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श्राद्ध की तिथि कैसी निकालें ?

हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके श्राद्ध की तिथि कैसे निकालें ? और कब करें उसका श्राद्ध ?

आइए इस पोस्ट के जरिए जानते हैं श्राद्ध एवं श्राद्ध की तिथि से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें –

हिंदू धर्म के पवित्र पुराण, गरुण पुराण के अनुसार जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया विधि विधान से करने के पश्चात 10 दिनों तक घर में सूतक का समय रहता है। मृत्यु के दसवें दिन घर की शुद्धि की जाती है तत्पश्चात 13वें दिन 13वीं संस्कार किया जाता है, जिसमें ब्राह्मणों को भोज कराया जाता है। 13वीं का संस्कार विधि विधान से करने के बाद मृतक की आत्मा पृथ्वी लोक से यमपुरी की यात्रा पर निकलती है।

मृतक की आत्मा को पृथ्वी लोक से यमपुरी तक की यात्रा में 11 महीने का समय लगता है। इस दौरान आत्मा को भोजन और जल के बिना ही यात्रा करनी होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार पृथ्वी लोक से यमपुरी तक के सफर में आत्मा को भूखा और प्यासा न रहना पड़े, इसलिए ही प्रियजनों द्वारा श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण किया जाता है। श्राद्ध की क्रिया करने से आत्मा को भोजन और पानी मिलता है, जिससे आत्मा संतुष्ट होती है और तृप्त होकर यमराज के दर पर पहुंचती है। परंतु यदि श्राद्ध की क्रिया विधि विधान से नहीं की जाती है, तो आत्मा को संतुष्टि नहीं मिल पाती है और वो दर-बदर भटकती रहती है।

श्राद्ध से जुड़े कुछ सवाल होते हैं, जिसे लेकर अक्सर लोग दुविधा में पड़ जाते हैं- जैसे मृतक का पहला श्राद्ध कब करना चाहिए? पहला वार्षिक श्राद्ध कब करना चाहिए ? और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि श्राद्ध की तिथि कैसे निकालनी चाहिए ?

आगे इस पोस्ट में इन सभी सवालों के जवाब दिए गए हैं ?

कब करें पितरों का श्राद्ध ?

श्राद्ध की तिथि 3

हिंदू धर्म में पूर्वजों अथवा पितरों का श्राद्ध करने से जुड़े कुछ नियम होते हैं जिनका पालन करना अनिवार्य है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जब हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसका अंतिम संस्कार एवं 13वीं संस्कार विधि विधान से किए जानें के बाद जब मृतक का श्राद्ध किया जाता है तब ही उसकी भटकती आत्मा को शांति मिलती है।

श्राद्ध से जुड़े नियम

  1. जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो मृत्यु के पहले वर्ष में हर महीने ही मृत्यु की तारीख पर श्राद्ध की क्रिया की जा सकती है। यदि हर महीने संभव न हो तो 1 वर्ष पूरे होने पर प्रथम वार्षिक श्राद्ध किया जाना चाहिए।
  2. हिंदू धर्म की धार्मिक मान्यता के अनुसार परिवार में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो पूरे 1 साल तक कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है, और ना ही कोई तीज त्यौहार, अथवा उत्सव मनाया जाता है। पहली बरसी यानी प्रथम वार्षिक श्राद्ध करने के पश्चात ही शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
  3. जिस वर्ष परिवार में किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है उस वर्ष पितृपक्ष में श्राद्ध क्रिया नहीं की जानी चाहिए। इसके साथ ही यदि घर में किसी की शादी हुई हो तो उस साल भी पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध नहीं किया जाना चाहिए।

कैसे निकाले श्राद्ध की तिथि

श्राद्ध की तिथि 1

हिंदू धर्म में पितरों अथवा पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए वार्षिक श्राद्ध एवं पितृ पक्ष का श्राद्ध बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन पितरों अथवा पूर्वजों का श्राद्ध एक विशेष तिथि पर ही किया जाना चाहिए, और यह तिथि व्यक्ति के निधन की तिथि से जुड़ी हुई होती है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार पूर्वजों अथवा पितरों का श्राद्ध उनके देहांत की तिथि पर ही किया जाना चाहिए। जैसे यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु आश्विन मास की पंचमी तिथि को हुई है, तो उसका वार्षिक श्राद्ध अगले वर्ष आश्विन मास की पंचमी तिथि को ही किया जाना चाहिए।

पितृपक्ष में श्राद्ध की तिथि

श्राद्ध की तिथि

हिंदू धर्म में प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से आश्विन माह की अमावस्या तिथि तक का समय पितृपक्ष के रूप में जाना जाता है। इस शुभ पक्ष में पूर्वजों एवं पितरों का श्राद्ध, पिंडदान एवं तर्पण किया जाता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस पक्ष में विधि विधान से किए गए श्राद्ध से पितरों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है।

पितृपक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध एक विशेष तिथि पर ही किया जाता है। इससे जुड़े कुछ नियम होते हैं जो निम्नलिखित हैं –

  1. पितृपक्ष में पूर्वजों एवं पितरों का श्राद्ध उनकी मृत्यु की तिथि के आधार पर किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी पूर्वज अथवा पितर का निधन किसी भी माह के कृष्ण अथवा शुक्ल पक्ष की चतुर्थी या पंचमी तिथि को हुआ है, तो पितृ पक्ष में उसका श्राद्ध चतुर्थी अथवा पंचमी तिथि को ही किया जाएगा।
  2. यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु कुवांरेपन में हो जाती है, तो उसके श्राद्ध के लिए मृत्यु की तिथि को नहीं देखा जाता है। ऐसे पितरों का श्राद्ध पितृ पक्ष की पंचमी तिथि को ही किया जाता है।
  3. यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु किसी भी माह की पूर्णिमा तिथि को हुई हो, तो पितृपक्ष में उसका श्राद्ध अष्टमी तिथि को किया जाता है।
  4. जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती है, पितृपक्ष में उनका श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है।
  5. अपने जीवन काल में संन्यास ले चुके पितरों का श्राद्ध, पितृपक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है।
  6. छोटे बच्चों का श्राद्ध पितृ पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है।
  7. यदि किसी व्यक्ति की आकस्मिक मृत्यु हुई हो- अर्थात यदि व्यक्ति किसी दुर्घटना का शिकार हो गया हो, अथवा शहीद हो गया हो तो ऐसे व्यक्ति का श्राद्ध पितृपक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।
  8. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी पूर्वज के मृत्यु की तिथि याद नहीं होती है, तो ऐसे पूर्वजों का श्राद्ध पितृपक्ष की अमावस्या तिथि को किया जाना चाहिए।

नोट : यदि आपको अपने पूर्वजों के मृत्यु की तिथि पता नहीं है, परंतु अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से उसके मृत्यु की तारीख पता है, तो गूगल पर जाकर मृत्यु की तारीख की मदद से उसके श्राद्ध की तिथि का पता लगा सकते हैं। इसके अलावा किसी व्यक्ति की मृत्यु की तिथि ही, उसके श्राद्ध की तिथि होती है। श्राद्ध की तिथि में कभी भी शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष को नहीं जोड़ा जाता। दोनों पक्षों के लिए तिथि समान ही मानी जाती है।

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