कंधे पर सूद पुत्र होने का बोझ ढोते रहे कर्ण, असल में पांडवो के सबसे बड़े भाई थे। सूद पुत्र होने की वजह से उन्हें कदम-कदम पर धिक्कार का सामना करना पड़ा था। धनुर्विद्या से लेकर, द्रौपदी के स्वयंवर में हिस्सा लेने तक हर जगह उन्हें सूद पुत्र होने का मोल चुकाना पड़ा। इन सब बातों का कर्ण के हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा, और कर्ण के मन में पांडवो के प्रति रोष भर गया। इसके विपरीत दुर्योधन ने कर्ण के सामने मित्रता का हाथ फैलाया, और कर्ण ने अपना पूरा जीवन दुर्योधन की मित्रता पर न्योछावर कर दिया। और महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से पांडवो से युद्ध किया।
कैसे हुई थी कर्ण की मृत्यु –
महान ग्रंथ महाभारत के मुताबिक दानवीर कर्ण के पास कुछ ऐसे अस्त्र थे, जिनकी वजह से युद्ध में उन्हें पराजित कर पाना लगभग नामुमकिन था। लेकिन फिर भी महाभारत युद्ध के 17वें दिन कर्ण वीरगति को प्राप्त हुए। दरअसल एक बार अनजाने में कर्ण के रथ के पहिए के नीचे दबकर एक बछिया परलोक सिधार गई थी। इस घटना से रूष्ट होकर एक साधु ने कर्ण को श्राप दिया था कि जिस तरह से इस बछिया की मृत्यु हुई है, उसी तरह युद्ध के दौरान कर्ण के रथ के पहिए को धरती निगल जाएगी और जिसकी वजह से उनकी मृत्यु होगी।
साधु के श्राप के अनुसार ही महाभारत युद्ध के 17वें दिन अचानक कर्ण के रथ के पहिए जमीन में धंसने लगे। जब कर्ण अपने रथ के पहिए को जमीन से बाहर निकलने का प्रयास करने लगे उसी समय अर्जुन ने मौका देखकर अपने दिव्यास्त्र से कर्ण पर प्रहार कर दिया। और कर्ण वीरगति को प्राप्त हुए।
कैसे हुआ कर्ण का अंतिम संस्कार –
महाभारत में कर्ण के अंतिम संस्कार से जुड़ी व्याख्या भी की गई है। इसके मुताबिक महाभारत युद्ध के 17वें दिन जब अर्जुन ने कर्ण पर अपने दिव्यास्त्र से प्रहार किया, तो कर्ण मृत्यु के अत्यंत निकट पहुंच गए, उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने कर्ण की दानवीरता की परीक्षा लेने के बारे में सोचा। इसी उद्देश्य से भगवान श्री कृष्ण ने एक ब्राह्मण का वेश धारण किया और कर्ण के पास पहुंच गए। ब्राह्मण के रूप में श्री कृष्ण ने कर्ण से अपनी बेटी के विवाह के लिए सोने की मांग की। तब मृत्यु के बेहद समीप होने पर भी कर्ण ने पत्थर से अपने सोने के दांत तोड़कर ब्राम्हण को दान में दे दिया। कर्ण की इस दानवीरता से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण वास्तविक रूप में कर्ण के सामने प्रकट हुए और उनसे 3 वरदान मांगने को कहा।
कर्ण ने जो तीन वरदान मांगे वो इस प्रकार हैं –
- सूद पुत्र होने की वजह से कर्ण ने जीवन भर कष्ट झेला था। इसलिए वरदान में उन्होंने श्री कृष्ण से मांगा कि अगली बार जब भी वो इस धरती पर अवतार लें तो निर्धन व पिछड़े वर्ग के लोगों का जीवन संवारे।
- दूसरे वरदान में कर्ण ने मांगा की, कि श्री कृष्ण अपना अगला अवतार उनके राज्य में ले।
- कर्ण का तीसरा वरदान उनके अंतिम संस्कार से जुड़ा हुआ था। कर्ण ने तीसरे वरदान में श्री कृष्ण से मांगा कि उनका अंतिम संस्कार श्री कृष्ण के हाथों से ऐसी जगह पर किया जाए जहां पर कभी कोई पाप न हुआ हो।
श्री कृष्ण के हांथ से हुआ कर्ण का अंतिम संस्कार –
कर्ण को दिए गए वरदान को पूरा करने के लिए श्री कृष्ण ने अपने हाथों से कर्ण का अंतिम संस्कार किया। कर्ण का अंतिम संस्कार करने के लिए भगवान श्री कृष्ण एक ऐसी भूमि की तलाश कर रहे थे जहां पर कभी कोई पाप ना हुआ हो, बहुत मुश्किल से उन्हें सूरत शहर में बहने वाली ताप्ती नदी के समीप मात्र एक इंच जमीन मिली। अब एक इंच जमीन पर शव को रखकर उसका दाह संस्कार करना नामुमकिन था। लेकिन भगवान श्री कृष्ण को कर्ण को दिया गया वरदान पूरा करना था, इसलिए उन्होंने उस 1 इंच जमीन के टुकड़े पर अपना बाण धंसा दिया, और उस बाण के ऊपर कर्ण के शव को रखकर उसका अंतिम संस्कार किया।
नोट : सूरत में ताप्ती नदी के तट पर जहां श्री कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार किया था वह स्थान वर्तमान में ‘तुलसी बड़ी मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध है। यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
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