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गंगा में अस्थि विसर्जन का क्या है महत्व ?

हिंदू धर्म में गंगा नदी को मोक्षदायिनी कहा गया है। गंगा में अस्थि विसर्जन के पीछे धार्मिक व वैज्ञानिक मान्यता क्या है ? पढ़े यहां –

हिंदू धर्म में गंगा नदी को देवी मां का दर्जा दिया गया। सभी पवित्र नदियों में गंगा नदी को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। उत्तराखंड राज्य के गंगोत्री से गंगा नदी का उद्गम हुआ है। और यहां से 18 मील दूर श्रीमुख पर्वत से इनकी धारा फूटी है।

गंगा नदी उत्तराखंड से निकलकर, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल राज्य से होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती है, और यहां ब्रम्हपुत्र नदी में मिलकर गंगासागर में समाहित हो जाती है।

गंगा नदी जिसे हिंदू धर्म में मोक्षदायिनी कहा गया है, इसके महत्त्वता की व्याख्या वेदों और पुराणों में भी की गई है। हिंदू धर्म में जन्म लेने वाले हर इंसान की यही इच्छा होती है की गंगा के पवित्र जल से उसका शरीर तर जाए। जीवन में एक बार गंगा स्नान का सौभाग्य हर कोई प्राप्त करना चाहता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है की गंगा के पवित्र जल को छूते ही मनुष्य के जन्म-जन्म के पाप धुल जाते हैं, और शरीर के साथ-साथ आत्मा भी शुद्ध हो जाती है।

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार मृत्यु के पश्चात गंगा नदी के तट पर अंतिम संस्कार और फिर नदी की पवित्र जलधारा में अस्थि विसर्जन करने से मनुष्य को जीवन-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिलती है, और उसकी आत्मा का सीधे स्वर्ग में वास होता है।

गंगा में अस्थि विसर्जन का धार्मिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी है। आइए जानते है गंगा में अस्थि विसर्जन से जुड़ी पौराणिक मान्यता व वैज्ञानिक महत्व के बारे में।

गंगा में अस्थि विसर्जन का पौराणिक महत्व

गंगा में अस्थि विसर्जन 3

हिंदू धर्म में गंगा में अस्थि विसर्जन से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं बताई गई हैं, जिनमें इसकी महत्त्वता का वर्णन किया गया है।

  • एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा भगीरथ ने अपने कुल के पूर्वजों का उद्धार करने के लिए कड़ी तपस्या से गंगा नदी को धरती पर लाया था। भगवान विष्णु के चरणों से निकलकर, भगवान शिव की जटा में बसी मां गंगा, भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर ही उनके पीछे-पीछे धरती पर आई थी और यहां आकर गंगा नदी के को छूकर सबसे पहले राजा भगीरथ के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। तब से मां गंगा को मोक्षदायिनी का दर्जा मिला।
  • एक अन्य कथा के अनुसार एक बार मां गंगा बैकुंठ में श्री हरि से मिलने पहुंची और वहां जाकर उन्होंने उनसे सवाल किया कि- मेरे जल में सभी के पापों का विनाश होता है, दुनिया का हर प्राणी मेरे जल में स्नान करके अपने पापों को खत्म करता है, लेकिन अपने जल में इतने सारे पापों का बोझ मैं कैसे उठा पाऊंगी ? तब भगवान श्री हरि ने जवाब दिया कि – देवी गंगा, जब कोई साधु वैष्णव अथवा संत आपके जल में आकर स्नान करेगा तो जल में मिले सारे पापों का विनाश हो जाएगा। और आपका जल एकदम शुद्ध हो जायेगा। तब से ही ये चक्र चल रहा है। मां गंगा सबका पाप अपने जल में समाहित करती हैं और साधु संतो के स्नान से उनका जल शुद्ध होता जाता है।
  • ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पतित पावन गंगा के जल में मृतक की अस्थियों का विसर्जन करने से मरने वाले के पूर्व जन्म के पापों का विनाश होता है। उसकी आत्मा को तृप्ति मिलती है। उसकी अस्थियां सीधे बैकुंठ में बैठे श्री हरि के चरणों में समर्पित हो जाती है और उसे जीवन मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिलती है।

गंगा में अस्थि विसर्जन का वैज्ञानिक महत्व

गंगा में अस्थि विसर्जन 1

गंगा में अस्थियों को विसर्जित करने का सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं है बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी बताया गया है। सबके मन में यह सवाल अवश्य उठता होगा कि अनगिनत लोगों के अस्थियों का विसर्जन करने के बाद भी गंगा का जल शुद्ध एवं साफ कैसे बना रहता है ? इस पर कई रिसर्च किए गए हैं। हालांकि अभी इसका पूरा जवाब नहीं मिल पाया है, परंतु कुछ वैज्ञानिक संभावनाएं व्यक्त की गई हैं।

वैज्ञानिक संभावनाओं के मुताबिक गंगा के जल में मर्करी पाया जाता है। जिसकी वजह से हड्डियों में मौजूद कैल्शियम और फास्फोरस पानी में अच्छी तरह से घुल जाते हैं। हड्डियों में पाया जाने वाला सल्फर मर्करी के साथ मिलकर मर्करी सल्फाइड साल्ट बनता है जो बचे हुए कैल्शियम के साथ मिलकर गंगा के जल को स्वच्छ करने का काम करता है। इसके अलावा गंगा नदी के जल में बैक्टीरियोफेज जीवाणु पाया जाता है जो पानी में मौजूद हानिकारक सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देता है। इस तरह से पानी के अंदर गंदगी और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं का विनाश हो जाता है, और गंगा का जल सदैव स्वच्छ बना रहता है।

गंगा के जल को लोग अपने घरों में शीशे या प्लास्टिक के डिब्बे में भरकर रखते हैं। लंबे समय की अवधि तक रखने के बावजूद ये जल निरंतर स्वच्छ बना रहता है।

नोट: हिंदू धर्म में गंगा नदी में अस्थि विसर्जन करने के लिए, नदी के किनारे बसे कुछ शहरों को धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत उत्तम माना गया है इनमें प्रयागराज, गया, हरिद्वार, रामेश्वरम, काशी प्रमुख हैं।

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